श्रीकृष्ण का जन्म पृथ्वी पर हो रहे अनाचार, अत्याचार को खत्म करने के लिए ही हुआ था। उन्होंने युद्ध के मैदान में अर्जुन को जो उपदेश दिए वे आज भी संशयग्रस्त मानव के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। मनुष्य को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने का कार्य उनका योगेश्वर रूप करता है। वेद पुराण तथा दर्शन के ग्रंथों में योग विज्ञान का विस्तार से वर्णन है। श्रीकृष्ण के बारे में मानव की बहुत सी जिज्ञासाएं हैं। क्या श्रीकृष्ण केवल भगवान हैं, क्या श्रीकृष्ण केवल एक अवतार थे, या कुछ और….। यूं तो भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं से हम-आप सभी परिचित हैं। उनके विचारों, कर्मों, कलाओं और लीलाओं पर ध्यान दें तो पाएंगे कि श्रीकृष्ण केवल एक भगवान या अवतार भर नहीं थे। इन सबसे आगे वह एक ऐसे पथ-प्रदर्शक और मार्गदर्शन थे, जिनकी सार्थकता हर युग में बनी रहेगी। श्रीकृष्ण द्वारा गीता में कहे गए उपदेशों का हर वाक्य हमें कर्म करने और जीने की कला सिखाता है जिसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी कल थी। आज के बदलते माहौल और जीवनशैली में भी कान्हा उतने ही महत्वपूर्ण हैं। इतना ही नहीं समाज के आम जनजीवन से हटकर मैनेजमेंट के क्षेत्र में श्रीकृष्ण को सबसे बड़ा प्रबन्धन गुरु माना जाता है।
जब भी हम खुद को अर्जुन की तरह संशय में घिरा पाते हैं तब हमें योगेश्वर श्रीकृष्ण की वाणी ही उससे निकाल पाती है। श्रीकृष्ण यानी बुद्धिमता, चातुर्य, युद्धनीति, आकर्षण, प्रेमभाव, गुरुत्व, सुख-दु:ख और न जाने क्या-क्या? वे सम्पूर्ण हैं, तेजमय हैं, ब्रह्म हैं, ज्ञान हैं। इसी अमर ज्ञान की बदौलत आज भी हम श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों और गीता के आधार पर आज के प्रतिस्पर्धी युग के विभिन्न क्षेत्रों के साथ जोड़ रहे हैं। श्रीकृष्ण ने धर्म आधारित कई ऐसे नियमों को प्रतिपादित किया जो कलियुग में लागू होते हैं। छल-कपट से भरे इस दौर में धर्म के अनुसार किस तरह का आचरण करना चाहिए ताकि हमारा अस्तित्व बना रहे, यही हमें कान्हा ने ही सिखाया है। अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए भगवान श्रीकृष्ण को सारथी चुना था और अन्त में वह विजयी भी हुआ। जब युद्ध का उद्घोष हुआ तो अर्जुन बहुत निराश थे, क्योंकि उन्हें कौरवों के रूप में अपने ही लोग नजर आ रहे थे। ऐसे में उसने तो धनुष उठाने से इन्कार कर दिया था। श्रीकृष्ण ने कहा था-
हे पार्थ, जो आसुरिक सम्पदा के लोग हैं,
इनके जीवन में परिवर्तन की अपेक्षा मतरख,
गांडीव उठा और संधान कर, नपुंसकता को प्राप्त न हो।
श्रीकृष्ण ने गीता का सन्देश दिया और युद्ध के मैदान में ही अर्जुन को नैतिकता और अनैतिकता का पाठ पढ़ाया। युद्ध नैतिक मूल्यों के लिए भी लड़ा जाता है। तब जाकर अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हुआ। आजादी के बाद आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, परिस्थितियां काफी भयावह हैं। आज विकृत मानसिकता के कई युवा घरों से बाहर निकलते ही महिलाओं की इज्जत को तार-तार करने से नहीं चूकते। रोजाना सामूहिक बलात्कार की खबरें आती हैं। देश में महिलाएं पूरी तरह स्वतंत्र नहीं। देश का हर बच्चा कन्हैया का स्वरूप है लेकिन नन्हें कन्हैया आक्सीजन के अभाव में अस्पतालों में दम तोड़ रहे हैं। कन्हैया के रूप से बालश्रम कराना पाप है लेकिन नन्हें कन्हैया सड़कों के किनारे चाय की दुकानों पर बर्तन साफ करते और कूड़ा बीनते नजर आते हैं। समूचा देश हिंसा की चपेट में है। एक तरफ राजनीतिक ङ्क्षहसा हो रही है तो दूसरी तरफ अपराधियों का बोलबाला है। सीमाओं पर हमारे जवान शहीद हो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में लश्कर, जैश, हिज्ब नृशंसता का खेल खेल रहे हैं। चीन हमें चारों तरफ से घेर रहा है। क्या युद्ध के अलावा कोई विकल्प है?
भारत के प्रत्येक नागरिक को भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से सीख लेनी चाहिए और कृष्णभक्ति के साथ-साथ स्वतंत्र भारत की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। बुरी शक्ति शिशुपाल के लिए उन्होंने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था। आज भी भारत के दुश्मनों की कोई कमी नहीं है। राष्ट्र रक्षा के लिए सशक्त भारत को सुदर्शन चक्र तो उठाना ही पड़ेगा। समूचा राष्ट्र कर्मप्रधान बनकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे। श्रीकृष्ण ने पूरी महाभारत में ज्ञान को कर्म बताया। गीता उपदेश में विश्वदर्शन की सभी धाराएं हैं लेकिन उनका सार तत्व कर्मयोग है। श्रीकृष्ण कर्मप्रधान राष्ट्र के प्रतीक हैं। वह भारत का मन हैं और चेतन भी हैं। जरूरत है उनके उपदेशों का पालन करने की।