तिनका-तिनका जोड़कर जो आशियाना बनाया जाता है, पक्षियों की जुबां में इसे घोंसला या घरौंदा और इंसानी भाषा में इसे आशियाना और घर कहा जाता है। एक घर बनाने के लिए माता-पिता पाई-पाई जोड़ते हैं तब कहीं जाकर उसमें परिवार के लोग बसते हैं, लेकिन ये सब कुछ किताबों के शब्द रह गए हैं। आज की तारीख में घर या आशियाना बनाने की जिम्मेवारी प्रोफेशनल तरीके से जिन लोगों ने ले रखी है वे लोग बिल्डर, डेवलपर और कॉलोनाइजर बनकर अपनी अलग ही दुनिया बसा रहे हैं। भोले-भाले नौकरीपेशा लोगों से कैश ऐट पार और प्रीमियम ऑफर या फिर स्टार्टिंग के रूप में 5 से 10 लाख रुपए मांगकर घर देने की गारंटी देते हैं। एक साथ 5 या 10 लाख रुपए देकर वे आने वाले दो सालों तक 30-30, 40-40 लाख रुपए किस्तों के माध्यम से तीन साल में देने की बात कहते हैं। समय गुजर जाता है लेकिन लोगों को इतनी भारी रकम देने के बावजूद घर नहीं मिलता, तो बताइए इसे लूट नहीं तो और क्या कहेंगे? दुर्भाग्य से पूरे नोएडा, गुरुग्राम, ग्रेटर नोएडा और सोनीपत में जिन लोगों ने लाखों रुपए बिल्डरों को दे डाले लेकिन उन्हें आज तक घर नहीं मिला और सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज अब इन बिल्डरों पर अच्छी-खासी नकेल कस चुके हैं और एक-एक पैसे का हिसाब-किताब मांग रहे हैं, जो कि अच्छी बात है। सुप्रीम कोर्ट की इस व्यवस्था को सलाम है। नामी-गिरामी बिल्डरों की रातों की नींद उड़ी हुई है। अक्सर मेरे पास सैकड़ों ई-मेल्स ऐसे लोगों के आते हैं जो इन बिल्डरों की लूट का शिकार हुए हैं। मैं इसे एक सामाजिक समस्या मानकर लोगों से भी आग्रह करना चाहती हूं कि भविष्य में वे पलभर में बिल्डर या डेवलपर बनने वालों के झांसे में न आएं और प्रोपर्टी खरीदते समय उन लोगों से सलाह-मशविरा जरूर करें, जो वाकई इस लाइन के खानदानी लोग हैं क्योंकि हम सब जानते हैं रोटी, कपड़ा और मकान हर व्यक्ति की जरूरत है और अगर कोई समस्या बिल्डर्स को आ रही हैं तो उन्हें भी सरकार को समझकर उनका हल निकालना चाहिए।
चार कुर्सियां और एक टेबल रखकर लोगों को फ्लैट दिलाने का धंधा करने वाले प्रॉपर्टी डीलर आज बिल्डर और डेवलपर बने बैठे हैं। ऐसे लोगों के फ्रॉड से और चिकनी-चुपड़ी बातों से बचना चाहिए। दिल्ली और एनसीआर में हजारों-लाखों लोग इनका शिकार हुए हैं। तीन करोड़ से ज्यादा केस कोर्टों में इस मामले के चल रहे हैं, जो प्रोपर्टी विवाद से जुड़े हैं। समय आ गया है कि अब लोगों को खुद संभलना होगा। पिछले दिनों एक ऐसी ही गोष्ठी में मुझे जब एक समाजसेवी ने आमंत्रित किया तो मैंने साफ कहा कि प्रोपर्टी को लेकर चल रहे विवाद में मैं बीच में नहीं पड़ना चाहती, क्योंकि व्यक्तिगत प्रोपर्टी विवाद तो घर-घर में हैं लेकिन सामाजिक तौर पर अगर बिल्डर भोले-भाले लोगों को लूटते हैं तो उन्हें खुद अलर्ट होकर अपने केस लड़ने चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि जहां उनकी सुनवाई हो रही है। घर बनाने के मामले में निवेश करने वाले लोग याद रखें कि सावधानी हटी दुर्घटना घटी।
सरकार से अनुरोध है कि उनके अपने निर्माण जो घरों से जुड़े हुए हैं के प्रति लोगों को अपने साथ जोड़ें, चाहे वह डीडीए, हुडा या फिर पुडा है या यूपी के अन्य प्राधिकरण। लोगों का सरकारी संस्थानों के प्रति रूझान क्यों घट रहा है क्योंकि वहां भी ठगी कम नहीं। आज लगभग 9 साल हो गए बुजुर्गों के लिए जमीन डीडीए से ली थी, चेक जमा कराए, रजिस्ट्री हुई। मेरे सारे बुजुर्गों के सपनों की दुनिया बनने की इंतजार में है परन्तु डीडीए का एक ही जवाब है कि अभी हमारे प्लान में नहीं है जब तक उनके प्लान बनेंगे तब तक मेरे आधे से ज्यादा बुजुर्ग ईश्वर को प्यारे हो चुकेंगे और शायद मैं भी ईश्वर के पास जाने की तैयारी में हूंगी। बताओ किस पर विश्वास करें। इस बात को जानकर ही प्राइवेट बिल्डर सब्जबाग दिखाकर लोगों को फंसा रहे हैं और अब उन पर सरकार को शिकंजा कसना होगा।