अब सबकी नजरें आम बजट पर हैं। यह बजट कोरोना महामारी की छाया में पेश किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि बजट कैसा होगा? उन्होंने कहा है कि कोराेना महामारी के चलते पिछले वर्ष वित्त मंत्री को चार-पांच बजट देने पड़े हैं और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए जाने वाला बजट उसी की शृंखला के तौर पर देखा जाना चाहिए। वित्त मंत्री ने बजट से पहले आर्थिक सर्वे करके भावी अर्थव्यवस्था की तस्वीर दिखाने की कोशिश की है। हर वर्ष पेश किए जाने वाले आर्थिक सर्वेक्षण को आर्थिकी पर सरकारी रिपोर्ट माना जाता है, जिसमें जहां देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति से अवगत कराया जाता है वहीं भावी नीतियों और चुनौतियों का जिक्र होता है। आर्थिक सर्वेक्षण ने इस बात का स्पष्ट संदेश दे दिया है कि कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुक्सान पहुंचाया है और आने वाले समय में हम सबको इसका असर झेलने के लिए तैयार रहना होगा। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार इस वर्ष अर्थव्यवस्था में 7.7 फीसदी का संकुचन रहेगा। अगले वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार की उम्मीद जताते हुए विकास की दर 11 प्रतिशत रहने की बात कही गई है। सर्वे बताता है कि कोरोना काल से पूर्व की स्थिति में आने के लिए कम से कम दो वर्ष का समय लगेगा। हो सकता है कि अर्थव्यवस्था को पूरी तरह पटरी पर लाने के लिए इससे ज्यादा समय लग जाए।
कोरोना काल में कृषि क्षेत्र को छोड़ कर सभी क्षेत्रों में गिरावट का रुख रहा। सर्वे में कृषि क्षेत्र की विकास दर 3.4 फीसदी रहने का अनुमान है। उद्योग और सेवा क्षेत्र की तस्वीर भी बदरंग है। चालू वित्त वर्ष में औद्योगिक क्षेत्र में 9.6 फीसदी और सेवा क्षेत्र में 8 फीसदी से ज्यादा गिरावट का अनुमान है। अभी तक लॉकडाउन में बंद हुए उद्योग धंधे, लघु एवं कुटीर उद्योगों की गतिविधियां सामान्य नहीं हुई हैं। बड़ी संख्या में उद्योग चालू ही नहीं हुए हैं। फिल्म उद्योग, शिक्षा का क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ है। हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय एजैंसियों तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अगले वित्तीय वर्ष में भारत को दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था बताए जाने से औद्योगिक क्षेत्र खासे उत्साहित हैं लेकिन यह भी वास्तविकता है कि कोरोना संकट से निपटने की बड़ी कवायद में खर्च काफी अधिक हुआ, फलस्वरूप राजकोषीय घाटा काफी बढ़ चुका है। दूसरी ओर सरकार के करों और विनिवेश के लक्ष्य पूरे नहीं हो पाए। कोरोना काल में पहले जान बचाना जरूरी था क्योंकि जान है तो जहान है लेकिन अब जबकि हम कोरोना वायरस से मुक्ति की ओर अग्रसर हैं तो हमें ‘जान भी है और जहान भी है’ पर चलना होगा। कर्ज भुगतान में रियायतों के चलते बैंकिंग क्षेत्र काफी दबाव में है। बैंकों का एनपीए काफी बढ़ चुका है।
आर्थिक सर्वे में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्चे को ढाई से तीन फीसदी तक ले जाने की बात कही गई है। कोरोना काल में हमने देखा कि हमारा स्वास्थ्य क्षेत्र काफी कमजोर है। हमें भविष्य में किसी भी महामारी का सामना करने के लिए खुद को तैयार रहना होगा। इसके लिए देश में बड़े अस्पताल भी चाहिए और ग्रामीण स्तर पर बुनियादी स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढांचा भी चाहिए।
अब सवाल यह है कि इन परिस्थितियों को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कैसा बजट पेश करेंगी। हर किसी को उत्सुकता है कि वित्त मंत्री के पिटारे में विभिन्न वर्गों के लिए क्या-क्या योजनाएं हैं? वेतनभोगी यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि आयकर में कोई छूट मिलेगी ताकि उसकी जेब में कुछ बचत आ जाए। कार्पोरेट टैक्स के बारे में क्या रहेगा? शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, बैंकिंग के संबंध में क्या योजनाएं हैं। क्या जनकल्याण की योजनाएं प्रभावित होंगी या कुछ नई योजनाएं आएंगी? महामारी से प्रभावित हर वर्ग बजट से उम्मीदें लगाए बैठा है लेकिन वित्त मंत्री के सामने चुनौतियां काफी बड़ी हैं। कोरोना काल में केन्द्र सरकार ने राहत पैकेज घोषित किए थे। सरकार ने लघु, सूक्ष्म आैर मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन, प्रवासी मजदूरों एवं किसानों के लिए राहत पैकेज, कृषि विकास, व्यवसायों को अतिरिक्त ऋणों की व्यवस्था, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस समेत कई उपायों की घोषणा की थी। रियल एस्टेट क्षेत्र को राहत और प्रोत्साहन देने और इलैक्ट्रानिक्स उत्पादों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड उपायों की घोषणा की गई थी। वित्त मंत्री की कोशिश होगी कि बजट में प्रत्येक के लिए कुछ न कुछ हो। मांग बढ़ाने के लिए जरूरी है कि आम आदमी के पास पैसे आ जाएं। बचत होगी तभी वह बाजार में आएगा और खरीदारी करेगा। मांग बढ़ने से ही उत्पादन बढ़ेगा। उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक श्रम की जरूरत पड़ेगी। इससे रोजगार के अवसर सृजित होंगे। अर्थव्यवस्था का चक्र मांग और उत्पादन से चलता है लेकिन विषम परिस्थितियों में लोगों को ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए। उन्हें जो भी मिलेगा, उसी को ध्यान में रखते हुए दो-ढाई साल चलना ही होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com