यह सुखद संयोग है कि चैत्र नवरात्र और रमजान का पवित्र महीना एक साथ ही शुरू हो रहे हैं। दोनों ही पर्वों में समस्त जगत के कल्याण की कामना की जाती है। नवरात्र में देवी दुर्गा या चंडिका की आराधना पूरी सृष्टि को धन धान्य से परिपूर्ण करने के लिए की जाती है। रमजान के महीने में लगातार उपवास करके अल्लाह से बुराइयों का खात्मा करने की दुआ की जाती है। पूरी दुनिया में भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसमें इस्लाम को मानने वाले सभी फिरके के लोग रहते हैं। इन सभी में इस्लाम की रवायतों में थोड़ा-थोड़ा अन्तर ही होता है मगर सभी को अपनी आस्था के अनुसार अपना धर्म पालन करने का अधिकार भारत का महान संविधान देता है। हमारे संविधान में निजी तौर पर धार्मिक स्वतन्त्रता की गारंटी दी गई है जिसकी जड़ें वास्तव में भारतीय या हिन्दू संस्कृति में हैं। निराकार से लेकर साकार ब्रह्म की उपासना करने वाले लोगों के अलग-अलग मता-मतान्तर वैष्णव व शैव आदि के रूप में प्रकट होते रहे हैं और इसी विशाल दायरे में भारत में अलग-अलग धर्म फलते-फूलते रहे हैं।
अनेकान्तवाद का दर्शन बताता है कि भारत कभी भी रूढ़ धार्मिक बन्धनों में नहीं बन्धा रहा है। इसी प्रकार इस्लाम की स्थापना ‘हजरत मोहम्मद सलै-अल्लाह-अलै-वसल्लम’ ने वैज्ञानिक विचार अपनाते हुए की और 1400 साल पुरानी सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए इस्लाम में जो जीवन पद्धति ‘दीन’ के रूप में विकसित की वह किसी क्रान्ति से कमतर नहीं थी। इल्म और दीन की प्रतिष्ठा उन्होंने इस प्रकार की सामाजिक बुराइयां दूर होती जायें। रमजान का महीना इस मायने में इस्लाम में अत्यधिक महत्व रखता है क्योंकि यह तत्कालीन परिस्थितियों में समाजवाद का पाठ पढ़ाता है। रसूले पाक ने जब यह फरमाया कि हर आदमी का कर्त्तव्य है कि उसका पड़ोसी सुखी रहे और वह भूखा न सोये तो सन्देश यही था कि समाज में आर्थिक बराबरी का बोलबाला हो। इसके साथ ही समाज में समरसता व भाईचारा हर कीमत पर बना रहे।
रमजान का महीना आत्म विश्लेषण का पर्व भी होता है जिसमें व्यक्ति अपनी सभी रसेन्द्रियों पर नियन्त्रण रखने का प्रयास करता है। ठीक यही नवरात्र पर्व में भी देवी की आराधना में उपवास रख कर हिन्दू करते हैं। हिन्दू संस्कृति में आत्म नियन्त्रण पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया है क्योंकि सभी पापों के मूल में रसेन्द्रियां ही होती हैं। नवरात्र पर हिन्दू चंडिका भवानी से अर्चना करते हैं कि हे मां चंडिके तुम सर्व जनों को विद्या से परिपूर्ण करो, यशवान बनाओ व धन से मालामाल करो। इसका अर्थ यही है कि व्यक्ति बेशक निजी तौर पर देवी की आराधना करे मगर वह कामना सभी लोगों के हित की करता है क्योंकि उसी से समाज आगे बढ़ेगा और प्रगति करेगा। रमजान के महीने में भी समाज के वंचित तबकों को आर्थिक मदद देने के लिए जकात की जाती है। यह जकात यह देख कर की जाती है उसका लाभ सर्वथा पात्र व्यक्ति को ही मिले जिससे उसके आर्थिक उत्थान का रास्ता शुरू हो सके। हिन्दू संस्कृति कहती है कि ईश्वर पाने के रास्ते बहुत सारे हैं और अलग-अलग हैं मगर सभी का लक्ष्य एक है। यह लक्ष्य भगवान या अल्लाह अथवा सत्य को पाने का है। सत्य मनुष्य के भीतर ही छिपा होता है अतः आत्म शुद्धि से बड़ा तप कोई नहीं होता। महान सन्त कबीर ने इस गूढ़ तत्व को बहुत साधारण व बोलचाल की भाषा में खोलते हुए यह कहा कि
सांच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर पाप
जाके हृदय सांच है, ताके हृदय आप
वास्तव में हृदय का अर्थ केवल इंसान से है। वह हिन्दू या मुसलमान कोई भी हो सकता है परन्तु सत्य दो नहीं हो सकते। इसका मतलब यही निकलता है कि धार्मिक आडम्बरों से भी ऊपर मनुष्य की असली पहचान इंसान होना है। पैगम्बरे इस्लाम ने इंसानियत को ही अपने अमल से लोगों को समझाया और दूसरे मजहब की एक बूढ़ी औरत द्वारा उन पर रोज कूड़ा फेंके जाने से नागा हो जाने पर वह स्वयं उससे उसका हाल-चाल पूछने गये। अतः नफरत की जगह किसी धर्म में कभी नहीं रही और विशेषकर हिन्दू धर्म में तो घनघोर पदार्थवादी सोच के मनीषियों को भी ऋषि की उपाधि से अलंकृत किया गया। प्रत्येक सोच का सम्मान करना इस देश की महान परंपरा रही। अतः आज सब हिन्दू-मुसलमान भारतवासी चैत्र नवरात्र व रमजान पर्व को हिल मिल कर मनायें और दुनिया के सामने मिसाल पेश करें कि भारत हमेशा अपनी संस्कृति के मूल मन्त्रों से बन्धा रहेगा।