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कचरे से ऊर्जा

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हमारी पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान सूर्य को सात घोड़ों पर सवारी करने वाला बताया गया है। आज के युग में सूर्य के इन सात घोड़ों में से चार घोड़े तापीय (कोयला), गैस, जल और परमाणु ऊर्जा हैं। इन चार घोड़ों का इस्तेमाल तो हम कर रहे हैं लेकिन तीन घोड़ों-सौर, पवन और जैव ईंधन का हम अधिक उपयोग नहीं कर रहे। देश में ऊर्जा क्रांति लाने के लिए यह जरूरी है कि हम परम्परागत ऊर्जा स्रोतों की बजाय नवीनतम प्रौद्योगिकी अपनाएं। भारत तो प्रकृति प्रेमी है। ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने के लिए हमें स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता है। बिजली और स्वच्छ पर्यावरण की दोहरी चुनौती हमारे सामने है। 75 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले और प्राकृतिक गैस को जलाने से किया जाता है। अगर कोयले के भंडारों पर हमारी निर्भरता जारी रही तो अगले 50 वर्षों में कोयले का भंडार ही समाप्त हो सकता है।

देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए और ग्रीन हाउस गैसों से पर्यावरण को बचाने के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को पैदा करने की जरूरत है। महंगी बिजली आम लोगों के लिए परेशानी का सबसे बड़ा कारण है। राज्य सरकारें बिजली बिलों पर सब्सिडी दे-देकर अपने वोट बैंक को सुरक्षित रखने का प्रयास करती रही हंै जिससे सरकारी राजस्व को भारी नुक्सान पहुंच रहा है। राज्य सरकारों की लोक-लुभावन नीतियों के चलते कई बार राज्य के बिजली बोर्डों का दिवाला पिटने की नौबत आती रही है। केन्द्र की सरकारों ने गैर-परम्परागत स्रोतों के जरिये ऊर्जा उत्पादन को प्राथमिकता तो दी, एक पृथक अक्षय ऊर्जा मंत्रालय का गठन भी किया गया लेकिन कोई ज्यादा सफलता हासिल नहीं हुई।

केन्द्रीय बिजली मंत्री आर.के. सिंह ने देश के सभी शहरों और कस्बों में कचरे से बिजली बनाने की परियोजनाओं को प्रोत्साहन देने की योजना पर काम करने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि ‘कई महानगरों, शहरों और कस्बों में कूड़े से बिजली बनाने के संयंत्र लगाने की जरूरत है। एक नागरिक के तौर पर कूड़े का प्रबन्धन हमारी संयुक्त जिम्मेदारी है।” उन्होंने दिल्ली में गाजीपुर इलाके में कचरे का ढेर गिरने से हुई मौतों का जिक्र भी किया। वास्तव में महानगरों और शहरों में कूड़े के पहाड़ खड़े होना शर्म की बात है। बिजली मंत्री ने कहा है कि सभी शहरों और कस्बों में अनिवार्य रूप से संयंत्र लगने चाहिएं। यह काम सार्वजनिक-निजी भागीदारी या शुल्क आधारित बोली के जरिये हो सकता है। अधिक पारदर्शी तरीका बोली आमंत्रित करना ही होगा ताकि लोग प्रतिस्पर्धा करें और जो न्यूनतम दर पर बिजली उपलब्ध करा सकें, उन्हें बोली जीतनी चाहिए।

नई दिल्ली के ओखला में कूड़े-कर्कट और ठोस अपशिष्ट से बिजली उत्पादन की परियोजना स्थापित की गई थी। बिजली उत्पादन भी शुरू हुआ था लेकिन इस परियोजना का अन्य क्षेत्रों में विस्तार ही नहीं किया गया। केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार भारत में इस वर्ष अगस्त तक कूड़े से 114.08 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया गया। नवीन एवं नवीकरणीय मंत्रालय के अनुसार ठोस कचरे से देश में लगभग 500 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है, जिसे बढ़ाकर 2031 तक 1,075 मेगावाट और 2050 तक 2,780 मेगावाट किया जा सकता है। कूड़े-कर्कट से बिजली उत्पादन के सम्बन्ध में राज्य सरकारों को आगे आना होगा। इस दिशा में हरियाणा ने महत्वपूर्ण पहल कर दी है। सोनीपत और पानीपत जिले की संयुक्त परियोजना के तहत दोनों क्षेत्रों के रोजाना 500 टन कचरे का निस्तारण मुरथल में किया जाएगा और मुरथल में स्थापित होने वाला संयंत्र 5 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगा।

इस 5 मेगावाट बिजली से मुरथल सहित क्षेत्र के 20 गांवों को 24 घण्टे रोशन किया जा सकेगा। इस कचरा निस्तारण विद्युत उत्पादन संयंत्र के शुरू होने से न तो कचरे की कोई समस्या रहेगी, शहरों का वातावरण भी स्वच्छ रहेगा क्योंकि सोनीपत, गन्नौर, समालखा और पानीपत का कचरा संयंत्र में लाया जाएगा। मध्य प्रदेश में कई शहर इस दिशा में पहल कर चुके थे। एनटीपीसी ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत कचरे से बिजली बनाने के 100 प्रदूषणमुक्त संयंत्र लगाने को लेकर घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों को आमंत्रित किया है। एनटीपीसी ने इसी साल बदरपुर में कचरे से बिजली बनाने का काम शुरू किया है। पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन दिया ही जा रहा है, अगर कचरे से विद्युत उत्पादन का काम व्यापक स्तर पर किया जाए तो देशवासियों को सस्ती ऊर्जा मिल सकेगी। न्यू इण्डिया की अवधारणा ही यही है कि भारत में नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर विकास की राह पर सरपट दौड़ा जाए। नए भारत के लिए नई योजनाओं पर काम करना होगा। इसके लिए नगर निगमों और स्थानीय निकायों को भी आगे आना होगा ताकि न्यू इण्डिया का निर्माण किया जा सके।

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