चीन की सदियों से यह कूटनीति रही है कि आगे बढ़ना हो तो दो कदम पीछे हट जाओ, लक्ष्य पूरा करने के लिए एक दशक पहले योजना बनानी शुरू करो। एक दौर था जब शक्तिशाली देशों की सुरक्षा के बदले उनसे सलाना फिरौती ली जाती थी। चीन अब भी इसी नीति पर चल रहा है और वह छोटे-छोटे देशों से ऋण और हथियार देने के बदले उनकी जमीन या दूसरे संसाधन हड़प रहा है। मालदीव, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देश तो चीन के दम पर पहलवान बने बैठे हैं। छोटा सा देश मालदीव इसलिए भारत को आंखें दिखा रहा है क्योंकि उसे चीन का सुरक्षा कवच मिल रहा है। मालदीव के नए प्रधानमंत्री मोइज्जू ने तो अपने देश को चीन के हाथों गिरवी रख दिया है। मालदीव में 38 से ज्यादा छोटे-बड़े द्वीप हैं जो हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से जुड़े हुए हैं। इनमें से एक दर्जन से ज्यादा द्वीपों को चीन लीज पर ले चुका है। इन द्वीपों पर चीन की मौजूदगी से भारत की चिंताएं बढ़ चुकी हैं।
सीमा पर चीन की हरकतें भारत की ओर भी परेशान कर देने वाली हैं। ड्रैगन ने अब भूटान की करीब 100 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा करके चार गांव बसा दिए हैं। यह गांव भारत की सीमा के बिल्कुल करीब हैं। चीनी सेना की गतिविधियों पर नजर रखने वाले एक सैटेलाइट इमेजरी विशेषज्ञ ने तस्वीरें जारी कर दावा किया है कि चीन ने भूटान के अंदर एक साल में चार नए गांव बसा लिए हैं। इससे पहले भी भारत की सीमा से सटे इलाकों में चीन द्वारा भारी भरकम निर्माण किए जाने की खबरें मिलती रही हैं। चीन ने तिब्बत के स्वायत्त इलाके में वर्ष 2021 में 624 गांवाें के निर्माण का काम भी पूरा कर लिया था। 2017 में चीन के राष्ट्रपति ने तिब्बती चरवाहों को सीमा पर बसने का आदेश दिया था। ताजा तस्वीरें उसी डोकलाम इलाके के पास की हैं जहां 2017 में भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ गया था। चीन एक तरफ सीमा विवाद हल करने के लिए भारत से लगातार वार्ता कर रहा है और उसी वार्ता की आड़ में वह अपना खेल कर रहा है। ऐतिहासिक रूप से भूटान का बहुत करीबी रहा है और उसकी विदेश नीति पर भारत का काफी प्रभाव रहा है। भारत भूटान की फौजों को ट्रेनिंग भी देता रहा है और समय-समय पर उसकी सहायता भी करता रहा है। अब चीन लगातार भूटान पर इस बात के लिए दबाव बना रहा है कि वह सीमाओं को लेकर उसके साथ तालमेल करें ताकि इलाकों को फिर से परिभाषित किया जा सके। इस संबंध में चीन और भूटान में बातचीत भी हुई थी। हो सकता है कि यह निर्माण दोनों देशों के बीच किसी समझौते का हिस्सा हो।
भूटान सामाजिक रूप से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए भारत ने हमेशा से उसे काफी महत्व दिया है। भूटान का चीन से संबंध कोई राजनयिक संबंध नहीं है लेकिन दोनों पक्ष 1984 से सीमा विवाद पर काम कर रहे हैं। जो मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों पर केन्द्रित है। उत्तरी भूटान में जकारलुंग, पासमलुंगा और पश्चिम भूटान में डोकलाम। डोकलाम पठार का भारत के लिए अत्यधिक रणनीतिक महत्व है। क्योंकि यह सिलीगुड़ी कॉरिडोर के निकट है जिसे चिकन नैक भी कहा जाता है जाे कि भारतीय मुख्य भूमि को पूर्वोत्तर से जोड़ने वाला 22 किलोमीटर का विस्तार है। दरअसल डोकलाम में चीन,भारत और भूटान तीनों देशों की सीमाएं लगती हैं। चीन लगातार भारत की घेराबंदी करने में लगा हुआ है। पाकिस्तान, नेपाल,बंगलादेश में भी चीन ने अपनी घुसपैठ बढ़ा ली है। चीन इन देशों को अपने कर्ज जाल में फंसा चुका है। चीन के चलते पाकिस्तान की तुलना में भारत को अधिक खतरा महसूस हो रहा है। चीन भारत की प्रगति को देखते हुए उससे ईर्ष्या करता है। उसे लगता है कि आने वाले वर्षों में भारत जिस तरह से विश्व की तीसरी आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है उससे भारत उसे एक न एक दिन सीधी चुनौती देने लगेगा।
भारत ने भी चीन से सटी सीमा पर सैन्य क्षमता को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचा खड़ा कर दिया है ताकि वह चीन की किसी भी चुनौती का मुकाबला कर सके। भारत के पास चार प्रकार के उपकरण हैं। सैन्य शक्ति, दूसरे देशों के साथ संभावित साझेदारी, बहुपक्षीय कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समीकरण। भारत अपने इन चारों उपकरणों का विस्तार कर रहा है। चीन आज भारत से युद्ध के लिए इसलिए भी नहीं सोच रहा है क्योंकि भारत आज आर्थिक रूप से काफी समृद्ध है और उसे हर क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेेतृत्व में भारत आज चीन से आंख झुकाकर नहीं बल्कि उसकी आंखाें में आंखें डालकर बात करता है। भारत हर समय चीन की नीतियों को लेकर सतर्क है और वह चीन के खिलाफ संतुलन बनाने के लिए अन्य एशियाई देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है जिनमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, फिलिपींस और वियतनाम शामिल हैं। भारत और अमेरिका के गहरे संबंध चीन की महत्वकांक्षाओं को सीमित रखने में भी सहायक हो रहे हैं। भारत काे कूटनीति के साथ-साथ चीन को नियंत्रित करने के लिए अन्य उपाय भी करने होंगे और दुनिया के देशों से रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत बनाना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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