सिखों का इतिहास बहुत गौरवपूर्ण रहा है, लेकिन कट्टरपंथी विचारधारा के चलते मुट्ठीभर लोगों ने ऐसा विषाक्त वातावरण तैयार किया जिससे न केवल देश की एकता और अखंडता को खतरा पैदा हुआ, बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी खतरनाक साबित हुआ। खालिस्तान की विचारधारा बहुत सारी दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों के बाद लगभग अतीत बन चुकी थी, फिर भी इस विचारधारा को दुबारा से हवा देने की साजिशें जारी हैं। पिछले कुछ महीनों में पंजाब में हुई एक के बाद एक टारगेट किलिंग की घटनाएं गैंगस्टरों और अलगाववादी ताकतों के गठबंधन से उभरी चुनौतियों में दबी हुई तेज कुल्हाड़ियों का पर्दाफाश हो रहा है। उससे यही साबित होता है कि देश की सत्ता को सीधी चुनौती दी जा रही है और एक बार फिर पंजाब में आतंकवाद के दौर की आहट सुनाई पड़ रही है। किसान आंदोलन से चर्चित हुए पंजाबी फिल्म अभिनेता दीप सिद्धू के संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख बने खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह के समर्थकों द्वारा जिस ढंग से अमृतसर के अजनाला थाने पर हथियार लेकर हमला किया गया वह सीधे-सीधे कानून व्यवस्था को सीधी चुनौती है। हथियारबंद लोगों के सामने पंजाब पुलिस को घुटने टेकने पड़े और मारपीट के आरोप में गिरफ्तार किये गए अमृतपाल सिंह के करीबी लवप्रीत सिंह उर्फ तूफान सिंह की रिहाई की घोषणा करनी पड़ी। उससे पुलिस की छवि पर काफी आंच आई है। सवाल यह भी है कि पिछले वर्ष दुबई से आकर अमृतपाल सिंह को समर्थन कहां से मिल रहा है। खालिस्तान मुद्दे की दबी हुई चिंगारियों को लपटों में बदलने के लिए षड्यंत्र कौन रच रहा है। आखिर इतनी बड़ी संख्या में हथियारबंद लोग इकट्ठे कैसे हो गए। जो कुछ भी हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही लेकिन समूचे घटनाक्रम ने अमृतपाल सिंह को ‘हीरो’ बना दिया। अमृतपाल सिंह खुद को सिख प्रचारक एवं ब्लू स्टार आपरेशन में मारे गए जनरैल सिंह भिंडरावाले का समर्थक बताता है और लगातार खालिस्तान का समर्थन कर रहा है। अब तो वह गृहमंत्री अमित शाह को भी स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जैसा होने की सीधी धमकियां दे रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पंजाब में खालिस्तान अलगाववाद के लिए जमीन तैयार की जा रही है और इसे स्थानीय स्तर पर भी और विदेशों में बैठे खालिस्तानी तत्वों का समर्थन मिल रहा है। कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और पाकिस्तान में बैठे खालिस्तानी तत्व इसे हवा देने में लगे हुए हैं। मैं इस इतिहास में नहीं जाना चाहता कि खालिस्तानी मूवमैंट के शुरू होने के क्या कारण रहे। इस विषय पर तो महाग्रंथ की रचना हो सकती है। लेकिन मैं इस बात का उल्लेख कर अपनी पीड़ा व्यक्त करना चाहूंगा कि पंजाब के आतंकवाद ने हमें बहुत जख्म दिए। जिनमें मेरा परिवार भी शामिल है।
80 के दशक की शुरूआत में जब पंजाब में आतंकवादी हिंसा बढ़ने लगी तो 1981 में कलम के सिपाही और जनता की बुलंद आवाज मेरे परदादा और पंजाब केसरी के संस्थापक और सम्पादक लाला जगतनारायण की हत्या कर दी गई। उन्होंने आतंक का कड़ा विरोध अपनी कलम से किया था। उसके बाद एक ही समुदाय के लोगों को लगातार निशाना बनाया जाता रहा। उसके बाद 12 मई, 1984 को मेरे दादा रमेश चन्द्र जी को जालंधर में आतंकवादियों ने गोलियों का निशाना बना डाला। लाला जी की हत्या में भिंडरावाले का नाम आया था, लेकिन सबूतों के अभाव में उस पर हाथ नहीं डाला जा सका। तब तक उसकी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में जड़ें मजबूत हो चुकी थीं। धार्मिक स्थल अपराधियों के आश्रय स्थल बन गए थे। स्वर्ण मंदिर को आतंकवादियों से मुक्त कराने के लिए आपरेशन ब्लूस्टार हुआ, जिसमें 83 जवान शहीद हुए और जनरैल सिंह भिंडरावाले समेत 493 खालिस्तानी आतंकवादी मारे गए थे। आपरेशन ब्लूस्टार के 4 महीने बाद 31 अक्तूबर, 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने कर दी। आतंकवाद के चलते एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री को हमने खो दिया और उनकी हत्या के बाद देशभर में सिख विराेधी दंगे भड़क उठे थे। खालिस्तानी मूवमैंट का यहीं अंत नहीं हुआ। अगस्त 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ पंजाब समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले शिरोमणि अकाली दल के नेता हरचरण सिंह लोगोंवाल की नृशंस हत्या कर दी गई। 23 जून, 1985 को एयर इंडिया के कनिष्क विमान को बम धमाके से उड़ा दिया गया, जिसमें 329 यात्री मारे गए थे। 10 अगस्त, 1986 को पूर्व आर्मी चीफ जनरल ए.एस. वैद्य की दो बाइक सवार आतंकवादियों ने हत्या कर दी, क्योंकि वैद्य ने ही आपरेशन ब्लूस्टार को लीड किया था।
पंजाब के इस काले दौर के दौरान बसों और ट्रेनों से निकाल कर एक ही समुदाय के लोगों की हत्या की गई। 31 अगस्त, 1995 को पंजाब सिविल सचिवालय के पास हुए बम धमाके में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई। इसके बाद आतंकवाद के खिलाफ की गई सख्त कार्रवाई के चलते खालिस्तानी मूवमैंट कमजोर होती गई और अधिकांश सिखों ने इस विचारधारा को अस्वीकार कर दिया। आतंकवाद की काली आंधी ने लगभग सभी दलों के राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाया।
सवाल यह है कि अलगाववाद के स्वर देश के कई हिस्सों से उठते रहे हैं, लेकिन चिंता की बात यह है जब विचारों का अपराधीकरण कर दिया जाता है पंजाब में खालिस्तान अलगाववाद का एक नया रूप देखने को मिल रहा है। इसे गैंगस्टर आतंकवाद कहा जा रहा है। पंजाब में नशा और बेरोजगारी की आड़ में कोई भी आसानी से युवा पीढ़ी को बरगला सकता है। राजनीतिक या बाहरी ताकतें इसका फायदा उठा सकती हैं। केन्द्र सरकार को पंजाब को लेकर गम्भीर होना चाहिए और फन को कुचलने के लिए केन्द्रीय सुरक्षा एजैंसियों को तुरन्त एक्शन लेना चाहिए, ताकि पंजाब का काला इतिहास फिर से न दोहराया जा सके।