भेड़ियों और इंसानों में आज तक इतिहास में किसी संधि का जिक्र नहीं मिलता। इंसान ने जब भी ऐसा किया है, उसने मात खाई है। अमेरिका ने पाकिस्तान की कितनी मदद की लेकिन उसे मिला आतंकवाद। ओसामा बिन लादेन को उसने ऐबटाबाद में छिपा कर रखा, जिसे अमेरिकी मैरिन जवानों ने ढूंढ कर मारा। अमेरिका को अंततः अपने पालूत की सहायता बंद करनी पड़ी। वैसे भी पाकिस्तान अपनी गरिमा खो बैठा है।
संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुछ दिन पहले जम्मू-कश्मीर का राग अलापा था, भारत ने उसका मुंह तोड़ जवाब देते हुए साफ शब्दों में कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। इंडिया मिशन के फर्स्ट सेक्रेट्री मिजितो विनितो ने दो टूक शब्दों में कहा कि पाकिस्तान पीओके पर अवैध कब्जा खाली करे, अब पाकिस्तान से सिर्फ पीओके पर बात बची है। भारतीय राजनयिक ने इमरान खान के बयानों का हवाला देते हुए उन्हें पूरी दुनिया के सामने नग्न कर दिया। इमरान खान ने स्वीकार किया था कि उनके देश में आतंकवादी प्रशिक्षित होते हैं। लादेन को शहीद बताया था।
भारत ने पाकिस्तान को मानवाधिकारों के उल्लंघन पर जमकर फटकार लगाई है। पाकिस्तान को हर अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर मुंह की खानी पड़ी है लेकिन वह कश्मीर राग नहीं छोड़ रहा क्योंकि इसके अलावा उनकी सियासत में कुछ नहीं बचता। पाकिस्तान ने सार्क में हमेशा कश्मीर-कश्मीर का खेल खेला। उसके पास महंगाई, भूख, बेरोजगारी, लाचारी है। अरबों का कर्ज उस पर चढ़ा हुआ है। जब पानी सिर से गुजरने लगता है कि जनता को एक ही संदेश दिया जाता है-कश्मीर में इस्लाम खतरे में है। चारों ओर सन्नाटा छा जाता है। तब वहां की सियासत में सब कुछ जायज हो जाता है।
‘‘लश्कर भी जायज, तालिबान भी जायज,
अलकायदा भी जायज, हाफिज सईद भी जायज,
आईएसआई भी जायज, दाऊद भी जायज,
सेना चीफ भी जायज, सदरे जम्हूरियत भी जायज।’’
सार्क की स्थापना दक्षिण एशिया के देशों में सहयाेग बढ़ाने के लिए की गई थी, लेकिन पाकिस्तान के चलते इस संस्था का भट्ठा पूरी तरह बैठ चुका है। सार्क में 8 सदस्य देश हैं। इनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं। इन देशों को देखें तो सहयोग तो क्या होना था सभी देश आपस में टकराते रहते हैं। भारत ने सार्क के अप्रसांगिक होने के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सार्क देशों की बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि सीमा पार से होने वाला आतंकवाद, कनैक्टिविटी तोड़ना और व्यापार में रुकावट डालने जैसी चुनौतियां हैं। जब तक इन चुनौतियों का हल नहीं ढूंढा जाएगा तब तक दक्षिण एशिया में शांति, समृद्धि और सुरक्षा बहाल नहीं होगी।
पाकिस्तान ने अब अपनी नई साजिश को अंजाम देना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्बी ने अधिसूचना पर हस्ताक्षर करके गिलगित-बाल्टिस्तान में चुनावों का रास्ता साफ कर दिया है। उसका यह कदम एक विवाद को और हवा देने वाला है। हालांकि चुनाव की कवायद काफी पहले शुरू हो गई थी लेकिन भारत के कड़े प्रतिरोध और दबाव को देखते हुए पाकिस्तान ने कोरोना महामारी की आड़ लेते हुए इससे कदम पीछे खींच लिए थे लेकिन अब फिर से वह सक्रिय हो गया है। पाकिस्तान लम्बे समय से इस कोशिश में लगा है कि गिलगित-बाल्टिस्तान काे देश का पांचवां प्रांत घोषित कर दिया जाए लेकिन सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान को गिलगित-बाल्टिस्तान की वैधानिक स्थिति मालूम नहीं है। जबकि यह इलाका पाकिस्तान का प्रांत ही नहीं है। वहां चुनाव कराने और इसको अपना प्रांत घोषित करने से अशांति के नए मोर्चे खुल जाएंगे। गिलगित में पाकिस्तान की मौजूदगी बनाए रखने के लिए चीन की मदद से बांध बनाने की परियोजना चल रही है। पिछले वर्ष मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा कर राज्य को दो केन्द्र शासित राज्यों में बांट दिया था, तभी से ही पाकिस्तान की नींद उड़ी हुई है। अब वह गिलगित को अपना नया हथियार बनाना चाहता है। आज तक पीओके यानी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का वजूद हमारे स्वाभियान पर एक प्रश्नचिन्ह की तरह खड़ा है। भारत उस हिस्से को अपना अंग मानता है जिसे आज या कल हमें भारत में ही मिलाना पड़ेगा। पाकिस्तान ने आज तक इतिहास से कुछ नहीं सीखा।
-इसका एक हिस्सा बंगलादेश बनकर अलग हो चुका है।
-जिये सिंध आंदोलन आज तक मरा नहीं है और मुहाजिरों का आक्रोश आज तक कायम है।
-फ्रंटियर के इलाकों में अलकायदा की गतिविधियां इतनी गम्भीर हैं कि कई इलाके आज खुद को गुलाम मानने लगे हैं।
-ब्लोच तो शुरू से ही पाकिस्तान से परेशान हैं।
पाकिस्तान सुधरने वाला नहीं तो उसके वजूद को मिटाने का संकल्प राष्ट्र को लेना ही होगा। समय कौन सा होगा यह सरकार को तय करना है।