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फ्रांस की घटना पर हिंसा न हो

भारत की तरह फ्रांस भी पूर्ण रूपेण धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जिसका समाज बहुत उदार और सहनशील है। वैचारिक व धार्मिक स्वतन्त्रता इस देश के संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को दिये गये ऐसे अधिकार हैं

भारत की तरह फ्रांस भी पूर्ण रूपेण धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जिसका समाज बहुत उदार और सहनशील है। वैचारिक व धार्मिक स्वतन्त्रता इस देश के संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को दिये गये ऐसे अधिकार हैं जिनकी शरण में दुनिया भर के देशों में सताये हुए नागरिक आते रहे हैं। वस्तुतः इस देश की खूबी यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे दुनिया का पांचवां गणतन्त्र एक ऐसे सैनिक अफसर ने बनाया जिसने इस युद्ध में जर्मनी के हिटलर को हराने के लिए फ्रांस की फौजों का नेतृत्व किया था। उसका नाम जनरल दिगाल था जो 1969 तक इस देश के राष्ट्रपति रहे, 1944 से 46 तक इस देश की युद्धकाल के बाद बनी अस्थायी सरकार के वह मुखिया बने और बाद में रिटायर हो गये मगर तब उन्होंने अपने युद्ध के संस्मरणों के बारे में एक पुस्तक लिखी जो पूरे फ्रांस के हर नौजवान की लोकप्रिय पुस्तक हो गई। 1958 में फ्रांस की नेशनल एसेम्बली के आग्रह पर ही उन्होंने बाकायदा राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया और इस देश का संविधान बदल कर इसे राष्ट्रपति प्रणाली का गणतन्त्र बनाया।
1969 में फ्रांस में समाजवादी विचारों की पार्टियों के आन्दोलन के चलते उन्होंने अपना पद त्यागा परन्तु फ्रांस को उन्होंने विविध राजनैतिक विचारधाराओं के फलने-फूलने का ऐसा केन्द्र बना दिया था जिसमें रूढ़ीवादी पोंगापंथी विचार वालों से लेकर समाजवादी और कम्युनिस्टों तक के लिए स्थान था। जनरल दिगाल के बाद फ्रांस में समाजवादियों का वर्चस्व बढ़ा और उनके हाथ में इसके बाद सत्ता भी आती-जाती रही मगर इस देश के लोगों ने कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और धार्मिक व वैचारिक स्वतन्त्रता को सदा बरकरार रखा। गत वर्षों में सीरिया जैसे इस्लामी देश में जब जेहादी कट्टरपंथियों ने कहर बरपाया तो सबसे ज्यादा शरणार्थी इसी देश में आये। फ्रांस ने उन्हें अपनाने में कोई हिचक नहीं दिखाई और मानवता के आधार पर उन्हें शरण दी मगर इसी देश में जब एक महिला शिक्षक ने इस्लाम धर्म के प्रवर्तक ‘हजरत मुहम्मद सलै अल्लाह अलैही वसल्लम’ का रेखा चित्र दिखाया तो उसका एक मुस्लिम युवा ने सर कलम कर दिया जिसे इस देश के राष्ट्रपति ने फ्रांस की संस्कृति के खिलाफ बताते हुए वैचारिक स्वतन्त्रता का सम्मान करने की सलाह दी और कट्टरपंथियों को ऐसा न करने की ताईद की।
बेशक इस्लाम में मूर्ति पूजा वर्जित है और रसूले पाक का कोई भी व्यक्ति चित्र नहीं बना सकता। इसे रसूल की तौहीन के तौर पर देखा जायेगा और कोई भी मुसलमान अपने रसूले पाक की तौहीन बर्दाश्त नहीं कर सकता है मगर एेसा करने वाले का सर कलम करना भी इस्लाम की शिक्षा नहीं है क्योंकि इस्लाम का जन्म ही दुनिया में भाईचारा कायम करने और अमन का पैगाम देने के लिए हुआ था। इस्लाम का अर्थ ही बौद्धिक विकास करने से होता है जिसका सबब वैचारिक सोच में क्रान्तिकारी बदलाव लाना होता है। सम्पूर्ण कुराने-मजीद में हिंसा की वकालत कहीं नहीं की गई है और न ही कहीं यह लिखा गया है कि  रसूले पाक की बेइज्जती करने वाले का सर कलम कर देना चाहिए। इस्लाम के उलेमाओं का यह मानना रहा है कि अल्लाह सर्वव्यापी और निराकार है। यहां तक कि कुरान शरीफ कहती है कि किसी भी चीज पर अन्ध विश्वास न करो, पहले उसे समझो-जानो और फिर उस पर यकीन करो। यह पूरी तरह वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाला तर्क है जो अब से 1400 साल पहले हजरत मुहम्मद सलै अल्लाह अलैही वसल्लम ने लोगों को दिया था, परन्तु बदलते समय के साथ पोंगापंथी और कट्टरपंथियों ने अपनी चौधराहट जमाने के लिए ऐसी रवायतों को जन्म दिया जिनसे मुस्लिम कौम लकीर की फकीर बनी रहे। भारत में दुनिया के दूसरे नम्बर पर सबसे ज्यादा मुस्लिम नागरिक रहते हैं। इनमें इस्लाम की रोशनी भरने की जगह यहां के कट्टरपंथी कहे जाने वाले मुल्ला मौलवियों ने इन्हें कभी इल्म की रोशनी से भरने की बात नहीं कही बल्कि उल्टे दकियानूसी में दावे रखने की बातें कहीं।
फ्रांस की घटनाओं को लेकर जिस तरह भारत में कुछ तत्वों द्वारा उग्र प्रदर्शन कराये जा रहे हैं और हिंसक विचार व्यक्त किये जा रहे हैं वे पूरी तरह अनुचित हैं क्योंकि भारत का संविधान शान्तिपूर्ण प्रदर्शन की इजाजत ही देता है। जिस तरह फ्रांस के राष्ट्रपति की तस्वीरों को पैरों तले रौंदने का काम मुम्बई व कुछ अन्य शहरों में किया गया वह देश हित में नहीं है। भारत के मुसलमान सबसे पहले भारतीय हैं और फ्रांस भारत का मित्र राष्ट्र है। अतः धार्मिक हितों से पहले राष्ट्र हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए था और विरोध प्रदर्शन शालीनता के साथ किया जाना चाहिए था क्योंकि भारत का संविधान ही विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार हर हिन्दू-मुसलमान नागरिक को देता है परन्तु सन्तोष की बात है कि कुछ बड़े शहरों के अलावा कट्टरपंथियों का असर देश के अधिसंख्य इलाकों में नहीं है। अतः आम मुसलमान ने इसे बहुत संजीदगी के साथ लिया है और धैर्य का परिचय दिया है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि भारत की सरकार ने इस्लामी कट्टरवाद के मुद्दे पर फ्रांस के राष्ट्रपति का समर्थन किया है और अधिसंख्य मुस्लिम देशों ने भी फ्रांस के संविधान के अनुसार कत्लो-गारत का माहौल पैदा करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की वकालत की है। हमें अपने देश का इतिहास भी नहीं भूलना चाहिए कि जब मुगलिया सल्तनत के दौरान पंजाब के भागमल खन्ना के छोटे बालक हकीकत राय को लाहौर के काजी ने ईश निन्दा करने के आरोप में कत्ल करने का आदेश उसके धर्म परिवर्तन न करने की वजह से दिया था तो शहंशाह शाहजहां ने  लाहौर के सभी काजियों को एक किश्ती में सवार करके उसे नदी में डुबवा दिया था। भारत के इतिहास का यह पहलू बताता है कि बादशाह के मुसलमान होने के बावजूद मजहब हर शहरी का निजी मामला था, जो देश से ऊपर किसी तौर पर नहीं था।

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