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नशे में घुलता युवा भारत

भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। उसी के बल पर देश विकास के पथ पर प्रगतिशील होने का दम्भ भर रहा है, वहीं युवा पीढ़ी अब नशे में घुलती जा रही है, यह चिन्ता का विषय होना ही चाहिए

भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। उसी के बल पर देश विकास के पथ पर प्रगतिशील होने का दम्भ भर रहा है, वहीं युवा पीढ़ी अब नशे में घुलती जा रही है, यह चिन्ता का विषय होना ही चाहिए फिल्म अभिनेता सुशांत की आत्महत्या के बाद ड्रग्स एंगल सामने आया तो प्याज के छिलकों की तरह फिल्म और टीवी की दुनिया की परतें उधड़ने लगी। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने फिल्म अभिनेत्रियों को तलब किया है। टीवी सीरियल अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के घर से ड्रग्स बरामद हो रहे हैं। नशे के खिलाफ ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म का निर्माण करने वाले  प्रोडयूसर भी ड्रग्स मामले की चपेट में आ गए। फिल्मों के जरिये समाज को संदेश देना अलग बात है, व्यक्तिगत आचरण अलग बात है। नामचीन अभिनेत्रियों का इस नशे की लत का शिकार होना कोई नई बात नहीं है लेकिन पकड़े गए लोगों में कुछ ने तो अभी युवा होने की उम्र ही पार की है, जिनके सामने लम्बा करियर पड़ा हुआ है। बालीवुड ही क्यों दक्षिण भारत में भी ड्रग्स मामले में बेंगलुरु में अभिनेत्रियों की गिरफ्तारी हुई है। टालीवुड में भी कुछ केस सामने आ रहे हैं। कुछ जगहों पर प्रतिबंधित नशीले पदार्थों के कारोबार के तथ्य लगभग उजागर हैं। पंजाब में जब ड्रग्स के धंधे ने व्यापक स्तर पर अपनी पहुंच बना ली तो सीमांत क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर युवा इसकी गिरफ्त में आते गए। ग्रामीण क्षेत्रों से हर रोज युवाओं की मौत की खबरें आने लगी। विधवाओं के क्रंदन ने पंजाब को हिला कर रख दिया। कितनी मांओं की गोद उजड़ गई और कितने वृद्ध पिताओं की सहारे की लाठी टूट गई। नशीले पदार्थों का धंधा गांव की सीमाओं से बाहर आकर पंजाब के शहरों तक फैल गया। अब इसने पड़ोसी राज्य हिमाचल तक विस्तार पा लिया है। यद्यपि राज्य सरकारें इस कारोबार को रोकने का प्रयास कर रही हैं लेकिन अभी तक इसे रोकने में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। पंजाब सीमांत राज्य है, वहां पाकिस्तान के जरिए नशीले पदार्थ की तस्करी की जाती है। पंजाब में बेरोजगारी, गरीबी पर अशिक्षा के चलते युवा वर्ग नशीले पदार्थों का शिकार होता गया लेकिन बालीवुड और दक्षिण भारत का फिल्म उद्योग ग्लैमर की चकाचौंध का शिकार हो गया। ड्रग्स पार्टियों के वीडियो सामने आ रहे हैं जिससे नामी सितारों के बच्चे नशे में दिखाई दे रहे हैं। जो लोग देशवासियों की नजर में आदर्श बने हुए हैं, उनके बच्चे खुद बिगड़े हुए हैं। फिल्मी पर्दे का मजबूत नायक नशे की हालत में अपने बेटे को पार्टी से पकड़ कर गाड़ी तक ला रहा है, इसे देख कर लगता है कि भले ही वह मजबूत हीरो हो लेकिन वास्तव में वह मजबूर पिता है। युवाओं में नशा इस कदर हावी है कि नशा अब मौज-मस्ती का नहीं अपितु आज की युवा पीढ़ी के लिए जरूरत बन गया है। दिल्ली, मुम्बई और महानगरों में रेव पार्टियों का चलन बढ़ा है। 
अनुभूतियों और संवेदनाओं का केन्द्र मनुष्य का मस्तिष्क होता है। सुख-दुःख का, कष्ट-आनंद का, सुविधा और अभावों का अनुभव मस्तिष्क को ही होता है। कई व्यक्ति इन समस्याओं से घबराकर अपना जीवन नष्ट कर डालते हैं परन्तु अनेक जीवन से पलायन करने के लिए मादक द्रव्यों को अपनाते हैं। जब उनका मनोबल कमजोर पड़ता है तो आत्महत्या कर लेते हैं। सिंथेटिक ड्रग्स तो इतने उत्तेजक होते हैं कि सेवन करने वालों को तत्काल ही आसपास की दुनिया से काट देते हैं और वह अपनी अनुभूतियों, संवेदनाओं तथा भावनाओं के साथ-साथ सामान्य समझबूझ और सोचने-विचारने की शक्ति खो बैठता है।
मुम्बई में डी गिरोह यानि माफिया डान दाउद के पाकिस्तान भागने से पहले ही ड्रग सिंडीकेट मजबूत था लेकिन महाराष्ट्र पुलिस ने डी गिरोह का नेटवर्क काफी हद तक विध्वंस किया था लेकिन अरबों रुपए का धंधा बंद नहीं हो सकता। अब सवाल यह है कि नशे की लत का शिकार युवा पीढ़ी को दोषी माना जाये या पीड़ित। यह सवाल सत्ता के सामने है और समाज के सामने है। अगर हम इन्हें पीड़ित मानते हैं तो उन्हें जीवन की सामान्य धारा में ​वापिस लाने के प्रयास ​किये जाने चाहिए। अभी तो चंद छोटी मछलियां ही काबू आई हैं अगर मुम्बई शहर का गंभीरता से विश्लेषण किया जाए तो वहां 80 फीसदी आबादी किसी न किसी प्रकार नशा करती मिल जाएगी। शराब का सेवन भी युवाओं में तेजी से फैल रहा है, जिससे महिलायें भी अछूती नहीं रही।
भारत में पाकिस्तान, नेपाल, बंगलादेश और म्यांमार के रास्ते नशीली दवाओं की तस्करी होती है। नशा सामाजिक सुरक्षा और विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है। नशे के कारोबार का मॉडयूल आतंकवाद से जुड़ा हुआ है। बालीवुड और नशे की शिकार अभिनेत्रियों को केन्द्रित कर मीडिया में सनसनी फैलाने से कुछ नहीं होगा बल्कि समस्या की गंभीरता को समझना होगा। नारकोटिक्स ब्यूरो फिल्मी दुनिया में मादक पदार्थों के तार तलाशने में जुटा है, परन्तु इस मामले में तब तक सफल नहीं माना जाएगा जब तक वह असली माफिया तक नहीं पहुंच जाती। ड्रग्स सिंडीकेट की कमर तब टूटेगी जब ड्रग्स की तस्करी रोक कर छोटे-छोटे आपूर्तिकर्ताओं की सप्लाई को रोका जाए। ड्रग्स के असली स्रोत को बंद किया जाए। मादक पदार्थों के मामले में खरीद-बिक्री का तंत्र बहुत जटिल है। यह कारोबार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत संगठित रूप से चलाया जा रहा है। कई प्रभावशाली लोग इसमें शामिल हैं। जब तक बड़ी मछलियों को नहीं पकड़ा जाता तब तक समस्या की जड़ पर प्रहार नहीं हो पाएगा। समाज से जुड़े सवालों को हवा में उछालना ठीक नहीं। ​चिन्तन इस बात पर होना चाहिये कि युवा पीढ़ी को नशों से दूर कैसे रखा जाए? कैसे अपनी संतानों को बचाया जाए? जब तक अभिभावक अपने बच्चों को बचाने का संकल्प नहीं लेंगे और कड़ी निगरानी नहीं रखेंगे तब तक कुछ नहीं होने वाला।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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