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गडकरी का ‘वैक्सीन’ फार्मूला

केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्री श्री नितिन गडकरी की गिनती उन राजनीतिज्ञों में होती है जो सच को स्वीकार करने में कोई झिझक महसूस नहीं करते हैं और सत्य बोलने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाते हैं।

केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्री श्री नितिन गडकरी की गिनती उन राजनीतिज्ञों में होती है जो सच को स्वीकार करने में कोई झिझक महसूस नहीं करते हैं और सत्य बोलने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाते हैं। उन्हें सत्ता और विपक्ष दोनों ही तरफ रहने का अच्छा अनुभव भी है अतः वह लोकतन्त्र की उस धारा में पक्का यकीन रखते हैं जो केवल लोक हित या जन कल्याण को राजनीति का लक्ष्य निर्धारित करती है। प्रजातन्त्र में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई राजनेता सत्ता में है या विपक्ष में बैठा हुआ है बल्कि फर्क इस बात से पड़ता है कि उसकी दृष्टि लोक कल्याण की किस सीमा तक जाकर अटकती है। संसदीय प्रणाली में बेशक सरकार बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल की होती है मगर इसमें सक्रिय हिस्सेदारी विपक्षी खेमों में बैठे हुए राजनीतिक दलों की भी होती है। इतना ही नहीं सत्ताधारी दल के भीतर भी कभी-कभी मत-भिन्नता पाये जाने पर लोकतान्त्रिक शासन सबको समाहित करके जनता की सरकार का स्वरूप लेता है। इसकी असली वजह जन-पीड़ा या जनता की समस्याओं के समाधान हेतु विभिन्न पक्षों या समूहों अथवा व्यक्तियों द्वारा दिये गये सुझाव होते हैं जिनकी व्यावहारिकता को शासकीय कसौटी पर कस कर सरकार स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए स्वतन्त्र होती है। इस मामले में किसी समस्या की गंभीरता के विशेष मायने होते हैं। 
आजकल भारत में कोरोना संक्रमण ने जो कहर बरपा रखा है उसने देश के राजनीतिक माहौल को दल-गत हितों से ऊपर उठने के लिए मजबूर कर दिया है। महामारी के समय इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस देश में किस प्रकार की शासन व्यवस्था या प्रणाली है क्योंकि मामला सिर्फ सत्ता और जनता के बीच का होता है। जनता को कष्टों से मुक्ति दिलाना सत्ता का पहला काम होता है। लोकतन्त्र में यह काम और अधिक जिम्मेदारी के साथ किया जाता है जिससे जनता का विश्वास उसकी चुनी हुई सरकार में बना रहे। यह कार्य पूरी पारदर्शिता के साथ किया जाता है जिससे जनता के मन में किसी प्रकार की गफलत जन्म न ले सके। कोरोना से निजात पाने के लिए अभी तक के वैज्ञानिक उपायों में सबसे अचूक उपाय प्रत्येक नागरिक को वैक्सीन लगाना ही है। मगर भारत की विशाल 139 करोड़ की आबादी को देखते हुए इसका उत्पादन बहुत सीमित केवल आठ करोड़ वैक्सीन प्रतिमाह ही है। इतने उत्पादन से हम 18 वर्ष से ऊपर की आयु के 90 करोड़ से अधिक लोगों के वैक्सीन लगवाने का काम तीन वर्षों में जाकर पूरा करेंगे जबकि कोरोना से भारत में रोजोना मरने वाले लोगों की संख्या पिछले 24 घंटे में 4500 से ज्यादा पहुंच गई है। इस हिसाब से भारत में एक मिनट में रोजाना तीन आदमियों से ज्यादा मर रहे हैं। इसका उपाय एक ही है कि हम भारत में वैक्सीन उत्पादन को इस प्रकार बढ़ायें कि इसी साल के भीतर सभी वयस्क नागरिकों को वैक्सीन लग सके । श्री गडकरी ने इसी तरफ बहुत महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किया है और कहा है कि क्यों न भारत में वैक्सीन का उत्पादन कर रहीं दो कम्पनियों के फार्मूले का लाइसेंस भारत की अन्य कम्पनियों को देकर इनका उत्पादन बढ़ाया जाये। हालांकि यह सुझाव नया नहीं है क्योंकि कुछ दिनों पहले ही विपक्ष के कई नेताओं द्वारा सरकार को इस प्रकार का सुझाव दिया गया था। मगर इसका महत्व इसलिए है कि स्वयं सरकार में शामिल एक वरिष्ठ मन्त्री ने यह सुझाव सार्वजनिक रूप से दिया है। श्री गडकरी ने कहा है कि जब वैक्सीन की मांग अधिक है और आपूर्ति कम है तो समस्या तो पैदा होगी ही। अतः वैक्सीन केवल एक ही कम्पनी क्यों बनाये। इसका लाइसेंस अन्य कम्पनियों को देकर उत्पादन बढ़ाया जाये और जिन नई कम्पनियों को लाइसेंस दिया जाये वे मूल उत्पादक कम्पनियों को 10 प्रतिशत रायल्टी दें। श्री गडकरी के अनुसार भारत के हर प्रदेश में दो या तीन शोध प्रयोगशालाएं हैं। इन प्रयोगशालाओं को वैक्सीन बनाने की इजाजत दी जानी चाहिए। 
यदि भारत में सकल उत्पादन अधिक हो जाये तो देश की जरूरत पूरी करने के बाद निर्यात किया जाये। यह काम सिर्फ 15 से 20 दिन के भीतर हो सकता है। श्री गडकरी के इस सुझाव को हाथों- हाथ लिये जाने की जरूरत है क्योंकि फिलहाल भारत का हर राज्य वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है और 18 से 45 वर्ष के लोगों को वैक्सीन नहीं लगा पा रहा है।  केन्द्र सरकार भी वैक्सीन के लिए दिन-रात एक किये हुए है। गडकरी ने केन्द्र के प्रयासों की सराहना भी की। बेशक राज्य सरकारें अन्तर्राष्ट्रीय  बाजार से वैक्सीन खरीदने के लिए निविदायें जारी कर रही हैं मगर कोई भी वैक्सीन कम्पनी सितम्बर महीने से पहले इनकी सप्लाई करने को तैयार नहीं है। हकीकत तो ये है कि माडरेना, जानसन एंड जानसन व फाइजर वैक्सीनों की उत्पादक कम्पनियों ने साफ कह दिया है कि वे इस साल की तीसरी तिमाही में ही भारत के वैक्सीन आर्डरों पर विचार कर सकती हैं। भारत में कोवैक्सीन व कोविडशील्ड वैक्सीन उपलब्ध हैं। इनमें से कोविडशील्ड का उत्पादन ब्रिटेन की आस्ट्रजेनिका कम्पनी से लाइसेंस लेकर भारत की सीरम इस्टीट्यूट कम्पनी कर रही है जबकि कोवैक्सीन का उत्पादन भारत की कम्पनी भारत बायोटेक करती है। भारतीय कम्पनी की नई उत्पादन शाखाएं भारत में ही स्थापित करने में कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि हमारे संविधान के पेटेंट कानून में इसकी सशर्त इजाजत है। श्री गडकरी को वाणिज्यिक दिमाग का माहिर मन्त्री माना जाता है। उन्होंने इसके साथ ही अन्य जीवन रक्षक औषधियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने का सुझाव भी दिया है। श्री गडकरी ने  अपनी ही सरकार को कोरोना मुसीबत से छुटकारा पाने का फार्मूला पकड़ा दिया है। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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