प. बंगाल के 24 परगना जिले के सन्देशखाली कस्बे में जिस तरह प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) के अधिकारियों समेत केन्द्रीय आरक्षी पुलिस के जवानों के साथ भी वहां के स्थानीय लोगों की भीड़ ने मारपीट व हिंसा की उसकी गांधी के इस देश में घनघोर निन्दा होनी चाहिए। ई.डी. के अधिकारी इस कस्बे में तृणमूल कांग्रेस के एक नेता के घर राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में हुए कथित घपले की जांच के सन्दर्भ में छापा मारने गये थे। लगभग 800 से ज्यादा लोगों की भीड़ ने उनके साथ हिंसा की और ई.डी. के तीन अफसरों को जख्मी भी कर दिया। निश्चित रूप से यह कानून व्यवस्था के विरुद्ध किया गया गंभीर अपराध है जिसके लिए राज्य की ममता बनर्जी सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए। इस सिलसिले में अब तक छह लोग गिरफ्तार भी कर लिये गये हैं परन्तु बात गिरफ्तारी से बहुत ऊपर की है जिस पर राजनीति की जा रही है जबकि यह मामला पूर्ण रूप से आपराधिक है। यह मांग भी की जा रही है कि इसकी जांच एनआईए से कराई जानी चाहिए।
राज्य सरकार भी लोगों द्वारा चुनी गई है और केन्द्र सरकार भी लोगों द्वारा ही चुनी गई है तो एक-दूसरे पर अविश्वास का कारण तभी बन सकता है जब सन्देशखाली में ई.डी. पर किये गये हमले की जड़ में राजनीति हो। राज्य में ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस की सरकार है और जिस नेता के घर ई.डी. छापा मारने जा रही थी वह भी इसी पार्टी के हैं। अतः राज्य सरकार का ही पहला दायित्व बनता है कि वह घटना के मूल तक जाये और दोषियों को कानून के हवाले करे। पं. बंगाल भारत का अनूठा राज्य है। यहां एक से बढ़कर एक गांधीवादी नेता भी हुए हैं और मार्क्सवादी या वामपंथी विचारधारा के नेता भी हुए हैं। इस राज्य को देश का दिमाग तक कहा जाता है अतः यहां की राजनीति भी इसी के अनुरूप होनी चाहिए परन्तु हम उलटा होते हुए देख रहे हैं। इसे प. बंगाल का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है।
आजादी के बाद से इस राज्य की राजनीति में हिंसा तो रही है परन्तु इसका चरित्र राजनैतिक दलों द्वारा एक-दूसरे को निपटाने में ही प्रमुख रहा है। अतः सन्देशखाली की घटना को भी कुछ लोग इसी नजरिये से देख रहे हैं। अब लोकसभा चुनावों में चार महीने का समय भी नहीं बचा है और एेसे समय में किसी केन्द्रीय जांच एजेंसी के विरुद्ध हिंसा होना कई प्रकार के सन्देह भी व्यक्त करती है परन्तु यह कहना पूरी तरह उचित नहीं होगा कि सन्देशखाली की घटना से पूरा संवैधानिक ढांचा ही चरमरा गया है। निश्चित रूप से यह कानून-व्यवस्था के चरमराने की एक गंभीर घटना है परन्तु इसके आधार पर राज्य सरकार को सिरे से खारिज करना बहुत जल्दबाजी होगी। ममता बनर्जी स्वयं सड़कों पर संघर्ष करके प. बंगाल की लोकप्रिय नेता बनी हैं अतः वह जानती हैं कि सड़कों पर राजनैतिक दल किस प्रकार की राजनीति में संलिप्त रहते हैं। जरूरत इस बात की है कि एेसी कोई भी घटना देश के किसी अन्य हिस्से में न होने पाये जिससे अराजकता पैदा होने की किसी भी संभावना को पनपने से पहले ही रोका जा सके। प. बंगाल की जनता प्रबुद्ध है और महान बांग्ला संस्कृति यहां के बंगाली लोगों को सभी भेदभाव से ऊपर 'भद्र लोक' का विचार प्रस्तुत करती है। बांग्लादेश हमारे सामने प्रत्यक्ष उदाहरण है जो पाकिस्तान के तास्सुबी लबादे को तार- तार कर पूर्वी पाकिस्तान से 1971 में बांग्लादेश बना था। ई.डी. पर हमले का नतीजा लोकतन्त्र के लिए घातक माना जा सकता है क्योंकि इस तन्त्र में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है।
हमने 1947 में लोकतन्त्र की स्थापना भी पूरे अहिंसक आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता का खात्मा करने के बाद ही की थी। पूरी दुनिया में यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है जो हमें विशिष्टता प्रदान करती है। लोकतन्त्र में लोग या जनता हमेशा केन्द्र में रहती है। इसकी प्रशासन प्रणाली लोगों को ही सशक्त बनाते हुए उनके सर्वांगीण विकास की सीढ़ी तैयार करती है। हिंसा से केवल फौरी तौर पर ही किसी को कष्ट देकर आत्म प्रफुल्लित हुआ जा सकता है जबकि गांधी हमें सविनय अवज्ञा या सत्याग्रह का अस्त्र देकर गये हैं। अतः कहीं न कहीं हमें राजनीति के चरित्र पर निगाह डालनी होगी और सोचना होगा कि लोगों में व्यग्रता क्यों बढ़ जाती है। राजनीति में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हमारे पास बहुत से कानून हैं परन्तु फिर भी यह रुकने का नाम इसलिए नहीं लेता कि इस मुद्दे पर भी जमकर राजनीति की जाती है।
प. बंगाल में तो नारदा से लेकर शारदा तक कितने ही भ्रष्टाचार के कांड हो चुके हैं। इनकी जांच के लिए जो प्राधिकृत एजेंसियां हैं वे अपना काम कानूनी रूप से ही करती हैं। इस प्रकार यदि इस राज्य में कोई सार्वजनिक वितरण प्रणाली में घोटाला हुआ है तो उसका सच बाहर आना ही चाहिए और ई.डी. यदि यह कार्य निष्कपट भाव से कर रहा है तो उसे जनता का सहयोग भी मिलना चाहिए। यदि जनता को लगता है कि कहीं कोई अन्याय हो रहा है तो उसका विरोध केवल गांधीवादी तरीके से ही करने का अधिकार हमारा संविधान हमें देता है। अतः ममता दीदी को भी अपने-पराये का भेद छोड़ कर ईडी के साथ सहयोग की भावना से काम करना चाहिए और अपनी पार्टी के नेताओं को यही सन्देश देना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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