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गडकरी, माल्या और धर्म तेजा

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देश में घोटालों का सामने आना नई बात नहीं। सच पूछिये तो भारत घोटालों की सनसनीखेज खबरें सुनने का आदी हो चुका है। घोटालों को लेकर एक महाग्रंथ की रचना की जा सकती है। विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी फ्रॉड कर विदेश भाग गए जिनको वापस भारत लाने के लिए सरकार और जांच एजैंसियां विदेशों में कानून के तहत मुकद्दमे लड़ रही हैं। ब्रिटेन की अदालत ने माल्या को भारत को सौंपने का आदेश भी दिया हुआ है। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भगौड़े बिजनेस टायफून विजय माल्या को लेकर अपना अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। ​नितिन गडकरी ने भगौड़े विजय माल्या का पक्ष लेते हुए कहा कि एक बार के कर्ज बकायेदार माल्या को चोर कहना गलत है। उन्होंने दावा किया कि संकट में फंसे कारोबारी ने पिछले चार दशकों की लम्बी अवधि में यानी 40 वर्ष लगातार ऋण चुकाया है। ब्याज भी दिया है, परन्तु एक बार वह डिफाल्टर हो गया तो सब फ्रॉड हो गया। ये मानसिकता ठीक नहीं। किसी भी कारोबार में उतार-चढ़ाव तो लगा ही रहता है। इस दौरान अगर नुक्सान होता है तो उस कारोबारी का समर्थन ​किया जाना चाहिए। बीमा हो या बैंकिंग कारोबार, इसमें नुक्सान का डर बना रहता है। अर्थव्यवस्था में ग्लोबल या आर्थिक कारकों से जैसे रिसेप्शन में गलतियां मुमकिन हैं। अगर नीरव मोदी या विजय माल्या ने वित्तीय घोटाला किया भी तो उन्हें जेल भेज दिया जाना चाहिए।

नितिन गडकरी अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने जो कुछ भी कहा है वह एक तरह से सही भी प्रतीत होता है लेकिन भारत में राजनीतिक दल हों, लोग हों या मीडिया-
‘‘लोग तो बात का अफसाना बना देते हैं,
अच्छों-अच्छों को यह दीवाना बना देते हैं।’’
राजनीति को मुद्दे चाहिए, मीडिया को भी रोजगार चाहिए। हर बात को बढ़ा-चढ़ाकर ऐसी हाईप क्रिएट की जाती है कि वह लोगों की चर्चा का विषय बन जाए। सचमुच यह तो धंधे-धंधे की बात है।
‘‘नाई ज्यों बिन उस्तरा, धोबी ज्यों दिन पाट,
त्यों नेता गद्दी बिना, घर के रहे न घाट।’’

अब नितिन गडकरी के बयान पर टिप्पणियां आने लगेंगी कि उन्होंने एक भगौड़े आर्थिक अपराधी का पक्ष लिया है। सरकार किसी न किसी तरह माल्या को बचाना चाहती है। सियासत में ऐसे आरोप आम बात हैं। आज की नई पीढ़ी को तो धर्म तेजा घोटाले की ज्यादा जानकारी नहीं होगी। आंध्र प्रदेश के एक स्वतंत्रता सेनानी के बेटे सुशिक्षित धर्म तेजा ने सरकारी धन से व्यापार का जुआ खेलकर आेनामिस बनने का प्रयास किया था। जहाजों के धनाढ्य व्यापारी ओनामिस अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी के निधन के बाद उनकी विधवा जैकलिन से शादी करके चर्चा में आया था। धर्म तेजा की दूसरी पत्नी 60 के दशक में दिल्ली के राजनीतिक-सामाजिक सर्किल में चर्चित थी। उसने तो एक पार्टी में एक शीर्ष सत्ताधारी नेता को खुलेआम किस किया था। 1961 में धर्म तेजा ने केन्द्र की अनुमति से भारतीय बैंकों से 20 करोड़ 22 लाख का कर्ज लेकर जयंती शिपिंग कम्पनी के लिए जापान से पानी का जहाज खरीदना शुरू किया। उसने सेवानिवृत्त (रिटायर्ड) लैफ्टिनेंट जनरल बी.एम. कौल को जापान में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। जहाज की कीमत की पहली किश्त देकर वह जहाज खरीद लेता था और उसी जहाज को गिरवी रखकर फिर दूसरा जहाज खरीदता था। इस तरह उसने कई जहाज खरीदे। जहाजों की खरीद में जो दलाली मिलती थी उसे जयंती शिपिंग कम्पनी के निदेशक मंडल के सदस्य आपस में बांट लेते थे जबकि तब की सरकार चाहती थी कि वे पैसा सरकार के खाते में जमा हो जाए।

धर्म तेजा ने अपनी ही कम्पनी को खोखला करते हुए कई देशों में सम्पत्ति खरीदी। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता डा. राम मनोहर लोहिया ने लोकसभा में धर्म तेजा का मामला उठाया था। धर्म तेजा ने कोस्टारिका की नागरिकता ले ली थी तब कोस्टारिका की नागरिकता लेने के लिए कुछ पैसे देने पड़ते थे। उसके पास कोस्टारिका का डिप्लोमैटिक पासपोर्ट भी था। उसे भारतीय कानून तोड़ने के आरोप में 1972 में लन्दन में गिरफ्तार किया गया था आैर भारत सरकार उसे स्वदेश लाने में सफल हो गई। इन्दिरा गांधी सरकार ने जयंती शिपिंग कम्पनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया और धर्म तेजा को अदालत में पेश किया गया। 19 अक्तूबर 1972 को उसे 3 साल की सजा सुनाई गई। उस पर 14 लाख का जुर्माना भी लगाया गया था। जुर्माना नहीं देने पर 3 साल की सजा अतिरिक्त काटनी थी। उसने न तो 14 लाख दिए और न ही 3 साल की अतिरिक्त सजा काटी। सत्ता के गलियारे में उसकी ताकत का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता था कि ​नियम को नजरंदाज करके उसे पासपोर्ट भी दे दिया गया। 1975 में सजा पूरी कर 1977 में वह विदेश चला गया। इस मामले पर मोरारजी देसाई सरकार में मतभेद थे। उस पर करोड़ों का सम्पत्ति कर भी बकाया था।

इस देश के कुछ भगौड़े कर्जदार आैर कानून तोड़ने वालों ने भी समय-समय पर कुछ सत्ताधारी नेताओं की मदद से शायद धर्म तेजा से ही यह सब करने के लिए सीखा है। विजय माल्या का मामला भी धर्म तेजा से मिलता-जुलता है। अपनी रंगीन मिजाजी और पेज-थ्री सेलिब्रिटी बन चुके माल्या कभी राज्यसभा के सदस्य थे और देश के ‘माननीय’ थे लेकिन अपराध तो अपराध है। कानून के मुताबिक उसे सजा तो ​मिलनी ही चाहिए। नितिन गडकरी का दृष्टिकोण को भी मैं अनुचित नहीं ठहराता लेकिन विजय माल्या से ऋण की वसूली तो होनी ही चाहिए। जहां तक उन पर विलफुुल डिफाल्टर के टैग का सवाल है तो यह भारतीय सियासत में ‘हाईप’ का परिणाम है।

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