पहली बारिश और...

पहली बारिश और…

50 डिग्री की गर्मी झेलने के बाद जब मानसून का इंतजार कर रहे थे और जिस तरीके से उसका दिल्ली में प्रवेश हुआ वह काफी हद तक घातक रहा। हमारे यहां सबसे बड़ी ​दिक्कत इस बात की है कि गर्मी में जब हम झुलसते हैं तो इसी मानसून का बेसबरी से इंजतार होता है लेकिन मानसून का पानी जब दिल्ली में विशेष रूप से आसपास के इलाकों में जमा होने लगता है तो फिर व्यवस्था पर सवाल भी उठने लगते हैं। महज 48 घंटे पहले की बारिश ने इंदिरा गांधी हवाई अड्डे की छत को ध्वस्त किया और एक कैब चालक की जान चली गई। इसके अलावा जिस तरह से दिल्ली, गुरुग्राम, सोनीपत, गाजियाबाद, नोएडा तक जिस तरह सड़कों पर पानी रहा और लोगों को चार-चार घंटे जाम का सामना करना पड़ा उससे व्यवस्था पर सवाल तो उठते ही हैं। दिल्ली एयरपोर्ट हादसे में छह-सात लोग घायल हुए हैं। जिस छत के नीचे आम टैक्सी वाले रोजी-रोटी की तलाश में यात्रियों की एक कॉल की प्रतिक्षा कर रहे होते हैं वहीं अगर उन पर ऐसी जानलेवा छत गिर जाए तो इसे क्या कहेंगे।

मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि बदलते समय में इस बात का अहसास करना बहुत जरूरी है कि दिल्ली पर आबादी और वाहनों का बोझ बहुत बढ़ रहा है। शहर की सीवरेज व्यवस्था आज से नहीं कम से कम 30 साल पहले से ही लड़खड़ा चुकी है। यद्यपि इस बार मानसून ने पहले ही दिन जिस तरह से दिल्ली में एंट्री की ​उससे 88 साल पुराना रिकॉर्ड भी टूटा लेकिन व्यवस्था के मामले में हमारा प्रशासन आज भी वहीं है जहां वह कम से कम तीस साल पहले था। दिल्ली से गुरुग्राम या नोएडा या गाजियाबाद,मेरठ, सोनीपत जाना हो तो मामूली सी बरसात में ही हाइवे तक पानी के दरिया बन जाते हैं। शहर में पानी के भराव की हालत यह है कि कनाट प्लेस और वीआईपी क्षेत्रों में जहां नेताओं के बंगले हैं उनके वहां तक पानी जमा है। आम आदमी जो निचले क्षेत्रों और अन्य इलाकों में रहता है वहां पानी की हालत यह है कि सड़कों पर ही चाहे वह रिंग रोड हो या अन्य सड़कें वहां इसके निष्कासन की व्यवस्था नहीं है, ऐसा लगता है कि हर साल मानसून जिस तरह से दिल्ली पर बरसता है हमारे प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया।

जो लोग अपने घरों से कामकाज के लिए और व्यापार के लिए बस से या टैक्सी से या फिर अपने वाहन से एनसीआर इलाके में कहीं के लिए भी निकलते हों तो उनको दैनिक जीवन में भी सड़कों पर जाम की समस्या से जूझना पड़ता है। दिल्ली के कनाट प्लेस, रिंग रोड, धोलाकुआं, आउटर रिंग रोड, रोहतक रोड या पंजाबी बाग हो, आजाद पुर हो आखिकार जाम से निपटने के लिए स्थायी व्यवस्था क्यों नहीं है। बारिश के दिनों में अभी चार साल पहले दिल्ली से गुरुग्राम और गुरुगाम से दिल्ली आने-जाने वालों को छह से सात घंटे लग गए थे। पूरा हाइवे जाम था। आखिकार अगर व्यवस्था नहीं होगी तो लोग सवाल उठाएंगे ही। पुराने वर्षों की तरह हर मानसून में व्यवस्था को लेकर चर्चा करना मैं जरूरी समझती हूं लेकिन लोगों को कोई दिक्कत ना हो यह व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। बेचारी महिलाएं जो कामकाज को निकलती हैं वे अपने दफ्तरों में तीन-चार घंटे देरी से पहुंची होंगी और रास्ते में उन्हें कितने भारी जाम का सामना करना पड़ता होगा। यह सचमुच मानसिक रूप से ही तकलीफ देता है लेकिन और भी दुखदायक बात यह है कि ठोस व्यवस्था नजर नहीं आती।

अब जबकि मानसून के आने के पहले ही दिन हम इसके रोद्र रूप को देख चुके हैं तो इसे एक चेतावनी मानकर ठोस व्यवस्था भी करनी होगी। दो दिन पहले जो कुछ बारिश की वजह से दिल्ली में घटित हुआ उम्मीद की जानी चाहिए कि वह दोबारा नहीं होगा। अगर हम अपने हाइवे, रिंग रोड या अन्य महत्वपूर्ण सड़कों पर जलभराव के मौके पर पानी निकासी की व्यवस्था नहीं कर पाएंगे तो फिर हमें दिल्ली को पैरिस बनाने के सब्जबाग दिखाने बंद करने होंगे। लोग अपने घरों में सुरक्षित रहें, सफर में सुरक्षित रहें यह व्यवस्था प्रशासन का काम है और सरकार के प्रतिनिधियों को इसकी व्यवस्था करनी होगी। देश सेवा का मतलब बड़े-बड़े वादे करना नहीं बल्कि ठोस व्यवस्था करना है ताकि नागरिकों को बाढ़ की सूरत में दिक्कतें न हों।

आरोपबाजी में कुछ नहीं रखा। किसी समस्या पर राजनीतिकरण की बजाए व्यवस्था को लेकर सत्तापक्ष हो या विपक्ष सबको मिलकर काम करना होगा। बाढ़ की विभिषीका का असर हम हर साल देखते हैं। प्रशासन कब जागेगा, कब आरोप-प्रत्यारोप की परंपरा तोड़कर ठोस व्यवस्था का इंतजार लोगों को है, यह सब हम सोशल मीडिया पर उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति के रूप में देख रहे हैं। मानसून ने चेतावनी दे दी है अब समय रहते इसकी व्यवस्था कर लेनी चाहिए। मुसीबत आने से पहले ही ठोस व्यवस्था करना आपके विवेक काे दर्शाता है। विश्वास है कि दिल्ली सरकार, केन्द्र सरकार और प्रशासन मिलजुल कर लोगों को मानसून और बारिश के खतरे और इसके असर से बचाकर आगे बढ़ेगा।

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