भारत और यूक्रेन के रिश्तों का सिलसिला 1990 में शुरू हुआ। यूक्रेन जिस समय सोवियत संघ का हिस्सा था तब से ही भारत के संबंध काफी अच्छे थे। जब सोवियत संघ टुकड़ों-टुकड़ों में बंटा तो भारत दुनिया का पहला ऐसा देश था जिसने यूक्रेन को मान्यता दी। दिसम्बर 1991 में भारत सरकार ने यूक्रेन को एक संप्रभु देश का दर्जा दिया था। जनवरी 1992 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की शुरूआत हुई। 1993 में यूक्रेन ने नई दिल्ली में अपना उच्चायोग खोला। दोनों देशों के बीच 17 द्विपक्षीय संबंधों पर हस्ताक्षर भी हुए और यूक्रेन भारत का व्यापारिक भागीदार बन गया। वर्ष 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासन में भारत ने पांच परमाणु परीक्षण किए तो यूक्रेन ने अपना रुख बदल लिया। यूक्रेन ने दुनिया के उन देशों के साथ हाथ मिला लिया जिन्होंने परमाणु परीक्षण करने पर भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। इतना ही नहीं यूक्रेन भारत का विरोध करने वाले देशों का साझीदार भी बन गया। उसने पाकिस्तान को अपना दोस्त बना लिया और सबसे ज्यादा हथियार उसने पाकिस्तान से खरीदे। कई मामलों में उसने पाकिस्तान का साथ दिया।
दुनिया में समीकरण बदलते देर नहीं लगती। दुनिया में दोस्त और दुश्मन बदलते रहते हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच भारत के दौरे पर आई यूक्रेन की उप विदेश मंत्री ऐमिन जापारोवा ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की द्वारा लिखी चिट्ठी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दी है, जिसमें उन्होंने भारत के साथ रिश्तों को मजबूत बनाने की इच्छा जताई है। पिछले साल 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। उसके बाद यूक्रेन से किसी नेता की यह पहली भारत यात्रा थी। ऐमिन ने दो टूक शब्दों में कहा है कि विश्वगुरु के तौर पर भारत युद्ध में ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सकता है। युद्ध रुकवाने की दिशा में उसने किसी भी तरह के प्रयासों की यूक्रेन सराहना करेगा। यूक्रेन जानता है कि भारत और रूस दोनों मित्र देश हैं और यह दोस्ती कभी टूटने वाली नहीं। यूक्रेन चाहता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रूसी राष्ट्रपति के साथ युद्ध रुकवाने के लिए बातचीत करें और उन पर दबाव बनाएं। ऐमिन जापारोवा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कीव आने का न्यौता दिया लेकिन साथ ही जी-20 देशों की बैठक में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को बुलाने की अपील भी कर दी। यूक्रेन ने ऐसी अपील कर एक कूटनयिक दांव खेला है। यूक्रेन ने गेंद भारत के पाले में डाल दी है।
पूरी दुनिया जानती है कि युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में लाए गए किसी प्रस्ताव का विरोध नहीं किया है, बल्कि उसने वोटिंग से दूरी बनाकर तटस्थ रुख अपनाया है। हालांकि यूक्रेन की उप विदेश मंत्री ने पाकिस्तान और चीन से भारत के कड़वे संबंधों का उल्लेख भी किया है और भारत को संबंधों में संतुलन बनाने की सलाह भी दे डाली है। यद्यपि भारत ने जी-20 की बैठक में जेलेंस्की को बुलाने के संबंध में कुछ ठोस नहीं कहा है लेकिन अगर भारत ऐसा करता है तो जी-20 के मंच पर रूसी राष्ट्रपति पुतिन और जेलेंस्की आमने-सामने हो सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही एक ऐसे नेता रहे जिन्होंने पुतिन से स्पष्ट कहा था कि आज की दुनिया में युद्ध के लिए कोई जगह नहीं है और इस युद्ध को रोका जाना चाहिए। भारत बातचीत से युद्ध खत्म करने का पक्षधर है। आज जेलेंस्की भारत की मदद मांग रहे हैं लेकिन पूर्व में उसकी भूमिका भारत विरोधी रही है। यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रों कुलेवा ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के रूस दौरे से चिढ़कर यह बयान दिया था कि भारत जो तेल रूस से खरीद रहा है उसमें यूक्रेन के लोगों का खून मिला हुआ है। यूक्रेन यह भूल गया कि उसने हर बार भारत की पीठ में छुरा घोंपा है। पाकिस्तान के आतंकवाद पर यूक्रेन हमेशा खामोश रहा। कश्मीरी आतंकवादियों को पाकिस्तान की मदद पर भी उसने भारत का साथ नहीं दिया।
अब सवाल यह है कि क्या भारत युद्ध रोकने के लिए मध्यस्थ बनेगा और वह शांतिदूत की भूमिका निभाना स्वीकार करेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत की आवाज आज पूरी दुनिया सुन रही है। भारत रूस और पश्चिमी देशों का दोस्त बनकर उभरा है। भारत को पता है कि अपने हितों की रक्षा कैसे की जाती है तभी तो उसने अमेरिका और मित्र देशों का दबाव न मानते हुए रूस से तेल और ऊर्जा लेना जारी रखा हुआ है। युद्ध के बीच भी भारत ने यूक्रेन को मानवीय सहायता दी है। भारत यह भी कहता रहा है कि युद्ध किसी के पक्ष में नहीं है। इसे हर हाल में रोकना चाहिए। देखना है कि भारत क्या स्टैंड लेता है।