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सैफई से गोरखपुर तक

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सियासत के रंग बड़े निराले होते हैं। उत्तर प्रदेश में सत्ता बदलने के साथ ही दृश्य बदल गए हैं। जब भी सरकारें उत्सव मनाती हैं तो विपक्ष फिजूलखर्ची को लेकर उत्सवों के आयोजन की आलोचना करता है। जब विपक्ष सत्ता में आ जाता है तो वह भी उत्सव मनाने लग जाता है। हर राजनीतिक दल सुविधा की सियासत करता नजर आ रहा है। राज्य की सत्ता बदलने के साथ ही महोत्सव का केन्द्र भी बदल गया है। समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान मुलायम सिंह यादव के पैतृक गांव सैफई में हर साल महोत्सव की धूम रहती थी जिसमें अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन से लेकर अनेक चोटी के सितारे भाग लेते रहे हैं। भाजपा आैर अन्य दल हर बार सैफई महोत्सव की आलोचना करते रहे हैं।

मुजफ्फरनगर दंगों के कुछ दिन बाद ही सैफई उत्सव के आयोजन पर विपक्ष ने जमकर निशाना साधा था। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में उत्सव का आयोजन किया गया जिसमें पहले दिन बॉलीवुड नाइट, दूसरे दिन भोजपुरी नाइट और तीसरे दिन फिर बॉलीवुड नाइट का आयोजन किया गया। इस आयोजन में भी शंकर महादेवन, अभिनेता रवि किशन, अनुराधा पौड़वाल व अन्य कई नामीगिरामी कलाकारों ने भाग लिया। भोजपुरी गायिका मृणालिनी अवस्थी के कार्यक्रम में तो बेकाबू भीड़ पर पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। सवाल तो बनता है कि मुख्यमंत्री योगी ने गोरखपुर महोत्सव मनाकर क्या हासिल किया और इससे जनता का कितना भला हुआ? अब विपक्ष आलोचना कर रहा है कि गोरखपुर शहर, जो अब तक दिमागी बुखार से मासूमों की मौतों के कलंक से दागदार रहा है, वह महोत्सव से गुलजार क्यों हुआ? बाराबंकी में जहरीली शराब से 12 मौतों से ग्रामीण गम में डूबे हैं वहीं सरकार जश्न मनाने में मस्त है। पांच महीने पहले मुख्यमंत्री योगी के शहर के सबसे बड़े सरकारी राघवदास मेडिकल कालेज अस्पताल में आक्सीजन की कमी से 64 बच्चों ने दम तोड़ दिया था। उसके बाद भी वहां बच्चों की मौत होती रही है। बच्चों की मौत पर काफी बवाल मचा था।

मासूमों की मौत इसलिए हुई थी क्योंकि उनको समय पर आक्सीजन नहीं मिल पाई थी। इसकी वजह यह थी कि आक्सीजन की सप्लाई करने वाली कंपनी के महज 40 लाख रुपए के भुगतान को रोक दिया गया था जिसके चलते कंपनी ने गैस की सप्लाई बंद कर दी थी। उत्सवों पर विपक्ष की आलोचना को यद्यपि सत्तारूढ़ दल कोरी सियासत करार दे लेकिन यह सच्चाई है कि मस्तिष्क ज्वर का प्रकोप जारी है आैर बच्चों के दम तोड़ने का सिलसिला भी जारी है। मस्तिष्क ज्वर की समस्या को लेकर मैंने योगी जी का लोकसभा में विस्तृत सम्बोधन सुना था तो मैं उनके ज्ञान का कायल हो उठा था। लोगों का कहना किसी हद तक जायज है कि जितना धन गोरखपुर उत्सव पर खर्च किया गया वह शहर के अस्पतालों में सुविधाओं को बढ़ाने में लगाया जाता तो बेहतर होता। लोगों को उम्मीद थी कि योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद इलाके को दिमागी बुखार से निजात मिलेगी और सरकार इस दाग को मिटाने के लिए पूरा जोर लगा देगी लेकिन ऐसा नजर नहीं आ रहा। यह सही है कि गोरखपुर उत्सव सांस्कृतिक आवरण ओढ़े हुए था। इसमें खेलें भी हुईं, हस्तशिल्प मेला, कृषि और पुस्तक मेला भी रहा।

विभिन्न लोक प्रस्तुतियां भी हुईं लेकिन क्या यह सत्ता का वैसा ही रंग नहीं जैसा मुलायम या अखिलेश सरकार दिखा रही थी। इस बात की क्या गारंटी है कि अब 5 महीने बाद मानसून का मौसम फिर आने से गोरखपुर में मासूम दम नहीं तोड़ेंगे। सैफई हो या गोरखपुर, महोत्सवों के दौरान सरकारों का संवेदनहीन रवैया ही सामने आया है। अभी तो गोरखपुर उत्सव की शुरूआत हुई है, आगे-आगे देखिये होता है क्या? सरकारों को समझना होगा कि भारत में लोकतंत्र की असली ताकत मतदाताओं के हाथ में है, सरकारों का हर कदम जनहित में उठाया जाना ही उचित होगा। लोगों को महसूस भी होना चाहिए कि राज्य सरकार उनके हितों की रक्षा कर रही है। समाज के हर वर्ग खासतौर पर किसान, मजदूर और मध्यम वर्ग को लगे कि सरकार उनकी अपनी है तो ही वह संतुष्ट होगा। इमारतों आैर शौचालयों का रंग बदलने से कुछ नहीं होगा।

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