भारत और पाकिस्तान इन दो मुल्कों में जितनी भी असमानता हो, एक मामले में बड़ी गहरी समानता है। गतिरोध के बावजूद दोनों मुल्क करीब आते हैं, पर्दे के पीछे से तारें हिलती हैं। बातचीत भी होती रही, क्रिकेट मैच भी हुए, पटाखे भी बजते हैं। बार-बार हम उम्मीद पाल लेते हैं कि रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलेगी लेकिन फिर पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी तंजीमें भारत पर हमला कर देती हैं और वार्ता प्रक्रिया ठप्प पड़ जाती है। अवाम और नेतृत्व महसूस करता है कि दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ नहीं पिघलने वाली। कारण स्पष्ट है- पाकिस्तान शुरू से ही तानाशाही और मिलिट्री के बूटों तले रौंदा जाता रहा और भारत प्रारम्भ से ही लोकशाही और लोकतंत्र का समर्थक रहा। यह दोनों देशों में मौलिक अन्तर है। आज पाकिस्तान में अराजकता क्यों है, आज भी सिंध, ब्लाेच, पाक पंजाब आैर पाक अधिकृत कश्मीर में बगावत की बू बसी हुई है।
एक ही जबर्दस्त प्रहार से पाकिस्तान विखंडित हो सकता है लेकिन भारत कभी ऐसा चाहता नहीं जबकि पाकिस्तान ने शिमला समझौते के बाद तय कर लिया था कि किसी भी कीमत पर भारत का विखंडन किया जाए। अब केन्द्र सरकार ने ‘करतारपुर दा लांघा’ यानी करतारपुर का गलियारा निर्माण को स्वीकृति दे दी है तो पाकिस्तान के हुक्मरान ने भी करतारपुर गलियारे के निर्माण की घोषणा कर दी और विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह आैर पंजाब के मंत्री नवजाेत सिंह सिद्धू को गलियारे का निर्माण शुरू करने के मौके पर आमंत्रित भी कर डाला। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने चुनावी कार्यक्रमों में व्यस्तता के चलते पाक का धन्यवाद करते हुए कहा है कि वह पाक जाने में असमर्थ हैं लेकिन दो केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल और हरदीप सिंह पुरी केन्द्र के प्रतिनिधि के तौर पर वहां उपस्थित होंगे। भारतीय सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर साहिब गलियारा खोलने की मांग कई वर्षों से की जाती रही है लेकिन आजादी के 70 वर्षों बाद यह फैसला किया गया।
करतारपुर गलियारा सिखों के लिए सबसे पवित्र जगह है। करतारपुर साहिब में गुरु नानक देव जी का निवास स्थान था। जहां पर आज गुरुद्वारा है वहीं पर 22 सितम्बर 1539 को गुरु नानक देव जी ने आखिरी सांस ली थी। इसी जगह उन्होंने अपनी जिन्दगी के 18 वर्ष बिताए थे। बाद में यहां एक गुरुद्वारा भी बनाया गया लेकिन विभाजन के दौरान यह इलाका पाकिस्तान में चला गया। अब दरबार साहिब पंजाब प्रांत के नारीवाल जिले में है। करतारपुर से यह गुरुद्वारा भारत-पाक सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है आैर सिख श्रद्धालु दूरबीन से गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करते हैं। साल 2008 में पाकिस्तान ने भारत से आने वाले सिख श्रद्धालुओं के लिए सीमा पर एक पुल बनाकर वीजामुक्त आवागमन देने का फैसला किया था। वर्ष 2017 में भारत की संसदीय समिति ने कहा था कि आपसी सम्बन्ध बिगड़ चुके हैं इसलिए किसी भी तरह का गिलयारा सम्भव नहीं। पूर्व क्रिकेटर और पंजाब में कांग्रेस सरकार में मंत्री नवजोत सिंह िसद्धू मित्र होने के नाते इमरान खान के प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान गए थे तो काफी विवाद हो गया था। सिद्धू पाक आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिले थे, जो भारतीयों को नागवार गुजरा था।
आलोचना होने पर सिद्धू ने कहा था कि पाकिस्तान भारतीयों के लिए करतारपुर साहिब के दरवाजे खोलने का फैसला ले सकता है, इसलिए ही मैंने उन्हें गले लगाया था। इस बात में कोई संदेह नहीं कि सिद्धू के प्रयासों से ही पाकिस्तान करतारपुर का गलियारा खोलने को राजी हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी आशान्वित हैं कि इस मार्ग से शायद दोनों देशों में ठण्डे पड़े रिश्तों में गर्माहट आ जाए। उन्होंने कहा है कि कौन जानता था कि बर्लिन की दीवार एक दिन गिर जाएगी। अभी केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा करतारपुर साहिब गलियारा खोलने की स्वीकृति की घोषणा की जा रही थी, उधर यह खबरें आ रही थीं कि भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों से दुर्व्यवहार किया गया। उन्हें ननकाना साहिब पहुंचे भारतीय सिख श्रद्धालुओं से मिलने से रोका गया। गुरुद्वारा पिरसर में खालिस्तान समर्थक पोस्टर दिखाई दिए और श्रद्धालुओं को भारत के खिलाफ भड़काया गया।
भारत ने हमेशा की तरह पाकिस्तान से कड़ा प्रोटैस्ट जताया है। 1977 में पाकिस्तान की सरकार, खुफिया एजैंसी आईएसआई और सेना के अधिकारियों ने भारत में जाति के नाम पर उन्माद भड़काने का प्लान बनाया था। उस प्लान का पहला निशाना बना पंजाब। जम्मू-कश्मीर में तो घुसपैठ होती ही थी, पंजाब में भी घुसपैठ करवाई गई। तब पाक ने यह निर्देश दिया था कि पंजाब के मन्दिरों में गोमुंड और गुरुद्वारों में सिगरेट के टुकड़े फैंके जाएं, ऐसा किया भी गया। 15 दिनों के भीतर सिख और हिन्दू संस्थाओं की भाषा बदलने लगी। उन्माद के स्वर गूंजने लगे। परिणाम बड़ा भयंकर हुआ। बसों से यात्रियों को उतारकर मारा जाने लगा। सिख यात्री छोड़ दिए जाते, हिन्दू मार दिए जाते। सारा देश धू-धूकर जल उठा। पंजाब से हिन्दुओं का पलायन होने लगा आैर देशभर में व्यापक प्रतिक्रिया होने लगी। 80 में हिन्दू-सिख के सम्बन्धों पर आंच तो आई परन्तु दामन महफूज रहा। कारण था कि इनमें रिश्ता बहुत पुराना है। हिन्दू-सिखों में रोटी-बेटी और नाखून और मांस का सम्बन्ध और भाईचारे का रिश्ता था।
नरसंहारों के बावजूद पंजाब में आतंकवाद पराजित हुआ। आतंकवाद को बढ़ावा देना आैर उसका राजनयिक इस्तेमाल करना पाकिस्तान की फितरत है। आतंकवाद को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने वाला पाकिस्तान ननकाना साहिब की तरह करतारपुर गलियारे का इस्तेमाल आतंकवाद को भड़काने के लिए नहीं करेगा, इस बात की क्या गारंटी है इसलिए सतर्कता बहुत जरूरी है कि पाक इसका इस्तेमाल सद्भाव की बजाय भारत की एकता को चुनौती देने के लिए न कर सके। सुरक्षा का नेटवर्क ऐसा हो कि देश के दुश्मन इस गलियारे से भारत में घुसपैठ नहीं कर सकें। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्तान पंजाब में खालिस्तानी आतंक को फिर से जीवित करना चाहता है। गलियारा खुले, सिख श्रद्धालु अपनी आस्था के प्रतीक दरबार साहिब के दर्शन करें, जन-जन में मेलजोल बढ़े यह अच्छी बात होगी लेकिन दोनाें देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ नहीं पिघलने वाली। इसके लिए पाक को लम्बा रास्ता तय करना होगा। जब तक वह आतंक की खेती करना बन्द नहीं करता तब तक सम्बन्ध सामान्य नहीं होंगे।