नागरिक संशोधन विधेयक को लेकर उठ रही अनेक आवाजों के बीच जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र शरजिल इमाम का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का एक वीडियो बहुत तेजी से वायरल हुआ है। इस वीडियो में शरजिल अपने भाषण में स्पष्ट रूप से देश को बांटने के नापाक इरादे बताता नजर आ रहा है। शरजिल कह रहा है ‘‘हमारा मुख्य उद्देश्य शेष भारत से असम और पूर्वोत्तर भारत को काटना है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने साजिश का खुलासा भी किया है कि सड़कों और रेलवे लाइनों पर इतना मलबा डाल दो कि उसे उठाने में काफी समय लग जाए। शरजिल यह भी कह रहा है की
अगर 5 लाख मुसलमान संगठित हो जाएं तो हम असम काे भारत से अलग कर देंगे। अपने भाषण में शरजिल यह भी कह रहा है कि मुसलमानों को भारत की वो चिकन नेक काट देनी चाहिए जो उसे उत्तर पूर्व से जोड़ती है। यदि ऐसा हो जाता है तो वहां सेना भी नहीं पहुंच पाएगी। शरजिल इमाम को शाहीन बाग धरने का रणनीतिकार माना जा रहा है।
शरजिल इमाम के शब्दों को गम्भीरता से लेने की बजाय उस पर सियासत भी शुरू हो गई है। एक लोकतांत्रिक देश में सबको अपने अधिकारों के लिए लड़ने, आंदोलन करने और अपने विचारों को व्यक्त करने का अधिकार है लेकिन यह अधिकार किसी को नहीं है कि वह ऐसा कुछ कहे जिससे किसी वर्ग विशेष की मानसिकता में जहर फैलाए जिससे देश की एकता और अखंडता को प्रभावित हो। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में जब ‘‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, लेके रहेंगे आजादी’’ जैसे नारे लगे थे तो जिहादी मानसिकता वाले युवाओं के चेहरे से नकाब उतर गया था लेकिन इस देश ने उन्हें नेता बना दिया। आज एक ऐसा वर्ग है जो देश को बांटने के नारे लगाने वालों का समर्थक है, जो उन्हें सुनना चाहता है।
उसके लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देश से भी बड़ी है। अनेक बुद्धिजीवी छात्रों के देश विरोधी नारों को प्रेशर कुकर को सेफ्टी वाल्व बताते हैं। उनके लिए ऐसे नारे छात्रों के आक्रोश की उपज है।अब सवाल यह है कि जो कुछ शरजिल ने कहा वह क्या देश के मसलमानों की आवाज है। नहीं बिल्कुल नहीं, शरजिल की आवाज भारत के 20 करोड़ मुस्लिमों की आवाज नहीं हो सकती। सवाल यह भी है कि क्या जेएनयू जैसे शिक्षा संस्थानों में छात्रों के दिमाग में देश को बांटने की मानसिकता क्यों पैदा हुई? नागरिक समाज हो या मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील अकादमिक, पत्रकार और जनता से सरोकार रखने वाले भारतीय नागरिक हैं।
आम नागरिक से इस मामले में भिन्न हैं कि वे गरीबों, वंचितों, विस्थापितों तथा कमजोरों के लिए मानवीयता का भाव रखते हैं। क्या इस वर्ग को शरजिल जैसे युवाओं के बयानों को हवा में उड़ा देना चाहिए या गम्भीरता से लेना चाहिए। अगर देश का प्रबुद्ध वर्ग ऐसे बयानों को महज हवा में उछालता रहा तो देशभर में टुकड़े-टुकड़े गैंग उठ खड़े होंगे। इस देश का मुसलमान भी अब अच्छी तरह समझ गया है कि उन्हें राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर एक सुन्न करने वाला इंजैक्शन लगाते रहे हैं ताकि वह एक चैतन्य जागरूक एवं प्रगतिशील नागरिक न बन सकें। इतना ही नहीं उन्हें यह भी समझ में आ गया है कि ये धर्मनिरपेक्षतावादी उन्हें अलगाववादियों एवं आतंकवादियों के पक्षधर बनाकर खड़ा कर देते हैं जिससे बहुसंख्यकों की शंकाओं के घेरे में बने रहे हैं। मुस्लिम समाज को यह जानना होगा कि नीतियुक्त और न्याययुक्त शासन व्यवस्था ही दूसरे नागरिकों की उनका कल्याण कर सकती है। शरजिल और असउद्दीन ओवैसी और अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे लोग उनके नायक नहीं हो सकते। जिनका काम ही अलगाववाद के बीज बोना है और जहरीला वातावरण सृजित करना है।
अफसोस इस देश के मुस्लिमों को कोई नायक मिला ही नहीं। ऐसे में प्रश्न स्वाभाविक है कि मुस्लिमों को सही व हकीकी इस्लाम पेश करने के लिए किस किस्म का होना चाहिए। जवाब सिर्फ इतना सा है कि हिन्दस्तान के हर मुसलमान को डाक्टर ऐ.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे होना चाहिए। मुस्लिम युवाओं को शरजिल इमाम से अलग हटकर देश के लिए सोचना होगा। उन्हें खुद ऐसी ताकतों को पराजित करना होगा जो देश के एक और बंटवारे के स्वप्न देख रही है और उन्हें भ्रमित कर रही है। उन्हें खुद जिहादी मानसिकता से लड़ना होगा। अगर आज शरजिल इमाम जैसे लोगों को किनारे नहीं किया गया तो इसका खामियाजा पूरी कौम को भुगतना पड़ेगा। जहां तक शरजिल पर कार्रवाई का सवाल है उसके लिए कानून अपना काम करेगा।
-आदित्य नारायण चोपड़ा