भारतीय कुश्ती में मचे बवाल के बीच न्याय व्यवस्था के सर्वोच्च मंदिर सुप्रीम कोर्ट ने महिला पहलवानों की याचिका पर सुनवाई करने का फैसला करके दिखाया कि शीर्ष न्यायालय बेटियों के साथ हो रहे किसी भी प्रकार के भेदभाव और अन्याय को सहन नहीं करेगा। कोर्ट ने महिला पहलवानों की याचिका में यौन उत्पीड़न के आरोपों को गंभीर बताया और कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं होने पर नाराजगी जताते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया। करीब ढाई माह पहले 18 जनवरी को बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आरोप लगाने के बाद धरने पर बैठे पहलवानों को केंद्र सरकार ने न्याय का आश्वासन दिया था। 18 जनवरी को देश के लिये ओलिपिक मैडल विजेता साक्षी मलिक, विनेश फौगाट, संगीता फौगाट सहित कई पहलवानों ने बृजभूषण शरण सिंह पर दस से ज्यादा पहलवानों के यौन और शारीरिक शोषण का आरोप लगाया था। उनके इन आरोपों के समर्थन में बजरंग पूनिया और सुमित दहिया जैसे ओिलंपिक विजेता पहलवान भी धरने पर बैठे नजर आये थे। उस समय पहलवानों की न्याय का भरोसा दिलाया गया था। महिला पहलवान और अन्य पहलवानों ने तीन दिन बाद अपना धरना खत्म कर दिया था। इसके बाद इस मामले की जांच के लिये दो जांच कमेटियों का गठन किया गया था। केंद्रीय खेल मंत्रालय ने एक ओवरसाइट कमेटी का गठन करके अध्यक्ष मैरीकॉम को बनाया था। इसमें पहलवान योगेश्वर दत्त, ध्यानचंद अवॉर्डी, तृप्ती मुरगुंडे, स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) की सदस्य राधिका श्रीमन के अलावा टॉप्स कमेटी के पूर्व सीईओ कमांडर राजेश राजगोपालन को मेंबर बनाया गया था। बाद में छठे मेंबर के तौर पर इसमें पहलवान बबीता फौगाट को शामिल किया गया था। इस मामले की जांच के लिये इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन (आईओए) ने भी 7 सदस्यीय कमेटी बनाई है। इस कमेटी की अध्यक्ष भी बॉक्सर मैरीकॉम थीं। इसमें तीरंदाज डोला बनर्जी, बैडमिंटन प्लेयर अलकनंदा अशोक, रेसलर योगेश्वर दत्त, भारतीय भारोत्तोलन महासंघ के अध्यक्ष सहदेव यादव शामिल हैं। हालांकि महिला पहलवानों ने इन कमेटियों में योगेश्वर दत्त को शामिल किये जाने का विरोध किया था। बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों ने पिछले ढाई माह से न्याय न मिलता देख एक बार फिर जंतर-मंतर पर धरने पर बैठने का निर्णय लिया। इस बार पहलवानों ने अपने समर्थन में राजनीतिक दलों और खाप पंचायतों को भी आमंत्रण दिया है। 18 जनवरी को पहलवानों ने राजनीतिक दलों को इससे दूर रहने का आग्रह किया था। इस धरने में ज्यादातर पहलवान हरियाणा से हैं जहां खाप पंचायतों का खासा प्रभाव है। पहलवानों की इस रणनीति से सरकार पर बृजभूषण शरण सिंह को हटाने का दबाव बढ़ेगा। इस मामले में सियासत का रंग भी चढ़ना शुरू हो गया है। कुछ लोगों ने इसे भारतीय खेल जगत का मी टू मूवमैंट करार दे दिया है लेकिन सच यही है कि भारतीय खेल जगत के सिस्टम में महिला खिलाड़ियों के लिये यौन और शारीरिक उत्पीड़न के मामलों को सार्वजनिक करना बेहद मुश्किल हो जाता है। भारतीय खेलों में कई बार यौन उत्पीड़न के मामले उछले हैं लेकिन उनकी कुछ ही समय तक चर्चा रहती है बाद में यह नेपथ्य में चले जाते हैं और उत्पीड़न की शिकार खिलाड़ियों का करियर खत्म हो जाता है। समय से पहले ही करियर खत्म होने की आशंकाओं के कारण कई प्रतिभावान खिलाड़ी खेल से हट जाते हैं या फिर शोषण सहने को मजबूर होते हैं। खेलों के अलावा आम जीवन में भी अधिकांश महिलाएं यौन शोषण की शिकायत नहीं कर पाती क्योंकि इससे उनकी बदनामी का डर रहता है। यही समाज का डर महिलाओं के उत्पीड़न की वजह बनता है। पिछली बार धरने पर बैठी महिला पहलवानों के बारे में कहा गया था कि अगर यौन शोषण हुआ है तो इसकी एफआईआर दर्ज क्यों नहीं करवाई गई। इस बार तो पहलवानों ने लिखित शिकायत दर्ज करा दी है। देश का गौरव बढ़ाने वाली बेटियों का न्याय के लिये इस तरह भटकना और जंतर-मंतर पर धरने पर बैठना देशवासियों को भावनात्मक रूप से आंदोलित कर रहा है। जहां तक बृजभूषण शरण सिंह का सवाल है तो उसकी गिनती दबंग नेताओं में होती है। 1991 से 2019 तक वह उत्तर प्रदेश की कैसरगंज लोकसभा सीट से छह बार सांसद रह चुके हैं। बृजभूषण शरण सिंह पर अतीत में हत्या, आगजनी और तोड़फोड़ के आरोप लग चुके हैं। बृजभूषण शरण सिंह पर लगे आरोपों की सच्चाई सामने आनी चाहिए। अब इस सारे प्रकरण के दो पहलु हो गए हैं, यौन उत्पीड़न का मामला आपराधिक है और दूसरा है दो कमेटियों द्वारा की जा रही जांच। न्याय का तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचना जरूरी है। देश का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला पहलवानों को कुश्ती संघ के खिलाफ सड़क पर क्यों उतरना पड़ा इसका जवाब भी देश की जनता जानना चाहती है।