जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की तैयारियों के सिलसिले में मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार, आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधु ने श्रीनगर में राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत शुरू कर दी है। अब यह तय है िक जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव अगले महीने सितम्बर में होंगे। केन्द्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने जम्मू में आयोजित भाजपा के एकात्म महोत्सव रैली को सम्बोधित करते हुए जम्मू-कश्मीर में सितम्बर में चुनाव कराए जाने की बात कही है। चुनाव की तिथियां निर्वाचन आयोग ही तय करेगा। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के 6 वर्ष बाद चुनाव होने जा रहे हैं। पिछला विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था और 2018 में उसे भंग कर िदया गया था। अनुच्छेद 370 हटाए जाते समय जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया था और जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर उसे भी केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल चुनाव आयोग को 30 सितम्बर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का आदेश दिया था। निर्वाचन आयोग ने पहले ही स्पष्ट कर िदया था कि राज्य विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद ही कराए जाएंगे।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में 107 विधानसभा सीटों का प्रावधान था, जिसमें 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) की खाली रखी जाती थी। बाद में डीलिमिटेशन में सीटों की संख्या बढ़ाकर पीओके की 24 सीटों के साथ 114 कर दी गई। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल चुनावों को लेकर अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं लेिकन चुनावों को लेकर बहुत सारे सवाल भी उठ रहे हैं। चुनावी परिदृश्य अभी भी स्पष्ट होना बाकी है। क्योंकि अभी भी बहुत सारी दुविधाएं मौजूद हैं। भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद ही चुनावों की तैयारियां शुरू कर दी थीं। जम्मू-कश्मीर की 5 लोकसभा सीटों पर 35 वर्ष बाद 58 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई जिससे यह स्पष्ट हो गया कि जम्मू-कश्मीर की आवाम की लोकतंत्र में गहरी आस्था है और वह राष्ट्र की मुख्य धारा से अलग नहीं रहना चाहते। जम्मू-कश्मीर की 5 में से सिर्फ 2 लोकसभा सीटें हिन्दू बाहुल्य सीट ऊधमपुर और जम्मू से ही अपने उम्मीदवार उतारे थे और दोनों पर ही उसे जीत हासिल हुई थी। भाजपा ने घाटी की 3 सीटों पर कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था। लोकसभा चुनावों में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को बारामूला, अनंतनाग से करारी हार का सामना करना पड़ा था।
इस बार लोकसभा चुनाव बीजेपी और एनसी ने एक समान दो-दो सीटों पर जीत हासिल की है। हालांकि वोटिंग शेयर के मामले में बीजेपी 24.32 फीसदी के साथ अव्वल रही है, इसके बाद अन्य उम्मीदवारों ने 23.89 फीसदी वोट शेयर किए जबकि नेशनल कांफ्रेंस ने 22.42 फीसदी वोट शेयर किया। इस बार कांग्रेस ने 19.28 फीसदी वोट हासिल किया, हालांकि उन्हें किसी सीट पर कामयाबी नहीं मिली। जम्मू-कश्मीर आम चुनाव में ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक ने 0.05 फीसद, बीएसपी ने 0.37 फीसदी, जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी (भीम) ने 0.45 फीसदी वोट हासिल किए। जम्मू-कश्मीर की प्रमुख पार्टियों में से एक पीपुल्स डेमोक्रेडिट पार्टी ने महज 8.56 फीसदी वोट हासिल किए। नोटा को भी 0.67 फीसदी मतदाताओं ने वोट देकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया और मजबूत लोकतंत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
अब सवाल यह है कि क्या चुनावों से पहले जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा या नहीं। फिलहाल इस बात की सम्भावनाएं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही हैं। नेशनल कांफ्रैंस और पीडीपी का चुनावों को लेकर रुख क्या रहेगा यह अभी साफ होना बाकी है। नेशनल कांफ्रैंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि वह स्वयं चुनाव नहीं लड़ेंगे और अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती भी है तो भी वह मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे क्योंकि उन्हें किसी भी अधिकारी को बदलने या नियुक्ति के लिए उपराज्यपाल के दफ्तर के बाहर इंतजार करना अच्छा नहीं लगेगा। पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी फिलहाल विधानसभा चुनाव से दूर रहने का फैसला किया है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को दिल्ली के उपराज्यपाल की तरह प्रशासनिक शक्तियां दी गई हैं। यहां पर भी सरकार बिना एलजी की अनुमति के ट्रांस्फर, पोस्टिंग नहीं कर सकेगी। चुनावों के बाद नई सरकार का गठन होगा तो भी चुनी हुई सरकार से ज्यादा शक्तियां उपराज्यपाल के पास रहेंगी। यानि कि दिल्ली की तरह जम्मू-कश्मीर में भी उपराज्यपाल ही बॉस होंगे। उपराज्यपाल चुनावों से पहले तबादलों और नियुक्तियों में व्यस्त है। नेशनल कांफ्रैंस आैर पीडीपी का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के लोग शक्तिहीन, रबड़ स्टैंप मुख्यमंत्री से बेहतर के हकदार हैं िजन्हें अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए भी उपराज्यपाल से भीख मांगनी पड़ेगी।
भारतीय जनता पार्टी राज्य में नई बनी पार्टियों से रिश्ते रखकर विकल्प तैयार करना चाहती है। इनमें अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी और गुलाम नबी आजाद की डैमोक्रेटिक प्रोग्रैसिव आजाद पार्टी शािमल है। अल्ताफ बुखारी की पार्टी और गुलाम नबी आजाद की पार्टी का कोई जनाधार नहीं है। प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी भी छदम नाम से चुनाव में उतर सकती है। लोकसभा चुनावों में भी जेल में बंद अलगाववादी रािशद इंजीनियर की जीत ने भी केन्द्र के कान खड़े िकए हुए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि अलगाववादी हुर्रियत इस समय पूरी तरह से अलग-थलग पड़ी हुई है लेकिन पाकिस्तान में बैठे आका चुनावों में गड़बड़ी फैलाने के लिए साजिशें रच सकते हैं। जम्मू सम्भाग में पिछले दिनों एक के बाद एक आतंकी हमले भी सुरक्षा बलों के िलए चुनौती बने हुए हैं। भाजपा की योजना जम्मू संभाग में 35-38 सीटें जीतने की है। चुनावों के िलए जहां पाकिस्तानी साजिशों को िवफल करना जरूरी है वहीं यह भी देखना होगा कि जम्मू-कश्मीर की आवाम का नजरिया क्या है।