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आस्था और सियासत

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श्री गुरु नानक देव जी ने करतारपुर शहर बसाया था। सिखों की पहली इबादत की पहली जगह यानी गुरुद्वारा दरबार साहिब भी यहीं बना। गुरु नानक देव जी ने अपनी जिन्दगी के अन्तिम दिन भी यहीं गुजारे, तब करतारपुर गुरदासपुर का ही हिस्सा था। जब देश का बंटवारा हुआ तो सिखों को यकीन था कि करतारपुर उनके हिस्से में आएगा मगर जब बंटवारा हुआ तो यह जगह पाकिस्तान की हो गई। बंटवारा केवल जमीन का ही नहीं था, गुरुद्वारा दरबार साहिब और डेरा बाबा नानक भी अलग हो गए। गुरुद्वारा साहिब पाकिस्तान में चला गया, दूसरा भारत में रह गया। उनके बीच में रावी बहती है। न जाने रावी में कितना पानी बह चुका है। वर्षों से भारत के सिख चाहते हैं कि उन्हें करतारपुर गुरुद्वारे तक जाने की सुविधा दी जाए। एक ऐसा वीजा फ्री कॉरिडोर बनाया जाए कि वहां पहुंचने में कोई मुश्किल न हो। कोई भी जब चाहे गुरुद्वारे के दर्शन करके लौट आए। अभी तक सिख श्रद्धालु गुरुद्वारा साहिब के दर्शन दूरबीन से ही करते हैं लेकिन अब पंजाब की सियासत गर्म हो गई है। इस बार केन्द्र बिन्दू है करतारपुर कॉरिडोर।

कुछ दिन पहले पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बने पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की ​क्रिकेटर होने के नाते क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने नवजोत सिंह सिद्धू से दोस्ती भी थी। नवजोत सिंह सिद्धू ने दोस्ती निभाने की खातिर इमरान खान की ताजपोशी के समारोह में भाग लिया और राष्ट्रीय हितों को नजरंदाज करते हुए पाक सेना के अध्यक्ष कमर जावेद बाजवा से गले भी मिले जिस पर उनके कान भी काफी उमेठे गए। पाकिस्तान से लौटते ही नवजोत सिंह सिद्धू ने प्रैस कॉन्फ्रैंस में ऐलान कर दिया कि पाकिस्तान करतारपुर गुरुद्वारे तक कॉरिडोर खोल रहा है, इसके लिए पूरी तैयारी भी हो गई है। अपने अन्दाज में उन्होंने शब्दों का खेल खेला। इमरान को थैंक्यू कहा और केन्द्र सरकार को नसीहत भी दे डाली कि पाकिस्तान ने एक कदम बढ़ाया है और अब भारत सरकार को भी दो कदम बढ़ाने चाहिएं। सिद्धू ने यह जताने की कोशिश की थी कि करतारपुर कॉरिडोर खोलने का पाक सरकार का फैसला उन्हीं की कोशिशों के चलते हुआ है। जब पंजाब सरकार का एक मंत्री पाकिस्तान जाता है तो वह भारत का प्रतिनिधि ही माना जाएगा लेकिन सिद्धू ने अपनी व्यक्तिगत छवि चमकाने आैर इसका पूरा श्रेय लेने की कोशिश की। इस पर उनकी जमकर आलोचना भी हुई। कमर बाजवा के गले लगना भी भारतीयों को नहीं भाया। सिद्धू गोल-मोल और लच्छेदार बातें करते रहे।

सीमाओं पर भारतीय जवानों और कश्मीर में सुरक्षा बलों के जवानों के खून से ​िजस शख्स के हाथ रंगे हुए हों, उससे गले मिलना लोगों को अच्छा नहीं लगा। अब विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज का पत्र सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत सरकार करतारपुर कॉरिडोर के मुद्दे को लम्बे समय से पाकिस्तान के समक्ष उठा रही है लेकिन अब तक पाकिस्तान इसके लिए रजामंद नहीं हुआ है। न तो कॉरिडोर खोलने के बारे में पाकिस्तान ने भारत सरकार को कुछ बताया है और न ही कोई आधिकारिक सूचना है। जब भी कोई दो देश कदम उठाते हैं तो वह केन्द्र सरकार के दायरे में आते हैं लेकिन अब तक कोई ठोस बात सामने नहीं आई। जो कुछ भी है वह व्यक्तिगत तौर पर इमरान खान की ताजपोशी में गए सिद्धू तक सीमित है। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो पाकिस्तान में भी कॉरिडोर खोलने को लेकर मतभेद हैं। नहीं कहा जा सकता कि सिद्धू ने प्रैस कॉन्फ्रैंस किस आधार पर की। उन्होंने तो विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज से मुलाकात करने के बाद भी ऐसा जताया जैसे पाकिस्तान कॉरिडोर खोलने के लिए तैयार बैठा है, जबकि भारत सरकार कुछ नहीं कर रही।

आस्था का इतिहास काफी विस्तृत है। करतारपुर का गुरुद्वारा दरबार साहिब आस्था की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। गुरु नानक देव जी सिखों के लिए महान गुरु हैं वहीं मुसलमानों के लिए नानक उनके पीर हैं। अगर पाकिस्तान कॉरिडोर खोल दे तो भारतीय सिखों की वर्षों पुरानी मांग पूरी होगी और वह बिना रोक-टोक के दर्शन कर सकेंगे। यह मुद्दा सिखों के लिए काफी भावुक है। जहां तक सियासत का सवाल है तो पंजाब में कैप्टन अमरिन्द्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार है, वह चाहेगी कि अगर कॉरिडोर खुलता है तो इसका श्रेय कांग्रेस को मिले। अकाली दल किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि इसका श्रेय कांग्रेस सरकार, कैप्टन अमरिन्द्र सिंह या सिद्धू ले जाएं। अकाली दल नवजोत सिंह सिद्धू काे यह कहकर निशाना बना रही है कि वह सिखों की भावनाओं से खेल रहे हैं और गुमराह कर रहे हैं। सिद्धू हवा में गेंद उछाल रहे हैं। वह पंजाब सरकार के मंत्री हैं, उन्हें परिपक्वता से काम लेना चाहिए। अगर उनकी बात सत्य है तो पाकिस्तान की इमरान सरकार को चाहिए कि वह भारत सरकार को आधिकारिक तौर पर प्रस्ताव भेजे ताकि आगे बढ़ा जा सके। फिलहाल तो ऐसा ही लग रहा है कि नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान जाने के लिए दी गई मंजूरी का दुरुपयोग कर रहे हैं। उनकी बयानबाजी का कोई औचित्य मुझे नजर नहीं आता जब तक पाक कोई ठोस पहल नहीं करता।

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