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ईद की मिठास को समझें

आज ईद-उल- फितर का त्यौहार है जिसे बोलचाल की भाषा में उत्तर भारत में ‘मीठी ईद’ भी कहा जाता है।

आज ईद-उल- फितर का त्यौहार है जिसे बोलचाल की भाषा में उत्तर भारत में ‘मीठी ईद’ भी कहा जाता है। भारत की मिलीजुली संस्कृति में तीज-त्यौहारों का लोकोन्मुखी होने की एक लम्बी परंपरा रही है। इसमें अधिसंख्य हिन्दू त्यौहारों का लोकजीवन में रूपान्तरण इस प्रकार हुआ कि उनका धार्मिक या मजहबी स्वरूप कम होता गया और लोकस्वरूप उभरता गया। हिन्दू तीज-त्यौहारों व रीति-रिवाजों की सभी धर्मों के भारतीय नागरिकों पर गहरी छाप भी पड़ी जिससे इन्हें और व्यापकता मिली। मुस्लिम मतावलम्बियों का ईद त्यौहार खास कर मीठी ईद त्यौहार ऐसा पर्व होता है जिसे भारत के हिन्दू नागरिकों ने भी अपनी संस्कृति के अनुकूल समझते हुए इसमें शिरकत करने से कभी गुरेज नहीं किया। इससे पहले जो रमजान का महीना आता है वह इस्लाम मजहब के समाजवादी चरित्र को उजागर करता है क्योंकि इसमें हर मुसलमान का कर्त्तव्य होता है कि वह अपनी कुल सम्पत्ति का ढाई प्रतिशत गरीबों अर्थात सुयोग्य पात्रों को जकात या दान करें परन्तु दिक्कत भारत में यह रही है कि यहां की मुल्ला ब्रिगेड ने मुसलमानों को शेष भारतीयों से अपनी पहचान अलग बनाने के लिए ऐसे -ऐसे  गुर ईजाद किये जिससे उनकी पहचान बजाये भारतीय सभ्यता के निकट दिखने के अरबी सभ्यता के नजदीक दिखाई पड़े।
कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवियों ने भारतीय त्यौहारों को हिन्दू त्यौहार बता कर मुसलमान नागरिकों में यह भाव पैदा करने की कोशिश की कि उनमें शामिल होने या उन्हें मनाने से वे ‘शिर्क’ गुनहगार हो जायेंगे। अगर भारत की विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियों जैसे पंजाबी या बंगाली अथवा मलयाली व कन्नड़ तथा तमिल संस्कृतियों के लोकोत्सवों में बराबर की भागीदारी करते हुए भारत के मुसलमानों ने मुल्ला-मौलवियों को धत्ता भी बताया और भारत के रंग में घुलने का दौर जारी रहा। पंजाब की उन्मुक्त व उदात्त रवायतों में तो हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव कभी प्रदर्शन में नहीं आ सका क्योंकि इसकी सखावत में ही  इंसानियत का चौतरफा बोलबाला था। इसी प्रकार बंगाल की शास्त्रीय परंपराओं को मुसलमान बंगालियों ने भी अपनाने में कभी धर्म को आड़े नहीं आने दिया। यह पंजाबी और बंगाली भाषा का कमाल ही था कि इस संस्कृति के त्यौहार सभी हिन्दू-मुसलमानों के त्यौहार बनते गये। बांग्लादेश में आज भी पौष महीने का पहला दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसी पंजाब में बैशाखी का त्यौहार आज भी इसके पंजाब के मुसलमान नागरिक मनाते हैं और बसन्तोत्सव भी।
भारत के सन्दर्भ में हमें यह ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान निर्माण का आन्दोलन आगे बढ़ाने में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश समेत उन राज्यों के मुसलमानों को मजहबी तास्सुब से भरने का अभियान मुहम्मद अली जिन्ना ने चलाया था जहां संयुक्त भारत में मुस्लिम अल्पसंख्या में थे। भारत में केवल दो राज्य पंजाब व बंगाल ही ऐसे  थे जिनमें मुस्लिम बहुसंख्या में थे और इन दोनों ही राज्यों की संस्कृति इतनी आत्मीय व अतर्सम्बन्धी थी कि हिन्दू-मुसलमान का भेदभाव केवल पूजा पद्धति तक ही सीमित रहता था। हालांकि दोनों ही राज्यों में आजादी मिलने से बहुत पहले भी ऐसे  फसाद भी करा दिये जाते थे जिससे पंजाबी- पंजाबी और बंगाली-बंगाली में मनमुटाव पैदा हो सके परन्तु इन दोनों ही राज्यों की भाषा गत संस्कृति में इतनी ताकत थी कि वह ऐसे  वैमनस्य को समाप्त भी कर देती थी।
पंजाब में आजादी से पहले होली और दीपावली का त्यौहार ऐसा था जिसे सभी पंजाबी मनाते थे। दीपावली पर मुसलमान नागरिक भी प्रतीकात्मक तौर पर अपने घरों में रोशनी किया करते थे और मीठी ईद पर हिन्दू नागरिक मुसलमान मिलने वालों के यहां मिठाइयां भिजवाया करते थे परन्तु हिन्दू-मुसलमानों के इन त्यौहारों का एक दूसरा आर्थिक आयाम भी था जो इन दोनों ही समुदायों के गरीब तबके के लोगों के लिए खुशियां लेकर आया करता था। गरीब हिन्दू रेहड़ी-खोमचे वालों या छोटा-मोटा धंधा करके गुजारा करने वाले लोगों को मीठी ईद का बेसब्री से इंतजार रहता था क्योंकि इस दिन छोटा-मोटा काम करके गुजारा चलाने वाले मुसलमान कारीगर भी छुट्टी रखते थे। इसी प्रकार दीपावली के अवसर पर सबसे ज्यादा प्रसन्नता मुस्लिम दस्तकारों या कारीगरों को होती थी क्योंकि उनकी साल भर की कमाई इन्हीं दिनों में जमकर होती थी। यह भारत की ऐसी पहचान है जो आज तक जारी है। इसी वजह से कर्नाटक के हिन्दू मन्दिर परिसरों में छोटी-मोटी खिलौनों व अन्य सामान की दुकानें मुसलमान कारीगरों द्वारा लगाने की परंपरा आज तक जारी है। ईद खुशियों का पैगाम लेकर आती है और आपसी भाईचारे को मजबूत करने का सन्देश देती है। इसी वजह से इसके पहले रमजान के महीने को पाक महीना कहा जाता है। इसका धार्मिक कारण चाहे जो भी हो मगर सामाजिक कारण यह है कि इन दिनों चौतरफा रौनक का माहौल रहता है। भारतीय संस्कृति के सांचे में ऐसे  मुस्लिम त्यौहार इसलिए विशेष महत्ता रखते हैं क्योंकि हिन्दू संस्कृति केवल भाईचारा बढ़ाना और निर्बलों की मदद करने के सन्देशों से ओत-प्रोत है। पंजाब के सूफी सन्त कवि बुल्लेशाह ने तो हिन्दू-मुस्लिम के भेद को दो लाइनों में ही नहीं पाटा बल्कि कट्टरपंथियों को करारा जवाब भी दिया।
  जे गल समझ लेई रौला की 
  राम-रहीम ते मौला की

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