चुनाव आयोग ने यद्यपि चुनाव कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है और आचार संहिता भी लागू नहीं हुई है परंतु लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में तलवारें खिंच गई हैं। एक तरफ सत्ता पक्ष की तरफ से भाजपा की प्रचार की कमान जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं संभाले हुए हैं वहीं दूसरी तरफ संयुक्त विपक्ष की ओर से किसी एक नेता ने कमान नहीं संभाली है बल्कि अलग-अलग दलों के नेता अपने अलग-अलग क्षेत्र में अपनी-अपनी राजनीतिक सेनाओं का नेतृत्व कर रहे हैं। वैसे गौर से देखा जाए तो विपक्ष का नेतृत्व कांग्रेस नेता राहुल गांधी करते हुए लग रहे हैं परंतु उनके पीछे पूरा विपक्ष संगठित होकर खड़ा हो ऐसा नहीं कहा जा सकता। राहुल गांधी इस समय अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रहे हैं और उनका साथ उनकी बहन श्रीमती प्रियंका गांधी भी बीच-बीच में देती हुई लग रही हैं।
लोकसभा के लिए चुनाव साधारण चुनाव नहीं कहे जा सकते क्योंकि इन चुनावों में एक तरफ जहां विपक्ष बिखरा हुआ दिखाई दे रहा है वहीं सत्ता पक्ष बहुत संगठित और मजबूत लग रहा है और इसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एकल हाथों में है। श्री मोदी की अपनी लोकप्रियता भी काफी ऊंचाई पर मानी जाती है जिसकी वजह से भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई पड़ता है परंतु लोकतंत्र में चुनाव की बागडोर जनता के हाथ में होती है और जनता चुनाव से पहले किस पक्ष में झुक जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। जनता को अपने पक्ष में झुकने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष अपना-अपना विमर्श उसके बीच रखते हैं। भाजपा का विमर्श यह दिखाई पड़ रहा है कि वह अपने पिछले 5 सालों का हिसाब-किताब तो दे ही रही है परंतु अपने से 10 साल पहले के विपक्ष के सत्ता में रहते हुए उसके द्वारा किए गए कामों का हिसाब-किताब भी जनता को दे रही है। जनता यह सब देख रही है और उसी के हिसाब से चुनाव में जाने का मन भी बन सकती है। परंतु इतना निश्चित है कि विपक्ष भी मोदी सरकार के खिलाफ अपना मजबूत विमर्श खड़ा करना चाहता है और इस प्रयास में वह मोदी सरकार की विफलताओं को सामने लाने की कोशिश कर रहा है। उसके मुख्य मुद्दे बेरोजगारी व महंगाई हैं तथा वह राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को भी केंद्र में लाने की कोशिश कर रहा है।
चीन और पाकिस्तान के मोर्चे पर वह मोदी सरकार को असफल मानता है। जनता इन पर कितना विश्वास करेगी यह तो मतदान के समय ही पता लगेगा। क्योंकि चीन लगातार ऐसी हरकतें कर रहा है जिससे भारतवासियों के मन में आशंकाएं पैदा होती रहती हैं। वैसे यदि हम गौर से देखें तो एक तरफ किसान आंदोलनरत हैं और दूसरी तरफ युवाओं में बेरोजगारी भी चुनावी मुद्दा है। परंतु बीजेपी ने अपने विमर्श से देश की अर्थव्यवस्था में आए सुधार से इन मुद्दों को हल्का करने का प्रयास जरूर किया है और इसमें उसे सफलता भी मिली है। महंगाई की दर का जहां तक सवाल है तो यह नियंत्रित श्रेणी में ही घूम रही है हालांकि भारत के औसत आम आदमी की आय में कमी हुई है परंतु इसके बावजूद आम जनता में भाजपा की राष्ट्रवादी सोच और संस्कृत पुनरुत्थान की नीतियों के प्रति आकर्षण बड़ा है। लोकसभा चुनाव में देखना केवल यह होगा कि मतदाताओं में विपक्ष और सत्ता पक्ष के विमर्श से किसके विमर्श को प्रमुखता मिलती है। यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि फिलहाल श्री मोदी की लोकप्रियता की काट विपक्ष के पास नहीं है और लोग अक्सर यह बात कर रहे हैं कि यदि मोदी नहीं तो कौन। इसके समानांतर राहुल गांधी पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों को एक मंच पर लाकर आर्थिक विषमता के खिलाफ मजबूत वैकल्पिक विमर्श खड़ा कर देना चाहते हैं। यह 73 प्रतिशत लोगों का समूह है जो भारत के राष्ट्रवादी और सांस्कृतिक विमर्श के प्रति आकर्षित जनसमूहों का जवाब हो सकता है।
निश्चित रूप से यह चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम विपक्षी समूह है। विपक्ष के पास हालांकि अनुभवी नेताओं की कमी नहीं है, जिनमें मल्लिकार्जुन खड़गे और शरद पवार का नाम लिया जा सकता है, परन्तु मोदी बनाम विशिष्ट विपक्षी नेता के युद्ध का समय अब गुजर चुका है आैर विमर्श मोदी बनाम विपक्ष का ही है।