रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने हाल ही में मौजूदा वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट में 0.1 फीसदी की वृद्धि और चौथी तिमाही में 0.7 फीसदी की वृद्धि का भी अनुमान जताया है। ग्रामीण इलाकों में मांग में वृद्धि की वजह से अर्थव्यवस्था काे मजबूती मिलने के आसार हैं। रिजर्व बैंक ने वास्तविक जीडीपी ग्रोथ का संशोधित अनुमान माइनस 7.5 फीसदी जताया है। रिजर्व बैंक ने पिछले वर्ष अक्तूबर में पेश मौट्रिक नीति समीक्षा में कहा था कि वर्ष 20-21 में जीडीपी वृद्धि दर में 9.5 फीसदी की गिरावट का अनुमान है। यानी तीन माह में दो फीसदी की फास्ट रिकवरी का अनुमान है। कोरोना वायरस के चलते सब कुछ ठप्प रहने के बाद लॉकडाउन धीरे-धीरे खुलने के बाद अब बिजली और ईंधन की खपत पूर्व के स्तर जैसी हो गई है और लाकडाउन के बाद जीएसटी से रिकार्ड राजस्व मिला है। यह इस बात का संकेत है कि अर्थव्यवस्था अब पटरी पर आने लगी है और ऋणात्मक जीडीपी उतनी नहीं होगी जितनी आशंका जताई गई थी। यह सही है कि महामारी से पहले जैसी बढ़ौतरी के स्तर पर पहुंचने में कुछ समय लगेगा लेकिन वर्तमान के तमाम सूचक यही संकेत कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था के आधार मजबूत हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भरता का आह्वान करते हुए घरेलू उत्पादन और मांग बढ़ाने पर जोर दिया है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और प्रभावित क्षेत्रों की मदद के लिए केन्द्र सरकार तीन चरणों में लगभग 30 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा कर चुकी है। कोरोना काल में कल्याण कार्यक्रमों के जरिये समाज के गरीब और वंचित वर्गों को हर सम्भव सहायता दी गई है। इन उपायों की वजह से ही संकट काल में भी देश में कोई मानवीय संकट पैदा नहीं हो सका।
अन्तर्राष्ट्रीय रेटिंग एजैंसियों ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था के भावी परिदृश्य को काफी सुखद बताया है। रेटिंग एजैंसी मूडीज का आकलन है कि नए वर्ष में भारतीय कम्पनियों के लिए बेहतर अवसर पैदा हो सकते हैं। फिच ने भी अपने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में भारत के जीडीपी में गिरावट के अनुमान को संशोधित किया है। सभी संकेत तो उम्मीदें बंधाने वाले हैं लेकिन खाद्य पदार्थों की महंगाई विकास में बाधक बनती दिखाई दे रही है। कृषि उत्पादों की कीमतों में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। उपभोक्ता मुद्रास्फीति की दर लगातार 6 फीसदी से अधिक होने का अर्थ यह है कि लोगों की जेब पर मार बढ़ रही है। मुद्रास्फीति की दर का स्तर रिजर्व बैंक के निर्धारित लक्ष्य से बहुत अधिक है। कोरोना काल में मंदी के संकट के साथ मुद्रास्फीति की समस्या भी बड़ी गम्भीर रही। परेशानी का सबब यह भी है कि हमारे देश की आबादी का बड़ा हिस्सा गरीब और निम्न आर्य वर्ग से है। रोजमर्रा की चीजों की कीमतों में बढ़त भी उनके बजट पर असर डाल सकती है। खाद्य मुद्रास्फीति के साथ-साथ कोरोना संकट से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर सबसे अधिक असर पड़ा है। मुद्रास्फीति के साथ-साथ यह सेवाएं भी महंगी हो चुकी हैं। अब बजट आने वाला है और लोगों को उम्मीद है कि सरकारी कल्याणकारी योजनाओं और राहत कार्यक्रमों से उन्हें लाभ होगा लेकिन वित्त विशेषज्ञों को आशंकाएं भी हैं कि अगर मुद्रास्फीति कम करने के लिए बाजार में नगदी की मौजूदा बड़ी मात्रा को कम किया गया तो आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है क्योंकि नगदी कम होने से मांग पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। देश में बढ़ी हुई बेरोजगारी और लोगों की आमदनी घटने की हालत में महंगाई की मार असहनीय हो सकती है।
भारत में हमेशा खाद्य पदार्थों और तेल की कीमतें लोगों को परेशान करती हैं। पैट्रोल-डीजल की कीमतें उच्च स्तर पर हैं। महामारी से त्रस्त अर्थव्यवस्था में सुधार तो हो रहा है लेकिन महंगाई सुधार की प्रक्रिया में बड़ा अवरोध है। दिसम्बर-जनवरी में सब्जियों और कृषि उत्पादों की आवक से उनकी कीमतों में मामूली कमी आई परन्तु तेल, रसोई गैस की बढ़ी कीमतों ने यह कमी बेअसर कर दी। फिलहाल यह कोशिश होनी ही चाहिए कि जरूरी चीजों के दाम नियंत्रण में रहें। किसान आंदोलन ने नई चिंताएं पैदा कर दी हैं। किसान आंदोलन से रेलवे को 24 करोड़ का नुक्सान हो चुका है।
एसोचेम की रिपोर्ट के मुताबिक किसान आंदोलन के चलते रोजाना देश को 3500 करोड़ का नुक्सान हो चुका है। आंदोलन के 45 दिन पूरे हो चुके हैं। पंजाब, हरियाणा, िहमाचल और जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंच रही है। टोल प्लाजा ठप्प होने से भी नुक्सान हो रहा है। किसान आंदोलन से सप्लाई की चेन प्रभावित हुई है। आने वाले दिनों में इसका असर दिखाई पड़ेगा। स्थिति ठीक होने में काफी समय लग जाएगा। सरकार के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं एक तो अर्थव्यवस्था को गति देना, दूसरा महंगाई पर काबू पाना। उम्मीद है कि सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा निर्णायक कदम उठाए जाएंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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