वर्तमान में भारत दुनिया में सबसे युवा देश है। 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष से कम उम्र की है। भारत इस समय जवानी से लबालब भरा हुआ है, जो किसी भी देश के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है और इसी युवा शक्ति के बलबूते पर वर्ष-2020 तक भारत दुनिया की ‘आर्थिक महाशक्ति’ बनने का स्वप्न देख रहा है। जिस युवा पीढ़ी के बल पर भारत विकास के पथ पर प्रगति का दंभ भर रहा है, उस युवा पीढ़ी की नसों में नशा भरा जा रहा है। युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आती जा रही है, नशा इस कदर हावी हो गया है कि नशा अब मौजमस्ती का नहीं अपितु अाज की युवा पीढ़ी की जरूरत बनता जा रहा है। कुकुरमुत्ताें की तरह उग आए सैकड़ों कालेज के परिसरों के होस्टलों के भीतर और बाहर स्थित ढाबों या आसपास के रैस्टोरैंटों में शाम होते ही शराब और शबाब का दौर चलने की खबरें कोई नई नहीं हैं। हुक्का क्लबों में जूनियर हाईस्कूल से लेकर इंटरमीडिएट तक के छात्र-छात्राएं धुएं से छल्ले उड़ाते नज़र आते हैं। प्रशासन दबाव में रहता है। विश्वविद्यालय के होस्टलों में ड्रग्स की सप्लाई बढ़ने और नशे के आदी छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है।
दिल्ली में नववर्ष से दो दिन पहले नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने विशेष अभियान चलाकर ड्रग्स सप्लाई करने वाले गिरोह में शामिल चार छात्रों को गिरफ्तार किया जो कि प्रतिष्ठित दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय आैर एमिटी यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं। इनसे चरस आैर एलएसडी बरामद हुए हैं। इनकी सप्लाई न्यू ईयर सैलिब्रेशन के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय और ऐसी ही कुछ जगहों पर होनी थी। ड्रग्स की सप्लाई हिमाचल से हो रही थी। प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के छात्रों की गिरफ्तारी तो ‘ए टिप आफ आईस बर्ग’ है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को ऐसा अभियान पूरे साल चलाना चाहिए। सवाल उठ रहा है कि क्या उड़ता पंजाब की तर्ज पर दिल्ली भी उड़ती जा रही है क्योंकि युवाओं में नशा सिर्फ सिगरेट, शराब तक सीिमत नहीं रहा बल्कि वर्तमान समय में कोकीन, हेरोइन, गांजा, चरस, नशीली दवाइयों आदि का नशा युवाओं को तेजी से गिरफ्त में ले रहा है।
भारतीय राष्ट्रीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा लगभग एक करोड़ सात लाख लोग नशीली दवाइयों का सेवन ही नहीं करते बल्कि इसके पूर्णतः आदी हो चुके हैं जिसमें पंजाब, असम, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के बड़ी संख्या में लोग आदी हैं। नशे के मामले में पंजाब बेहद ही संवेदनशील राज्य है जहां 67 फीसदी लोग किसी न किसी प्रकार का नशा करते हैं और 70 फीसदी युवा नशे के आदी हैं। देश में एक करोड़ लोग तो भांग का नशा रोजाना करते हैं। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, क्या छात्रों पर मानसिक दबाव ज्यादा बढ़ रहा है या इसके कुछ आैर कारण हैं। आज के भागमभाग के दौर में होस्टलों में रहने वाली युवा पीढ़ी में नशा करने वालों की औसत बढ़ रही है। मां-बाप के साथ रहकर छात्रों के लिए शराब का लुत्फ महज लुका-छिपी का खेल है, जबकि होस्टलों में रहने वालों के लिए जाम से जाम टकराना अपेक्षाकृत आसान है। समाज और युवाओं के बीच रहकर तमाम तरह की उलझनों को झेलते हुए आैर कुसंगत के असर के चलते न चाहते हुए भी कई युवा इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। कई युवा तो खुद को स्मार्ट और बोल्ड दिखाने के चक्कर में भी इस बुराई को गले लगा लेते हैं। अब तो युवा पीढ़ी में पुरुष ही नहीं युवतियां भी नशे का शिकार हो रही हैं।
युवा पीढ़ी में यह बुराई पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव का ही नतीजा है। करीब 15 सालों से देश के आर्थिक हालात सुधरने और लोगों की आमदनी बढ़ने से भी शराब पीने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। जो कुछ भी हो रहा है, क्या यह सब-कुछ पाश्चात्य अतिवाद के संरक्षण की प्रवृति और भारतीयता को हिकारत की दृष्टि से देखने की मनोवृत्ति का परिचायक नहीं है? यह एक यक्ष प्रश्न है। आए दिन युवा छात्र-छात्राओं की आत्महत्या की घटनाओं का दायरा प्रतिष्ठित कालेजों तक ही नहीं अपितु आईआईटी और भारतीय प्रबंध संस्थान के मेधावी छात्रों तक जा पहुंचा है। लाख समझाए जाने के बावजूद युवा सेल्फी के चक्कर में जानें गंवा रहा है। ड्रग्स के सेवन से गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और मौत की आगोश में सो रहे हैं।
इस बात पर मनोवैज्ञानिक, सरकार, अभिभावक यदि अब भी नहीं चेते तो राष्ट्रीय प्रतिभाएं यूं ही अकाल काल-कविलत होती रहेंगी। निश्चय ही यह एक पारिवारिक क्षति न होकर राष्ट्रीय और सामाजिक क्षति कही जा सकती है। इंटरनेट के बढ़ते प्रचलन ने भी भारतीय बच्चों, किशोरों व युवाओं में अनेक विकृतियों को बढ़ाने में उत्प्रेरक का कार्य किया है। स्मार्ट फोन का इस्तेमाल बच्चों में बैडरूम कल्चर को बढ़ावा दे रहा है। बच्चे ज्यादा एकाकी और अपने ही दायरे में बंध गए हैं और उनकी निगरानी भी कम हो रही है। समय की मांग है कि शिक्षा शास्त्री, मनोवैज्ञानिक, राजनेता और नौकरशाही समन्वित प्रयास करें ताकि देश की भावी पीढ़ी को बर्बादी के दौर में निकाल कर आदर्श नागरिक बनाने की दिशा में त्वरित प्रयास हाे। हमें उड़ती दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र में युवाओं को बचाना होगा।