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आज भी यशोदा मां है…

जीवन वह जो अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों की खातिर जिया जाए। ऐसी बातें कहने वालों की और उपदेश देने वालों की कोई कमी नहीं है परंतु निभाने वाले बहुत कम हैं।

जीवन वह जो अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों की खातिर जिया जाए। ऐसी बातें कहने वालों की और उपदेश देने वालों की कोई कमी नहीं है परंतु निभाने वाले बहुत कम हैं। जो इसे निभा जाए उसे ही इंसानियत का फरिश्ता कहा जाना चाहिए अगर वह महिला है तो वह फिर इंसानियत और ममता की देवी हुई। एक ऐसी महिला अधिकारी जो कि सीजेएम हो  और उनके पति बीडीओ हो ऐसे में उन्हें एक पंद्रह दिन की उस बच्ची के बारे में पता चले जिसकी मां बच्ची को जन्म देने के बाद ही गुजर गयी हो तो इन दोनों ने यह रिश्ता कैसे निभाया, जरा इसकी कल्पना कीजिए। 
प्रेरणादायक घटना गुजरात के वड़ोदरा की है जहां सीजेएम श्रीमती चित्रा यादव को उनके पति ने बताया कि मैं वासद के सीएचसी के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट की कॉल पर अस्पताल में विजिट पर जा रहा हूं और मुझे पता चला है कि एक बच्ची को जन्म देने के बाद उसकी मां गुजर गयी है और यह बच्ची 14 घंटे से भूखी है। सीजेएम चित्रा यादव से रहा ना गया। उन्होंने तुरंत जाकर बच्ची को अपने सीने से लगाकर उसे अपना दूध पिलाया। भारी बारिश, आंधी-तूफान की वजह से बच्ची के पिता और परिवार के सदस्य वड़ोदरा के उस अस्पताल तक पहुंच नहीं पाये थे। चित्रा यादव जी का ममतामयी हृदय आज सबके लिए उदाहरण है। उन्होंने अपने पति से कहा कि अब इस बच्ची की मां नहीं है। 
मैंने इसे अपना दूध पिलाया है। मैं इसकी यशोदा मां जैसी हूं। उन्होंने अपने पति को इस बच्ची को गोद लेने का आग्रह किया। इस नन्हीं परी के पिता और परिवार के सदस्यों से बच्ची के लालन-पालन के लिए बातचीत की गई। पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत बच्ची को गोद ले लिया गया। सीजेएम बताती हैं कि मेरे पास पहले से एक बेटा है और अब हमारे पास एक बेटी भी आ गयी। भाई-बहन हो गये हैं। इसे कहते हैं बेटी-बचाओ-बेटी पढ़ाओ। एक तरफ देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर ऐसा अभियान चलाते हैं तो फिर असली बेटी को बेटी का धर्म निभाने का सच्चा और इंसानियत भरा रिश्ता किसी ने निभाया है तो वह सीजेएम हैं और इस मां को मेरा कोटि-कोटि नमन है। 
आज भी यशोदा मैय्या है। आज दिल्ली, हरियाणा, पंजाब या राजस्थान में पिछले दिनों बेटियों के भ्रूण को गर्भ में ही मार डालने के अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। तो हमने भी यह अभियान चलाया था कि अगर बेटी को गर्भ में ही मार डालोगे तो भविष्य में बहू कहां से लाओगे, वंश कहां से चलाओगे। इसके बाद इन सभी जगहों पर लोहड़ी के दिनों में बेटी होने पर जश्न मनाने की परंपरा शुरू हुई और आज यह लिंगानुपात लगभग अब लेवल पर आ गया है। कई बार दिल्ली के अस्पतालों में या अन्य नर्सिंग होम्स में या फिर मंदिरों के बाहर किसी नवजात शिशु के पड़ा होने की आैर उसकी मां द्वारा छोड़ जाने की  खबरें मिलती हैं। अब अच्छी बात यह है कि इस दुनिया में मां की ममता और बेटी का प्यार और बेटी के धर्म को निभाने वाले लोग जीवित हैं। 
हम सभी को इस परंपरा का निर्वाह करना चाहिए तथा बेटियों को सम्मानपूर्वक जीने का हक दिलाने के लिए भी कोई अभियान छेड़ देना चाहिए। मैं तो यह कहूंगी कि अक्सर सड़कोंं  पर नन्हीं-मुन्नी कलियों को जिमनास्ट करते हुए देखकर पैसों के लिए हाथ फैलाता हुआ देखती हूं। उनका भविष्य भी संवारने के लिए कुछ किया जाना चाहिए। जब देश आधुनिक हो चुका हो महिलाएं तरक्की की राह पर हो तो भी नन्हीं कलियों से रेप की खबरें सुनकर मन कांप जाता है। ये जुल्म बंद होने चाहिए और बेटी को गोद लेेने जैसे उदाहरण सामने आने चाहिए तो मानवता और ममता का ​​सिर गौरव से ऊंचा हो जाता है। 
साध्वी ऋतम्बरा जी ने भी एक बहुत बड़ी मुहिम चलाई हुई है। पिछले दिनों उनकी वातस्लय की बेटी की मुंबई के बड़े घराने राठी परिवार में शादी हुई। मेरा ऋतम्बरा जी से बहुत स्नेह है। उन्होंने आग्रह किया था परन्तु मैं नहीं जा सकी परन्तु मन ही मन में ऋतम्बरा जी, उनकी सोच को नमन कर रही थी और उस राठी परिवार को भी जिनके घर बेटी गई। उनके लिए भी उनकी सोच और काम के लिए नमन करती हूं। यही हमारा सपना है सब मिल कर साकार कर रहे हैं। पिछले 5 सालों से करनाल अनाथालय से किरण नाम की बेटी को मैंने भी गोद लिया हुआ है और वह बहुत आगे बढ़ रही है।

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