ब्रसेल्स में शुरू हुए यूरोपीय संसद के सत्र में फ्रेंड्स आफ पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और फ्रेंड्स आफ इंडिया को कूटनीतिक जीत मिली। यूरोपीय संसद ने भारत के नागरिकता संशोधन कानून पर मतदान मार्च तक टाल दिया। सीएए के खिलाफ यूरोपीय संसद के सदस्यों द्वारा पेश पांच विभिन्न संकल्पों से संबंधित संयुक्त प्रस्ताव को चर्चा के लिए अंतिम एजैंडे में सूचीबद्ध किया गया था। इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के बयान को संज्ञान में लिया गया है, जिसमें सीएए को बुनियादी रूप से भेदभाव की प्रकृति वाला कहा गया था।
आश्चर्य हो रहा था कि भारत का दृष्टिकोण जाने बिना यूरोपीय संसद किसी दूसरे देश की संसद के प्रति फैसला कैसे ले सकती है। यूरोपीय संसद को किसी दूसरे देश के आंतरिक मामलों में टांग अड़ाने का कोई अधिकार नहीं है। दरअसल भारत विरोधी प्रस्ताव शफाक मुहम्मद नामक एक पाकिस्तानी मूल के सांसद के अभियान के कारण लाए जा रहे थे। वह पाकिस्तान के कुछ मित्र देशों को भी प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए लाबिंग कर रहे थे। अनेक देशों ने भारत विरोधी प्रस्ताव से खुद को अलग कर लिया। यूरोपीय संसद भले ही एक स्वतंत्र संस्था है, जो अपने संगठन और विचार-विमर्श में संप्रभु है लेकिन यूरोपीय संसद के अनेक देशों का मानना है कि यूरोपीय संसद और इसके संगठनों द्वारा व्यक्त की गई राय यूरोपीय संघ की आधिकारिक स्थिति का प्रतिनिधित्व नहीं करती। प्रस्ताव से दूरी इसलिए भी बनाई गई क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मार्च में ब्रसेल्स की यात्रा करने वाले हैं।
प्रधानमंत्री भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। शिखर सम्मेलन भारत के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की दृष्टि से आयोिजत किया गया है। यूरोपीय ब्लाक भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सांझेदार है। यूरोपीय संसद में पेश भारत विरोधी प्रस्ताव संबंधों में बड़ी अड़चन पैदा कर सकता था। फ्रांस ने भी समझदारी से काम लेते हुए सीएए को भारत का आंतरिक मामला बताया है।भारत राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर लगातार स्पष्ट कर रहा है कि सीएए नागरिकता देने वाला कानून है, नागरिकता छीनने वाला नहीं। यह पड़ोसी देशों में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हुए लोगों काे नागरिकता देगा।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने यूरोपीय संसद अध्यक्ष डेविड मारिया सामोली को सीएए विरोधी प्रस्ताव के संदर्भ में पत्र लिखकर कहा था कि एक देश की संसद का दूसरे देश की संसद के लिए फैसला अनुचित है और निहित स्वार्थों के लिए इसका दुरुपयोग हो सकता है। अंतः संसदीय संघ के सदस्य के नाते हमें दूसरे देशों, विशेष रूप से लोकतांत्रिक देशों की संसद की संप्रभु प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए।यूरोपीय संसद में सदस्य देशों की अपनी-अपनी विदेश नीति है और यूरोपीय संसद की राय या प्रस्ताव निश्चित रूप से बाध्यकारी नहीं है। मानवाधिकारों की चर्चा करना अनुचित नहीं लेकिन इससे पहले तथ्यों की जांच-पड़ताल करना भी जरूरी है।
पाकिस्तान जिसे भारत में मानवाधिकारों की चिंता है मगर उसके अपने देश में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों को लगातार कुचला जा रहा है। अल्पसंख्यकों ने जब वहां अत्याचारों की अंतहीन पीड़ा को झेला तब किसी ने यूरोपीय संसद में आवाज क्यों नहीं उठाई? यूरोपीय संघ के कुछ सदस्य पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ फैलाए जा रहे दुष्प्रचार का शिकार क्यों हुए? उन्हें क्या पाकिस्तान की करतूतों का पता नहीं?
ऐसा नहीं है कि फ्रांस, इटली, अमेरिका और अन्य देशों में अवैध रूप से रहने वालों को न निकाला जाता हो या फिर ब्रिटेन में अवैध रूप से रह रहे लोगों को जेल न भेजा गया हो तो फिर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार क्यों? इससे पहले मलेशिया ने भी नागरिकता कानून को लेकर टिप्पणी की थी जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापार पर असर पड़ा है और मलेशिया को जबर्दस्त नुक्सान हो रहा है। इस्राइल ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि सीएए भारत का आंतरिक मामला है और भारत को पूरी आजादी है कि वह अपने नागरिकों को लेकर कोई भी फैसला करे। विदेश मंत्री जयशंकर यूरोपीय संसद के सदस्य देशों से सम्पर्क बनाए हुए हैं और उन्हें भारतीय दृष्टिकोण से अवगत करा रहे हैं। फिलहाल यूरोपीय संसद में भारत का प्रभाव काफी बढ़ चुका है। भारत विरोधी प्रस्ताव अब औचित्यहीन दिखाई देता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com