लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

मछुआरे मांगें पाक से रिहाई

पाकिस्तान ने 20 भारतीय मछुआरों को भारत के सुपुर्द करके आपसी सौहार्दता का परिचय तो दिया है मगर दोनों देशों के बीच की जल सीमा से आरपार जाने पर निरीह मछुआरों को बन्दी बनाने के बारे में कोई ऐसा हल नहीं खोजा है

पाकिस्तान ने 20 भारतीय मछुआरों को भारत के सुपुर्द करके आपसी सौहार्दता का परिचय तो दिया है मगर दोनों देशों के बीच की जल सीमा से आरपार जाने पर निरीह मछुआरों को बन्दी बनाने के बारे में कोई ऐसा हल नहीं खोजा है जिससे रोजी-रोटी की तलाश में निकले इन लोगों काे दोनों देश एक-दूसरे के जल क्षेत्र में गलती से प्रवेश करने पर बेजा गिरफ्तार न कर सकें। जिन 20 मछुआरों को स्वदेश भेजा गया है वे चार साल की पाकिस्तानी जेलों में सजा काट कर रिहा हुए हैं। गौर से देखा जाये तो ये निरीह नागरिक ही हैं जिन्हें दोनों देशों के बीच होने वाली राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। इन मछुआरों को एक से दूसरे देश की जल सीमा में प्रवेश करने की गलती पर भारी सजा दी जाती है और गुप्तचरी करने जैसे अफराधों के तहत मुकदमें भी दर्ज करा दिये जाते हैं। वास्तव में यह अविश्वास का माहौल पाकिस्तान ने ही बनाया है क्योंकि जल मार्ग के जरिये आतंकवादी गतिविधियां चलाने और तस्करी करने का धंधा उसने ही भारत में चलाया। इसके बावजूद पाकिस्तान में कुछ ऐसे स्वयंसेवी या खुदाई खिदमतगार संगठन सक्रिय हैं जो अपने देश में पकड़े गये भोले-भाले भारतीय नागरिकों के मानवीय अधिकारों के लिए काम करते हैं।
यह प्रसन्नता की बात है कि इस्लामी देश पाकिस्तान में मानवीय अधिकारों के प्रति जागरूकता आ रही है और ये संगठन दोनों देशों के आम नागरिकों के बीच प्रेम व सद्भावना बढ़ाने के काम में भी लगे हुए हैं, हालांकि सरकारी स्तर पर इन्हें किसी प्रकार की मदद नहीं मिलती है फिर भी ये संगठन अपने इंसानी फर्ज को ऊपर रख दोनों देशों के बीच में दोस्ताना सम्बन्धों की पैरोकारी करते रहते हैं। ये सामाजिक संगठन दोनों देशों की साझा विरासत का हवाला देकर आपसी कशीदगी को दूर करने के हिमायती हैं। यही वजह रही कि पिछले दिनों लाहौर के एक चौक का नाम सरदार भगत सिंह चौक रखने की व्यापक मुहीम भी पाकिस्तान में छिड़ी थी। मानवीय अधिकारों के समर्थक इन सामाजिक संगठनों की मुखालफत पाकिस्तान के कट्टरपंथी तत्व पूरी ताकत के साथ करते हैं जिन्हें परोक्ष रूप से पाकिस्तान की फौज और यहां की गुप्तचर संस्था ‘आईएसआई’ का समर्थन मिला रहता है। जिसकी वजह से मजहब की बुनियाद पर तामीर हुए पाकिस्तान में भारत विरोधी भावनाओं को कभी दबने नहीं दिया जाता और हर बात में भारत विरोध के बहाने ढूंढे जाते हैं। जैसे हाल ही में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की टीम की जीत को इस देश के एक केबिनैट मन्त्री ने इस्लाम की जीत बता दिया।
भारत विरोध के नाम पर यहां के कट्टरपंथी हिन्दू विरोध का झंडा फहराये रखना चाहते हैं और अपने प्रयासों में सियासी व फौजी वजह से वे कामयाब भी हो जाते हैं। मगर हकीकत यही रहेगी कि भारत-पाकिस्तान का बंटवारा 1947 में पानी पर खींची हुई लकीर की मानिन्द ही रहेगा क्योंकि दोनों देशों के लोगों की संस्कृति और रवायतों में कोई अन्तर नहीं है सिर्फ मजहब अलग है। पंजाब चाहे पाकिस्तान की तरफ का हो या भारत की तरफ का, दोनों की संस्कृति एक ही है, रीति-रिवाज धार्मिक मान्यताओं को छोड़ कर एक जैसे हैं। दोनों देशों को पानी पिलाने वाली अधिसंख्या नदियां साझा हैं, पहाड़ साझा है, धरती पर उगने वाली फसलें साझा हैं, संगीत साझा है , शायरी साझी है, साहित्य साझा है , इतिहास साझा है और तो और हमारी फिल्मों की कहानियां पटकथाएं साझा हैं। पाकिस्तान में फिल्मी नायक सुधीर से लेकर नायिकाएं कविता, संगीता आदि लोकप्रियता के शिखर पर अपना नाम बदलने के बावजूद रही हैं। न जाने कितने फिल्मी नायक-नायिकाओं का जन्म भारत के पंजाब राज्य में ही हुआ था जिनमें सबसे ऊपर नाम स्व. तारिका ‘आसिया’ का गिना जाता है जो ‘पटियाला’ में जन्मी थीं। मगर पाकिस्तान के हुक्मरान इस हकीकत से इसी वजह से घबराते हैं कि दोनों देशों के नागरिकों की सांस्कृतिक व ऐतिहासिक एकता की सतह पर आते ही उनके हाथ से पाकिस्तान के वजूद की वजह निकल जायेगी और खुद उनके मुल्क के लोग ही उन्हें हुकूमत से बरतरफ कर देंगे। इसलिए पाकिस्तान में बार-बार फौजी हुकूमत नाजिल होती रहती है जिससे दोनों देशों के बीच दोस्ताना सम्बन्ध न बन सकें।
पाकिस्तान की राजनीति का मुख्य आधार हिन्दू विरोध इसी वजह से है जिससे मजहब के तास्सुब को हर हालत में इंसानियत से ऊपर रखा जा सके। इसकेे बावजूद यदि पाकिस्तान ‘ईदी फाऊंडेशन’ जैसी संस्थाएं वहां फंसे भारतीय नागरिकों के मानवीय अधिकारों के लिए काम करती हैं तो इसे अंधेरे में एक किरण के रूप में लिया जाना चाहिए मगर पाकिस्तान के हुक्मरानों को समझना चाहिए कि भारत से दुश्मनी बांध कर उसे पिछले 74 सालों  में क्या हासिल हुआ है। यह देश 1971 में दो टुकड़ों मेंे बंट गया और पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया। यही हालत अब बलूचिस्तान की है जिसके लोगों पर पाकिस्तानी हुक्मरान और फौज जुल्मो-गारत बरपा करती रहती है। एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान ने अब तक भारत से लड़ाईयां लड़ कर जितना धन खर्च किया है, वह यदि लोगों के विकास पर खर्च किया गया होता तो आज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में गिनने लायक होती और इसके हाथ में ‘कटोरा’ नहीं होता। जरूरी यह है कि पाकिस्तान अभी भी अपनी जेलों में बन्द पांच सौ से अधिक मछुआरों को तुरन्त छोड़े और दुश्मनी के तेवर बदले जिससे इसके लोगों का समुचित विकास हो सके और यह भारत की तरक्की से बिना चिढ़े अपनी तरक्की की राहें दोस्ताना माहौल कायम करके खोजे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

eighteen − eighteen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।