भारत की बढ़ती हैसियत से ड्रैगन यानी चीन असहज हो उठा है और वह पुन: ओछी हरकतों पर उतर आया है। चीन लगातार भारत की बदलती नीतियों को गंभीरता से ले रहा है। चीन नीति ने हमेशा से भारत को दुनिया के पैमाने पर एक ऐसे देश के रूप में देखा है जो कोई भी कड़ा कदम उठाने में अक्षम है लेकिन आज का भारत 1962 का भारत नहीं है, आज का भारत 2017 का भारत है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की उपलब्धियों ने दुनिया के पैमाने पर भारत की स्थिति को बदल दिया है। भारत के मिसाइल और उपग्रह के क्षेत्र में लगातार विकास ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। दूसरा चाबहार बंदरगाह ने भारत के रास्ते मध्य पूर्व, मध्य एशिया और अफगानिस्तान के लिए खोल दिये हैं। चाबहार भारत की एक व्यापक योजना है जो उत्तर-पूर्व, मध्य पूर्व, मध्य एशिया और ट्रांस कॉकेशस में भारत की भूगोलीय राजनीति को नया आयाम देगी। भारत ने चीन की महत्वाकांक्षी योजना ओआरओबी को लेकर आयोजित सम्मेलन का बहिष्कार किया। भारत और अफगानिस्तान के संबंधों को लेकर भी चीन असहज है। चीन लगातार एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध कर रहा है और वह लगातार पाक में बैठे आतंकी सरगना मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने की राह में संयुक्त राष्ट्र में रोड़े अटका रहा है।
चीन ने अपने घनिष्ठ मित्र पाकिस्तान का साथ देने के लिये आतंकवाद का समर्थन किया है और पूरी दुनिया में अपनी छवि एक आतंकवाद समर्थक देश की बना ली है। मसूद अजहर की वैश्विक आतंकवादी के तौर पर नामजदगी के मामले में भारतीय अनुरोध को प्रतिबन्ध समिति सहित व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला था लेकिन चीन ने तकनीकी अड़चनें पैदा कीं। घुसपैठ करना चीन की विस्तारवादी नीतियों को हिस्सा है और आदत भी। खबर यह है कि चीन की पीएलए के जवान सिक्किम के डोका ला जनरल इलाके में लालटेन चौकी के निकट घुस आये थे और उन्होंने भारत के बंकरों को तबाह कर दिया जिससे क्षेत्र में तनाव व्याप्त है। 1962 के भारत-चीन युद्घ के बाद यह इलाका भारतीय सेना और आईटीबीपी के अधीन है। सिक्किम में चीन-भारत सीमा का निर्धारण ऐतिहासिक संधि के माध्यम से किया गया था। भारत की आजादी के बाद भारत की सरकार ने बार-बार लिखित में इस बात की पुष्टि की है कि दोनों पक्षों को सिक्किम सीमा पर कोई आपत्ति नहीं है। चीन भारत को परेशान करने और अनावश्यक दबाव डालने के लिये ऐसा कर रहा है। चीन ने इस इलाके पर भी अपनी संप्रभुता वाला क्षेत्र होने का दावा किया है।
चीन ने पिछले दिनों दोंगलांग क्षेत्र में एक सड़क का निर्माण शुरू किया था लेकिन भारतीय जवानों ने उन्हें रोक दिया। दो दिन पहले चीन ने कैलाश मानसरोवर यात्रियों को लेकर अडिय़ल रवैया दिखाया। उसने नाथू ला के जरिए कैलाश मानसरोवर जाने वाले जत्थे को रोक दिया। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने 26 मई को असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर देश के सबसे बड़े पुल ढोला सादिया का उद्घाटन किया था। इस पुल से चीन सीमा तक भारतीय सेना बहुत कम समय में पहुंच सकती है और उस तक रक्षा सामग्री पहुंचाना भी सरल हो गया है। इसके बाद से ही चीन के तेवर बदल गये थे। साफ दिख रहा है कि बौखलाये चीन ने यात्रा में अड़ंगा लगा दिया है। अब वह लाख बहाने गढ़े लेकिन सच तो यह है कि प्रधानमंत्री मोदी से भी चीन को मिर्ची लगी है। भारत और अमेरिका के प्रगाढ़ संबंधों खासतौर पर सुरक्षा मामलों पर हुए समझौतों से चीन को लगता है कि इससे एशिया प्रशांत क्षेत्र में वह अपनी मनमानी नहीं कर पायेगा।
भारत और अफगानिस्तान के बीच 19 जून से शुरू हुए सीधे डेडिकेटेड एयर कॉरिडोर को लेकर चीनी मीडिया भड़का हुआ है, चीन ने इस कॉरिडोर को भू-राजनीतिक चिंतन अक्खड़पन कहा है। भारत और अफगानिस्तान के बीच शुरू हुए इस प्रोजैक्ट को चीन-पाकिस्तान इकॉनामिक कॉरिडोर का जवाब माना जा रहा है। भारत चीन-पाक इकॉनामिक कॉरिडोर का विरोध कर रहा है। पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरने वाले इस इकॉनामिक रूट को लेकर भारत ने अपनी चिंतायें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी रखी हैं। ड्रैगन छटपटा रहा है क्योंकि वह भारत पर दबाव बनाने में विफल हो चुका है। ड्रैगन भारत पर दबाव बनाने के लिये घुसपैठ की कोशिशें और भी कर सकता है। लेह, अरुणाचल के त्वांग और उत्तराखंड में ऐसे कई प्रयास वह पहले भी कर चुका है। इसलिये भारत को सतर्क रहना होगा और चीन से सटी भारतीय सीमाओं पर अपनी रक्षा पंक्ति को सुदृढ़ बनाना होगा। भारत लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर टी-72 टैंकों को तैनात कर चुका है और भारत चीन से सटी सीमा पर बुनियादी ढांचा खड़ा कर रहा है। भारत की जापान और मलेशिया से दोस्ती भी चीन को महंगी पड़ सकती है।