डोकलाम को लेकर दो माह से भारत और चीन में जारी तनातनी के बीच चीन रोज-रोज गीदड़ भभकियां देकर भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिशें कर रहा है लेकिन भारत ने भी ड्रेगन की चालों का मुंहतोड़ जवाब देना शुरू कर दिया है। भारत और चीन में आर्थिक मोर्चे पर शह और मात का खेल चलता ही रहता है। चीन ने हाल की दक्षिण एशिया में अपनी पहुंच और प्रभाव बढ़ाने के लिये व्यापार, वित्तीय मदद और राजनीयिक सम्बंधों का सहारा लिया। दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते कदम भारत के लिये राजनीतिक और आर्थिक रूप से घातक हैं। यद्यपि भारत नेपाल, श्रीलंका, भूटान, बंगलादेश के साथ आधे व्यापारिक सम्बन्ध रखता है और इसी वजह से भारत अब तक इन देशों के लिये सबसे आधा व्यापारिक साझेदार रहा है, लेकिन चीन पिछले कुछ दशक के दौरान दक्षिण एशियाई देशों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। चीन भारत को धमका रहा है, कभी वह सरहद के निकट युद्घाभ्यास करता है, हैलिकाप्टर और टैंक उतार कर भारत को आतंकित करने का प्रयास करता है। कभी वीडियो जारी कर दुष्प्रचार करता है, इसके बावजूद चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है। पिछले वर्ष दोनों देशों के बीच 71.5 विलियन डालर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था, हालांकि इस व्यापार में अधिकतर हिस्सेदारी चीन की है। चीन ने भारत को पिछले वर्ष करीब 61.3 अरब डालर का निर्यात किया था।
भारत चीन से मुख्य रूप से दूरसंचार उपकरण इलेक्ट्रानिक, कल पुर्जे, कम्प्यूटर हार्डवेयर, दवाएं, लोहा और स्टील का आयात करता है। उसे लौह अयस्क, सूती धागे, पेट्रोलियम उत्पाद, प्लास्टिक के कच्चे माल का निर्यात करता है। भारतीय बाजार में गहरी पैठ बना चुके चीन से भारत ने कई बार वहां के बाजार तक अपनी पहुंच बढ़ाने का आग्रह किया लेकिन चीन ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। चीन धूर्त है इसलिए भारत को हर कदम या सतर्क रहना है। अब चीन कीे मोबाइल कंपनियां भी भारत में अनैतिक आचरण करने लगी हैं। चीनी कंपनियां मोबाइल फोन से डाटा चोरी कर रही हैं। भारत में अधिकतर चीन की कंपनियों के ही मोबाइल बिक रहे हैं और बाजार पर उसका कब्जा है। इन कंपनियों के वीवो, ओप्पो, शियोमी, जियोनी सहित अनेक चीनी कंपनियां शामिल हैं। चीनी मोबाइल कंपनियां ग्राहकों की कान्टैक्ट लिस्ट और अन्य प्रकार की निजी सूचनायें चुरा रही हैं। यह सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा के तहत दंडनीय अपराध है। डाटा चोरी और उसके अनुचित इस्तेमाल के संदेह में केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 21 मोबाइल निर्माता कंपनियों को नोटिस जारी किया है। इसकी उम्मीद तो कम ही है कि चीन की कंपनियां डाटा चोरी किए जाने को स्वीकार करेंगी लेकिन ऐसे मामलों में कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए। इन कंपनियों की गैर कानूनी हरकतों से इनकी विश्वसनीयता पर काफी असर पड़ा है। एक ओर चीन युद्घ की धमकियां दे रहा है तो दूसरी तरफ उसकी कंपनियां भी भारतीयों के विरुद्घ दुस्साहसपूर्ण अनैतिक आचरण कर रही हैं। क्या ऐसा समय आ चुका है कि भारतीय स्वयं इस बात का फैसला करे कि वे चीन के उत्पादों का बहिष्कार करे और उनका मोह त्याग दे।
केन्द्र सरकार ने तो चीन से आयात घटाने के लिए वहां से आयातित 93 उत्पादों पर डंपिंग शुल्क लगाया हुआ है और 40 उत्पादों पर डंपिंग शुल्क लगाने पर विचार किया जा रहा है। सरकार ने चीन के जिन उत्पादों का आयात बड़े पैमाने पर हो रहा है उनका उत्पादन स्थानीय स्तर पर करने की ठोस योजना बनने का निर्देश सम्बन्धित मंत्रालयों को दे दिया है। चीन से आयातित होने वाले सामान को एकदम रोका नहीं जा सकता। चीनी माल से भारत के स्वदेश उद्योग चौपट हो रहे हैं। लघु और कुटीर उद्योग प्रभावित हो रहे हैं। चीन के लिए भारतीय बाजार अहम है। चीन को शिकस्त देने के लिये उस पर आर्थिक प्रहार करना जरूरी है। आर्थिक घेराबन्दी एक सशक्त माध्यम हो सकती है। भारतीय चीन में उत्पादित वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प लेकर चीन को करारा सबक सिखा सकते हैं। चीनी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी अपनाओ की मुहिम शुरू हो चुकी है। गणेश चतुर्थी, दशहरा, दीपावली पर चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम सोशल मीडिया पर भी जोर पकडऩे लगी है। उधर चीन की कंपनियों में निवेश की योजना बना रखी है। चीन दुष्प्रचार कर रहा है कि स्वदेशी मुहिम का खामियाजा भारत के आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा क्योंकि भारत में जितनी खपत है उसे भारतीय कंपनियां पूरी नहीं कर सकती। चीन की बौखलाहट बताती है कि वह भीतर से भयभीत भी है। भारतीयों के लिये यही अच्छा है कि चीन की हर चाल पर निगाह रखे और उसके मुताबिक जवाब दे। भारत की जनता चीनी माल का बहिष्कार का जवाब देने को तैयार भी है। आर्थिक प्रहार से चीन हिल उठेगा क्योंकि भारत जैसा बड़ा बाजार उसे कहां मिलेगा।