इस लेखमाला के प्रारंभ में मैंने लिखा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सत्ता में वापिसी एक स्टेट्समैन के तौर पर होगी। मेरा अनुमान है कि भारत की जनता का जनादेश उनके पक्ष में होगा। 2019 के चुनावों में इस बार बहुत बड़े बदलाव दिखाई दे रहे हैं। अटल जी युग के कई चेहरे लालकृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, श्रीमती सुषमा स्वराज, कलराज मिश्र, शांता कुमार और कई अन्य नेता इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं। नए चेहरे सियासत के अश्व पर सवार होकर दौड़ लगाने को तैयार हैं। आज अटल जी बहुत याद आ रहे हैं। अटल जी अब तक के भारतीय इतिहास के सबसे लोकप्रिय और सर्वस्वीकार्य राजनीतिक शख्सियत रहे जो जननायक के साथ-साथ महानायक की छवि से लैस हो गए थे।
खुद को नेता से राजनेता यानी स्टेट्समैन में तब्दील कर लिया था। वह राजनीतिक जीवन में सक्रिय लोगों के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन गए थे। यह उनके विराट व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि उनकी मिसाल उनके विरोधी भी देते थे। उनको सभी दलों के नेताओं ने शिखर पुरुष के रूप में स्वीकारा। उनके जैसे समावेशी नेता राजनीति के शिल्पकार दुर्लभ हैं। उनके यश की कीर्ति दलगत सीमाओं से कहीं परे पहुंच गई थी इसलिए नहीं कि वह अपनी भाषण शैली से सबको मंत्रमुग्ध कर देते थे बल्कि इसलिए वह उस राजनीति के वाहक भी थे जिसके कुछ मूल्य और मर्यादाएं थीं। आखिर कौन भूल सकता है वह क्षण जब उनकी सरकार एक वोट से गिर गई थी, इससे पहले उनकी 13 दिन की सरकार के विश्वासमत के समय उनका सम्बोधन कालजयी इसलिए बना कि उन्होंने सत्ता के लिए गलत हथकंडे अपनाने वाली राजनीति की राह पकड़ने से इन्कार कर दिया था। अटल जी ने राजनीति में रहते सत्य का उद्घोषण किया था।
अटल जी का मुझे काफी स्नेह रहा। एक बार मैंने सम्पादकीय में अटल जी की प्रशंसा में लिखा था, हालांकि मैंने उनके नाम एक खत के रूप में धारावाहिक सम्पादकीय भी लिखा। जिसमें भाजपा नेताओं की आलोचना भी होती थी। अटल जी उन सम्पादकीयों का जवाब भी देते थे। एक बार सुबह सवेरे ही प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया तो मुझसे कहा कि अटल जी मुझसे बात करना चाहते हैं। मैंने फोन पर उनका अभिवादन किया तो अटल जी बोले- अश्विनी आज तुमने मुझे बहुत ऊंचा कर दिया, मैं आज खुश तो हूं लेकिन मैं उस दिन उदास भी हूंगा जिस दिन तुम मुझे गिराओगे, इसके बाद उन्होंने जोर से ठहाका लगाया और फोन बंद कर दिया। अटल जी अपने समय से बहुत दूर तक देख सकते थे, स्वप्न दृष्टा थे लेकिन कर्मवीर भी थे। उन्हें जनता से जितना सम्मान मिला, उतना ही अधिक वह जमीन से जुड़ते गए। अपनी सफलता को कभी भी उन्होंने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने ही कहा था-
हे प्रभु मुझे डूबती ऊंचाई कभी मत देना
गैरों को गले ना लगा सके, इतनी रुश्वाई मत देना।
लोगों को इतनी सहजता और सरलता से जुड़े रहने की यह कामना ही उनको सामाजिक जीवन से एक अलग पायदान पर खड़ा करती है।2019 के चुनावों के तेवर काफी बदले हुए हैं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने लिए चौकीदार का विशेषण चुना है। चौकीदार के रूप में देश ने एक ईमानदार, पारदर्शी, संसाधनों और देश के रक्षक प्रधानमंत्री को चुना था। उन पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की पुरानी कविता है, जिसका निष्कर्ष है कि जो उन्हें पत्थर मारता है, उसे वह सीढ़ी बना लेते हैं और उस पर चढ़ जाते हैं। पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के बाद राष्ट्रवाद एक बड़ा चुनावी मुद्दा हो चुका है। लोग भी स्वीकार करते हैं कि देश का चौकीदार चौकन्ना है। पिछले 70 वर्षों के अनुभव के आधार पर हम कह सकते हैं कि देश की जनता फैसला लेना जानती है।
देश को मजबूत नेतृत्व की जरूरत है। देश को राष्ट्रवाद में आस्था रखने वाले प्रधानमंत्री की जरूरत है। मोदी सरकार का 5 वर्ष का शासन बेमिसाल रहा है। मोदी सरकार न सिर्फ नई-नई योजनाएं लाई बल्कि उन्हें कामयाब बनाने में भी सफल रही है। देश की जनता पर मोदी सरकार का प्रभाव बना हुआ है। आज की तारीख में मोदी के राजनीतिक कद जैसा कोई अन्य नेता नज़र नहीं आता। उनकी लोकप्रियता शीर्ष पर है। इसीलिए उम्मीद है कि दूसरी बार प्रधानमंत्री बनकर मोदी स्टेट्समैन के तौर पर उभरेंगे। (समाप्त)