जो देश अपने इतिहास की सच्चाई को छुपाने का प्रयास करता है अथवा उसे बदलने की कोशिश करता है वह आने वाली पीढिय़ों को अंधेरे के गर्त में डालने का साजो-सामान तैयार कर देता है क्योंकि वह ऐसा कुआं खोद देता है जिसमें गिरकर भविष्य की पीढिय़ां अपनी विरासत से अंजान होकर कुएं के पानी को ही सागर समझ कर उसके चारों तरफ चक्कर लगाने लगती हैं। यह मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि अमरीका के प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन ने कहा था जिन्होंने संयुक्त राज्य अमरीका देश की नींव डाली थी। अत: यह समझ लिया जाना चाहिए कि राजस्थान की भाजपा सरकार जिस तरह से इतिहास की पुस्तकों में तथ्यों को बदलवा कर कह रही है कि राणा प्रताप ने हल्दी घाटी के युद्ध में अकबर को हराया था वह कितनी बड़ी ऐतिहासिक गलती कर रही है।
क्या सरकार इस तथ्य को भी पलटवा सकती है कि हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की सेनाओं का मुख्य सेनापति एक पठान मुसलमान हाकिम खां सूर था? महाराणा प्रताप का मेवाड़ को पाने का प्रण उन्हें महान बनाता है और मुगलों की दासता स्वीकार न करने के लिए ही उनके यश का गुणगान होता है। इसीलिए उनकी महानता का बखान होता है। आधुनिक भारत के इतिहास में महात्मा गांधी इसीलिए महान हैं कि उन्होंने अंग्रेजों के शक्तिशाली साम्राज्य के विरुद्ध भारत के मजलूम और मुफलिस आदमी के भीतर लडऩे की ताकत पैदा की और अहिंसात्मक तरीके से मुकाबला करने का जज्बा पैदा किया जिसमें हिन्दू-मुसलमान सभी ने कन्धे से कन्धा मिलाकर भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया। ऐसा नहीं है कि इससे पहले भारत की आजादी के लिए कोशिश नहीं हुई मगर उसमें आम आदमी की शिरकत सीमित रही।
महात्मा गांधी ने आजादी के जज्बे को घर-घर में पहुंचाने का कार्य किया और इसके लिए अहिंसा का मार्ग चुना जिसने सदी का महामानव बना दिया और उनसे मिलकर प्रख्यात वैज्ञानिक आइनस्टाइन ने कहा कि आने वाली पीढिय़ां हैरत करेंगी कि कभी इस धरती पर हाड़-मांस का बना कोई ऐसा व्यक्ति भी पैदा हुआ था जिसका नाम गांधी था। अत: महात्मा गांधी को यदि आजादी के बाद सक्रिय राजनीति में आये दीनदयाल उपाध्याय के समकक्ष रखने की गलती की जाती है तो हम अपनी विरासत का अपमान करते हैं और खुद को स्वयं ही छोटा करके आंकते हैं। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि भारतीय जनसंघ या भाजपा के किसी भी नेता का स्वतन्त्रता आन्दोलन से कोई लेना-देना नहीं रहा। इस पार्टी का जन्म ही स्वतन्त्रता के बाद 1951 में हुआ।
इसे बड़े और खुले दिल से स्वीकार किया जाना चाहिए और इसके नेताओं का मूल्यांकन स्वतन्त्र भारत में किये गये कार्यों से किया जाना चाहिए मगर यह नहीं भूला जाना चाहिए कि भाजपा का जन्म जिस लोकतान्त्रिक व्यवस्था में हुआ वह महात्मा की ही देन थी और उसकी स्थापना प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने की थी। पं. नेहरू ने जिस लुटे-पिटे भारत की बागडोर संभाली थी वह अंग्रेजों द्वारा उजाड़ा हुआ ऐसा चमन था जिसमें गरीबी और मुफलिसी चारों तरफ डेरा डाले हुए थी। उद्योगों के नाम पर हमारे पास टाटा, बिड़ला और डालमिया समूह के चन्द कारखाने थे। 95 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर थे। ऐसे भारत का विकास करना पर्वत से गंगा लाने के समान था। तभी पं. नेहरू ने कहा था कि नये भारत के मन्दिर-मस्जिद कल कारखाने और नदियों पर बनने वाले बांध होंगे।
यह नेहरू का ही विशाल व्यक्तित्व और दूरदर्शिता थी कि उन्होंने विदेशी मदद ले-लेकर भारत का औद्योगीकरण किया, उच्च शिक्षण संस्थाओं की नींव डाली, शिक्षा संस्थाओं का जाल बुना, खेती से लेकर आधारभूत ढांचे को मजबूत किया और इस देश की स्वतन्त्र विदेश नीति की नींव डाली। आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में इसी देश के लोगों ने उन्हें सिर-माथे पर बिठाया। विभिन्न विविधताओं से भरे भारत के लोगों को एकजुट रखने के लिए उन्होंने क्षेत्रीय अपेक्षाओं को भी पूरा किया। सरदार पटेल ने बेशक सभी देशी रियासतों का एकीकरण कर दिया था मगर इनकी आंचलिक अपेक्षाएं मरी नहीं थीं। नेहरू ने इन सभी को एकाकार करके समग्र भारत को एक साथ कदम ताल करने का रास्ता बनाया। बिना शक उनसे कुछ गल्तियां भी हुईं मगर इसके बावजूद भारत का विकास अविरल गति से होता रहा।
सरकार गरीबों का स्तर ऊपर उठाने और शिक्षा को आमजन तक पहुंचाने के लिए लगातार काम करती रही और दूरदृष्टा नेहरू दुनिया की परिस्थितियों का संज्ञान लेते हुए इसे हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने का काम करते रहे जिसका प्रमाण यह है कि उन्होंने 1953 में ही परमाणु शोध की आधारशिला रख दी। इसी कार्य को इन्दिरा गांधी ने इस कदर आगे बढ़ाया कि उनका शासनकाल भारत का स्वर्णिम काल तक बना; इमरजेंसी काल को छोड़कर उन्होंने पाकिस्तान को बीच से चीर डाला और डंके की चोट पर राष्ट्र संघ से बंगलादेश को मान्यता दिलवाई। भारत की विरासत यह भी है जिस पर हर देशवासी को गर्व है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि भाजपा के शीर्ष नेताओं का कद छोटा गया है।
पं. दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानवतावाद का फलसफा दिया और कहा कि गांधी के विचार के अनुसार अन्त्योदय का मार्ग इसी सड़क से होकर गुजरता है।
भाजपा यदि कांग्रेस के कुछ नेताओं जैसे सरदार पटेल या लाल बहादुर शास्त्री को अपने नायक मानती है तो इसमें उसकी हेठी होने का कोई सवाल नहीं है क्योंकि आजादी की लड़ाई लडऩे वाला उसके पास कोई था ही नहीं। यदि वह आज के भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के रास्ते खोज रही है तो उसका स्वागत होना चाहिए मगर यह इतिहास कैसे बदला जा सकता है कि जब जम्मू-कश्मीर का विलय विशेष शर्तों पर भारतीय संघ के साथ हुआ था तो उस समय के नेहरू मंत्रिमंडल में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उद्योगमंत्री थे और उनकी भी सहमति विलय की विशेष शर्तों पर थी। डा. मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते के विरोध में दिया था जो पाकिस्तान के साथ हुआ था। अत: हम अपनी विरासत से भागकर कहीं नहीं जा सकते। सवाल न भाजपा का है न कांग्रेस का है बल्कि भारत की विरासत का है। यही हमें आगे का सफल रास्ता बतायेगी। संसद में इस मुद्दे पर विवाद करने से कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि गांधी और नेहरू के नाम इस मुल्क की फिजाओं में गूंजते हैं। इनकी कोई पार्टी नहीं है, इनका कोई मजहब नहीं है।