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फांसी का डर….

पिछले कई दिनों से टीवी, अखबारों और पैनल डिस्कशन में उम्मीद की जा रही थी कि जल्दी ही ​निर्भया कांड के दोषियों को फांसी की सजा 16 तक दी जा सकती है, जिसके लिए जगह-जगह धरने-प्रदर्शन भी हो रहे हैं।

पिछले कई दिनों से टीवी, अखबारों और पैनल डिस्कशन में उम्मीद की जा रही थी कि जल्दी ही ​निर्भया कांड के दोषियों को फांसी की सजा 16 तक दी जा सकती है, जिसके लिए जगह-जगह धरने-प्रदर्शन भी हो रहे हैं। स्वाति मालीवाल जी भूख-हड़ताल पर हैं। रेप इंडिया, रेप कैपिटल पर बहस हो रही है। फांसी देने के लिए कई तकनीकी व्यवस्थाओं से गुजरना पड़ता है, जिसके लिए 18 को सुनवाई है। 
लोग बहुत इंतजार कर रहे हैं। बार-बार टी.वी. पर फांसी का तरीका बताया जा रहा है। कैसे फांसी दी जाती है, जिसे देखकर आम आदमी का दिल दहल जाता है। परन्तु जब वहशी दरिन्दों का शर्मनाक कांड सामने आता है तो यही दिमाग से आवाज आती है ​कि इन लोगों को तो हर जन्म में फांसी होनी चाहिए और मैं तो यह कहती हूं कि इनकी फांसी को जगजाहिर यानी लाइव दिखाना चाहिए कि कैसे जब फांसी पर जाएंगे, कैसा इनका डर होगा। 
कैसे यह महसूस कर रहे हैं फिर उस डर को लोग निर्भया के अंतिम समय और उस समय के दुर्व्यवहार से तुलना करेंगे  भी कम नजर आएगा और अगर इनकी फांसी लाइव होगी तो ऐसे लोग जो इतनी नीच सोच या मानसिकता रखते हैं वो भी डरेंगे। क्योंकि हम सब जानते हैं भय बिन होइ न प्रीत। भय के बिना न प्यार होता है न डर होता है। अगर ​किसी भी अपराध के रिजल्ट का डर होगा तो ही अपराध रुकेंगे। बहुत ही शर्म की बात है। अभी हैदराबाद की डाक्टर के अपराधियों को पुलिस ने गोली से उड़ा दिया, जिसे लोगों ने बहुत शाबाशी दी, फूल बरसाये। 
क्योंकि मैं मानती हूं कि पुलिस वाले भी इंसान हैं, उनके भी घर में बेटियां हैं, उनका भी दिल खौला होगा। जब ऐसे अपराध करने वालों को देखा होगा तो उनके हाथ एक पिता, एक भाई के रूप में उठ गए होंगे। जो कानून के हिसाब से गलत है, परन्तु एक बेटी के मां-बाप होकर तो देखो तो सही है, क्या सही-क्या गलत हम नहीं जानते परन्तु किसी भी ऐसे अपराध करने वाले को बक्शा नहीं जाना चाहिए। 
बलात्कारियों के लिए फर्स्ट ट्रैक कोर्ट हो और एक सप्ताह या ज्यादा से ज्यादा एक महीने में ऐसे लोगों को सजा होनी चाहिए तब कहीं यह अपराध रुकेंगे। अब तो पिछले दिनों से जो अपराधी सामने आ रहे हैं सभी एक ही तरह के हैं कि पहले गैंग रेप फिर जलाना। वो सोचते हैं कि रेप करने के बाद वो सबूत भी मिटा दो इसलिए लड़कियों को जला रहे हैं। जो ऐसा अपराध करें उन्हें चौराहे पर फांसी नहीं जला कर ही मारना चाहिए ताकि वो दर्द, मौत को भी महसूस करें, साथ में जो ऐसी सोच रखते हैं वह भी देखें। 
एक जिम्मेवार नागरिक होते हुए मेरी इस सोच को गलत ही कहा जाएगा, परन्तु क्या करूं एक महिला होने के नाते दिल दुखी इतना है कि रोक नहीं पा रही हूं। अगर डर नहीं होगा तो यह अपराध रुकेंगे नहीं। अभी दोषियों को फांसी देने की बात हो रही है उस दौरान कितनी ही लड़कियों का रेप हो गया, जला दी गईं। घोर पाप, घोर अन्याय, घोर पीड़ाजनक। अगर तुरन्त सजा देने का प्रावधान न हुआ तो यह अपराध कम नहीं होंगे। 
यहां तक कि निर्भया मामले के दोषियों को फांसी देने की तैयारियों संबंधी मीडिया में आई खबरों के बीच पिछली तीन पीढ़ियों से दोषियों को फांसी देने का काम करने वाले पवन जल्लाद का कहना है कि किसी दुर्दांत अपराधी को फांसी देते समय उनके दिल में कोई रहम नहीं होता और आदेश मिलने पर वह निर्भया के हत्यारों को भी फंदे से लटकाने के लिए तैयार हैं। 
सो कहने का भाव है ऐसे दोषियों के लिए एक मिनट की भी किसी के मन में हमदर्दी नहीं। यहां तक कि कइयों की माएं भी कहती हैं कि ऐसे बेटों को कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए। एक अपराधी की मां ने भी ऐसा ही कुछ कहा-सो इतना डर और भय और फांसी का डर चारों तरफ फैल जाना चाहिए तभी यह अपराध रुकेंगे।

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