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आस्था और भगदड़

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती के दौरान उमड़ी भीड़ में दबकर दो लोगों की मृत्यु और लगभग 50 से अधिक लोगों के बेहोश होने की खबर काफी दुखद है।

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती के दौरान उमड़ी भीड़ में दबकर दो लोगों की मृत्यु और लगभग 50 से अधिक लोगों के बेहोश होने की खबर काफी दुखद है। मथुरा-वृंदावन में जन्माष्टमी के मौके पर 20 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचे हुए थे। जब-जब भी धार्मिक स्थलों पर भगदड़ से मौतें होने के हादसे हुए, उसके पीछे एक ही कारण रहा कि पुलिस हो या अन्य सुरक्षा बल भीड़ प्रबंधन का कौशल नहीं जानते या फिर धार्मिक स्थलों पर व्याप्त भ्रष्टाचार हादसों के लिए  जिम्मेदार रहा। बांके ​बिहारी मंदिर में हादसे के लिए भी वीआईपी कल्चर जिम्मेदार बताया गया है।
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि वीआईपी का रुतबा दिखाकर अधिकारियों ने अपने रिश्तेदारों को मंदिर में प्रवेश कराया, जहां पहले ही काफी भीड़ थी। पुलिस अधिकारियों ने अपने  परिवारजनों और अन्य लोगों को मंगला आरती में शामिल होने के लिए नियमों को ताक पर रखा। मंगला आरती के दौरान बाहर निकलने वाले गेट पर एक श्रद्धालु के बेहोश होने पर आवाजाही बाधित हुई। परिसर में दम घुटने से लोग गिरने लगे। हादसे के बाद प्रशासनिक प्रबंधों को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं। मंदिर प्रांगण में एक साथ 800 लोग आ सकते हैं, लेकिन वहां हजारों लोग उमड़ पड़े तो लोगों का दम घुटना ही था। मंदिर में पहले  भी कई हादसे हो चुके हैं, लेकिन न मंदिर प्रबंधन ने और न ही प्रशासन ने कोई सबक लिया। कौन नहीं जानता कि पर्व न भी हो बांके बिहारी मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु वहां तैनात सुरक्षा कर्मियों को पैसे देकर भीतर जाते हैं और उन्हें भगवान की प्रतिमा के समक्ष पहुंचाया जाता है। भारतीय भगवान में अथाह आस्था रखते हैं और परलोक सुधारने के लिए या सुख, समृद्धि, धन, वैभव या फिर संसार में जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति यानि मोक्ष की कामना के लिए धर्म स्थलों की यात्रा करते हैं। यह कैसा मोक्ष है कि लोग काल का ग्रास बन जाते हैं।
याद कीजिए इस वर्ष का पहला दिन जब समय एक-दूसरे को बधाई देने का था, तब टीवी पर लोग वै​ष्णो देवी में मची भगदड़ में श्रद्धालुओं की मौत की खबरें देख रहे थे। टीवी पर हताहत हुए परिजनों के बिलखने की तस्वीरें देखने को मिल रही थीं। जिसे देखकर लोगों में हताशा फैल गई। देशभर में धार्मिक उत्सवों के दौरान भगदड़ में सैकड़ों लोगों की मौतों का इतिहास काफी लम्बा है। कोरोना महामारी के दौरान लगभग ढाई वर्ष लोग घरों में बंद रहे। कोरोना महामारी का प्रकोप शांत होते ही आस्थावान लोग धार्मिक स्थलों और सैर-सपाटे के शौकीन लोग पर्यटक स्थलों पर उमड़ पड़े। पवित्र अमरनाथ यात्रा के दौरान भी गुफा के पास बादल फटने से अनेक श्रद्धालुओं की मौत हो गई। 
सवाल उठता है कि ऐसे धार्मिक स्थलों पर लगने वाली बेकाबू भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुख्ता उपाय क्यों नहीं किए जाते। भीड़ से होने वाले हादसों को रोकने के लिए कुछ वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में हुई भगदड़ की घटनाओं का संज्ञान लेकर सभी राज्यों को दिशा-निर्देश जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि उनको एक बात ठीक से समझ लेनी चाहिए कि अगर किसी जगह 20-25 हजार लोग जमा हो जाएं तो वहां भगदड़ या हादसे की आशंका रहती है, इसलिए वहां पहले से ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएं। लेकिन भीड़ प्रबंधन को लेकर हम आज भी दशकों पीछे हैं। कई कुम्भ मेलों का भव्य सफल आयोजन के बावजूद धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन भगवान भरोसे ही है। भीड़ प्रबंधन की कोई कारगर नीतियां नहीं अपनाई जातीं।  योजना बनाई जाती है वो कागजों पर ही सीमित होती हैं। धरातल पर सब शून्य है। हर हादसे के कुछ दिनों बाद सब कुछ पहले जैसा ही हो जाता है। 
भारत में आबादी बढ़ने के साथ ही धार्मिक आडम्बर और दिखावे का जोर बढ़ा है। धर्म के महिमामंडन में कई बार उसकी मूल भावना को ही नजर अंदाज कर दिया जाता है। धर्म के जरिये अन्य लाभ लेने की भावना बलवति दिखाई देती है। सरकार और प्रशासन सभी को पता होता है कि उत्सवों पर धार्मिक स्थलों पर भारी भीड़ होगी, लेकिन सब भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। हादसों से पहले सतर्कता की नौटंकी शुरू होती है। लेकिन उत्सव के समय लोग एक-दूसरे पर गिरने  लगते हैं। हर किसी की जिन्दगी अनमोल होती है उसे दाव पर लगाने का किसी को कोई हक नहीं। भविष्य में ऐसे हादसे न हों इसके लिए हादसों के विभिन्न पहलुओं पर तटस्थता से विचार किया जाना चाहिए। सिर्फ मुआवजे को विकल्प नहीं समझना चाहिए। हादसों के पीछे स्थानीय प्रशासन और प्रबंधनतंत्र की नाकामियों का पर्दाफाश किया जाना चाहिए। धार्मिक स्थलों पर मौत के तांडव सिर्फ प्रशासन की लचर व्यवस्था के कारण ही होते हैं। सभी हादसों के बाद मृतकों के परिजनों को और घायलों को मुआवजा घोषित करने के बाद मामला शांत हो जाता है, लेकिन हादसों को रोकने के लिए कोई वैकल्पिक समाधान नहीं किया जाता। हादसों के लिए काफी हद तक लोग भी जिम्मेदार होते हैं। जो सहनशीलता और अनुशासन छोड़ भगवान के करीब जाने को लालायित रहते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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