अफगानिस्तान में नया राष्ट्रपति चुनने के लिए हुए मतदान के दौरान बम धमाकों ने अनेक लोगों की जान ले ली तथा अनेक लोग घायल हुए। बम धमाकों से लगातार दहल रहे अफगानिस्तान में मतदान वहां के लोगों की बहादुरी को ही दिखाता है। मतदान के दौरान ही राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तालिबान से अपील की है कि वो लोगों का सम्मान करें और जंग खत्म करें। उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान के लिए शांति के दरवाजे खुले हैं। यद्यपि राष्ट्रपति चुनावों में 18 उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन मुख्य मुकाबला राष्ट्रपति अशरफ गनी और चीफ एक्जीक्यूटिव अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह के बीच माना जा रहा है।
तालिबान की धमकियों और मतदान केन्द्र पर बम धमाकों के बावजूद भारी संख्या में महिलाएं वोट देने के लिए निकलीं, यह इस बात का प्रमाण है कि उनकी आस्था लोकतंत्र में है। अफगानिस्तान में लोकतंत्र समर्थक लोगों को उम्मीद है कि इस बार चुनावों में धांधली नहीं होगी और जनादेश स्पष्ट होगा। पिछले चार दशकों से अफगानिस्तान जंग के हालात से जूझ रहा है। अमेरिका संघर्ष को खत्म करने के लिए तालिबान से वार्ता कर रहा था लेकिन शांति की कोई गारंटी नहीं होने पर अमेरिका ने वार्ता तोड़ दी। तालिबान फिर धमाके करके लोगों की जानें लेने लगा।
नया राष्ट्रपति चुनते समय लोगों के एजैंडे में सबसे ऊपर ऐसे व्यक्ति को चुनना है जो शांति स्थापित कर सके। अफगानिस्तान का अवाम इस समय सेना, तालिबान और दूसरे विद्रोहियों के बीच टकराव में फंसा हुआ है। देश के कई हिस्सों में तालिबान का नियंत्रण है, वहां अफगानिस्तान सरकार का कोई दखल ही नहीं है। राष्ट्रपति चुनावों में पूर्व कमांडर व युद्ध अपराधों के आरोपी रहे गुलबुदीन हिकमतयार भी मैदान में हैं। हिकमतयार पर 1990 के दशक में अफगान गृह युद्ध के दौरान हजारों नागरिकों की हत्या का आरोप लगा था। 2016 के शांति समझौते के तहत हिकमतयार को माफी दे दी गई थी। दो दशकों तक बाहर रहने के बाद हिकमतयार 2017 में देश में लौटे हैं।
ताजिक समुदाय से संबंध रखने वाले अब्दुल लतीफ पेदराम, अफगानिस्तान की खुफिया एजैंसी के दो बार प्रमुख रहे रहमतुल्ला नबील, रूस-तालिबान विरोधी कमांडर रहे अहमदशाह मसूद के छोटे भाई अहमद वली मसूद भी चुनाव मैदान में हैं। भारत अफगानिस्तान का सबसे बड़ा सहयोगी है लेकिन उसने कभी अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी नहीं की। भारत अफगानिस्तान के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अफगानिस्तान के 31 प्रांतों में उसकी परियोजनाएं चल रही हैं और उनकी लागत दो अरब डालर तक पहुंच चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिसम्बर 2015 में अफगानिस्तान की संसद का उद्घाटन किया, इसका निर्माण भारत ने ही किया था। इस संसद भवन के एक ब्लाक का नाम भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर है। भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह में निवेश किया हुआ है। भारत के लिए यह बंदरगाह ईरान-अफगानिस्तान के अलावा मध्य एशिया में व्यापार के लिए एक द्वार की तरह है। अब भारत, ईरान और अफगानिस्तान को आपसी व्यापार के लिए पाकिस्तान की अनुमति की जरूरत ही नहीं रह गई। अफगानिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति अशरफ गनी भारत समर्थक हैं। अब्दुल्ला अब्दुल्ला को भी भारत समर्थक माना जाता है।
अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद अब्दुल्ला अब्दुल्ला अपना परिवार भारत ले आए थे। तालिबान के शासन को छोड़कर अफगानिस्तान भारत का मित्र रहा है, परन्तु यह ऐसा अभिशप्त देश है, जिसके भाग्य में राजनीतिक स्थिरता नहीं रही है। 1979 से पूर्व अफगानिस्तान में सोवियत सेना रही। मुस्लिम विद्रोहियों ने सोवियत सेना की मौजूदगी के खिलाफ छापामार युद्ध छेड़ दिया। 15 हजार सोवियत सैनिक मारे गए। अंततः सोवियत सेना को लौटना पड़ा। अमेरिका ने 9/11 के आतंकी हमले के बाद ओसामा बिन लादेन की तलाश में अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। अमेरिका ने अफगानिस्तान में शांति स्थापना की भरपूर कोशिश की लेकिन पाकिस्तान ने उसे धोखा दिया। पाकिस्तान वहां आतंकी नेटवर्क को मजबूत बनाता रहा।
पाकिस्तान अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी नहीं देखना चाहता, लेकिन भारत-अफगानिस्तान मैत्री इतनी मजबूत हो चुकी है कि अब भारत को वहां कोई खतरा नहीं है। अमेरिकी युद्ध से थक चुके हैं और वह अब अफगानिस्तान को छोड़ने के इच्छुक हैं। पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपनी समर्थक सरकार चाहता है। देखना होगा स्थितियां क्या मोड़ लेती हैं तथा राष्ट्रपति कौन होगा, यह कुछ दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि नई सरकार शांति का मार्ग तलाश लेगी।