प्रकृति पर पार पाना मनुष्य के लिए कभी संभव नहीं रहा है परन्तु प्रकृति का दोहन करना उसके बस में अवश्य रहा है। भौतिकतावादी आर्थिक विकास की दौड़ के मूल में प्रकृति का अधिकाधिक दोहन ही छिपा हुआ है। इसके बावजूद प्रकृति में इतना सामर्थ्य है कि वह पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है मगर उनके लालच की नहीं, जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था। जिस जलवायु परिवर्तन और वैश्विक गर्मी का शोर हम सुनते रहते हैं वह प्राकृतिक साधनों का अधिकाधिक दोहन करने वाले मनुष्य के कृत्यों का दुष्परिणाम ही हो सकता है जिससे स्वयं प्रकृति का सन्तुलन ही बिगड़ रहा है। इसके बहुत से उदाहरण औद्योगीकरण के विकास से लेकर अन्तरिक्ष विज्ञान तक के क्षेत्र में अंधाधुंध वैज्ञानिक हस्तक्षेप को लेकर दिये जा सकते हैं जिनमें पृथ्वी की खनिज सम्पदा के दोहन से लेकर सुविधा व आराम तलबी के उपकरणों का विस्तार तक शामिल है। प्रकृति का सन्तुलन वायुमंडल से लेकर जल स्रोतों व नभ की गतिविधियों तक पर निर्भर करता है।
जाहिर है कि जब इन सभी स्रोतों से सीमा से अधिक छेड़छाड़ की जाती है तो प्रकृति प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकती है और मौसम इसका पहला शिकार बन सकता है। इसके क्रम में विसंगतियां उत्पन्न हो सकती हैं। रेगिस्तानी इलाके बाढ़ में डूब सकते हैं और समुद्री किनारे प्यासे रह सकते हैं। अल नीनो नामक मौसम बदलाव की नई अवधारणा प्रकट हो सकती है और गर्म इलाके सर्द हो सकते हैं और ठंडक में रहने वाले क्षेत्रों में गर्मी पसर सकती है। हम पूरे विश्व में आज यही सब देख रहे हैं जिसे ग्लोबल वार्मिंग का नाम दिया जा रहा है। वायुमंडल परिवर्तन के प्रभावों से आज का मनुष्य जूझ रहा है और विज्ञान के जरिये इस पर काबू पाने में असफल हो रहा है। अतः जब हम सुनते हैं कि संयुक्त अरब अमीरात जैसे सूखे व रेगिस्तान बहुल देश के दुबई शहर में बाढ़ का नजारा बना हुआ है तो हमें हल्का आश्चर्य होता है। इस देश में हुई बेमौसम बरसात से वैज्ञानिक व दुनिया हैरान है। इसके विश्व प्रसिद्ध दुबई शहर की सड़कों पर पानी खड़ा हुआ है जिस पर खड़े हुए वाहन आधे पानी में डूबे हुए हैं। इसके चकाचौंध वाले 'मालों' में भी पानी घुस चुका है। घरों और शापिंग काम्प्लेक्स में कई-कई फुट पानी घुस चुका है। पूरे शहर का यातायात अस्त-व्यस्त हो चुका है। इस शहर में कहीं कोई नदी नहीं है बल्कि देश की सरकार ने कृत्रिम झीलें व बर्फीले स्थान तैयार किये हैं।
इन सभी का अब कोई महत्व नहीं रह गया है, पूरा शहर ही किसी बाढ़ का बसेरा बन चुका है। दुबई शहर केवल रेत और मिट्टी पर ही बसा हुआ है अतः प्रशासन लोगों से अपील कर रहा है कि वे ऐसे स्थानों पर जाने से बचे जहां मिट्टी व रेत खुले में दिखाई पड़ते हैं क्योंकि पानी की वजह से वे धंस सकते हैं। बुर्ज खलीफा जैसी गगन चुम्बी इमारत के लिए और स्वर्ण खरीद-फरोख्त के लिए प्रसिद्ध दुबई शहर आज पानी का जखीरा बना हुआ है। जलवायु परिवर्तन का यह कहर कुछ वर्षों पहले भारत के राजस्थान राज्य ने भी देखा था जब इसके थार के रेगिस्तानी इलाकों में जमकर बारिश हुई थी बाड़मेर व जैसलमेर जैसे शहरों में बाढ़ के हालात बन गये थे। इससे कई वर्षों पहले पश्चिम एशिया के कुछ देशों में जमकर बर्फबारी भी हुई थी और दूसरी तरफ आजकल यूरोपीय देशों में जमकर गर्मी पड़ने की खबरें भी सुनने को मिल जाती हैं। इस परिवर्तन को हम जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग या वायुमंडल बदलाव आदि किसी भी नाम से पुकार सकते हैं मगर सबकी जड़ में एक ही कारण है कि प्रकृति अपने साथ किये गये बेतरतीब व्यवहार पर घनघोर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही है। इसके साथ ही भारत के मौसम वैज्ञानिक यह घोषणा भी कर रहे हैं। इस बार आगामी अप्रैल महीना ही गर्मी का जून महीना जैसा बन जायेगा और इस महीने में समय से पहले ही भारी गर्मी पड़ेगी। यह सब अल नीनो के प्रभाव से होगा।
भारतीय वैज्ञानिक विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा की गई भविष्यवाणी को आधार बनाकर यह घोषणा कर रहे हैं अल नीनो का प्रभाव मई महीने तक बना रहेगा। इसे देखकर कहा जा सकता है कि गर्मी पुराने रिकार्ड तोड़ सकती है परन्तु एेसा हो ही यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि अब सर्दियों का मौसम शुरू हो चुका है और इस बार ठंड की सीमा क्या होगी यह भी अल नीनो ही तय करेगा। अल नीनो के दुष्प्रभाव से पेड़-पौधे भी नहीं बच पाते हैं और खेती पर भी इसका बुरा असर पड़ता है जिससे पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं के जीवन पर बुरा असर पड़े बिना नहीं रहता। फसलों का क्रम बिगड़ जाता है और पैदावार चौपट रहने का खतरा खड़ा रहता है। इस संकट का कोई एक निश्चित आयाम नहीं होता। अतः वायुमंडल का संरक्षण आज के वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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