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गायत्री प्रजापति को उम्रकैद

भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में अपराधीकरण लम्बे समय से चिंता का विषय रहा है। लोकतंत्र में चुनावी मैदान में उतरने और वोट देने का हक नागरिकों को है।

भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में अपराधीकरण लम्बे समय से चिंता का विषय रहा है। लोकतंत्र में चुनावी मैदान में उतरने और वोट देने का हक नागरिकों को है। बिना किसी भेदभाव के सबको समान अवसर मिले, ऐसी भावना इन अधिकारों के पीछे है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हम यह देख रहे हैं कि बाहुबली और संगीन अपराधों के आरोपी जनप्रतिनिधि बन जाते हैं। इन सबको राजनीति में आई गिरावट से जोड़ा गया, नैतिकता, शुचिता की दुहाइयां दी गईं। हमने राजनीति के अपराधीकरण के कड़वे फल भी भोगे हैं लेकिन यह नहीं देखा कि इसके बीज कहां रोपे गए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था​ कि सात सामाजिक पाप में सिद्धांतहीन राजनीति भी शामिल हैं। इसके अलावा कर्म बिना धन, विवेक बिना आनंद, चरित्र बिना ज्ञान, नैतिकता बिना व्यापार, मानवता बिना विज्ञान और त्याग बिना उपासना भी इसमें शामिल है। देश के राजनीतिक सुधारों की प्राणवायु कभी-कभी बहती है। कभी कोई घटना इस प्राणवायु को गति देती दिख जाती है। दुख इस बात का है कि इन सुधारों की पहल जहां से होनी चाहिए वहां से नहीं हो रही। यही कारण है कि अपराधों में लिप्त राजनीतिज्ञों को सजा हो रही है।
इसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को लखनऊ की विशेष अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। उसके साथ दो अन्य आरोपियों आशीष शुक्ला और अशोक तिवारी को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। गायत्री प्रसाद प्रजापति को 18 मार्च, 2017 में गिरफ्तार किया गया था। इन पर चित्रकूट की महिला आैर उसकी नाबालिग बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार का आरोप था। जब उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ था उस समय वे उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार में परिवहन मंत्री थे। इससे पहले वे सरकार में खनन मंत्री थे। जिसमें करोड़ों रुपए के घोटाले के आरोप में उनके घर आैर परिसरों पर सीबीआई ने छापेमारी की थी। बलात्कार मामले में पीड़ित महिला ने आरोप लगाया था कि मंत्री और अन्य आरोपियों ने खनन का काम दिलवाने के लिए उसे लखनऊ बुलाया और इसके बाद कई जगहों पर उसके साथ दुष्कर्म किया गया। वहीं उसकी नाबालिग बेटी के साथ भी दुष्कर्म का प्रयास ​किया गया। चार वर्ष से ज्यादा चली सुनवाई के बाद महिला को न्याय मिला।
एक मिट्टी के कुल्हड़ आैर बर्तन बनाने वाले के घर जन्मे गायत्री राजकुमार कैसे बन गए इसकी कहानी भी काफी दिलचस्प है। कभी उसने अमेठी के कोरवा इलाके में एचएएल की बिल्डिंग में पुताई का काम शुरू किया था। पैसा आया तो प्रजापति पिछड़ी जातियों का झंडा लेकर घूमने लगा। गॉडफादर के रूप में उन्हें मिले मुलायम सिंह यादव। पुताई की ठेकेदारी के साथ उसने प्रोपर्टी का धंधा शुरू किया। 2012 में उन्हें सपा का टिकट दिया गया और वह जीत गए। विधायक बनकर मंत्री भी बन गए और उन्होंने पार्टी के बड़े नेताओं की ऐसी परिक्रमा की वह प्रभावशाली होते गए। जहां से शुरू हुई उनकी दबंगई की कहानी। गायत्री पर जमीनों के अवैध कब्जे, सरकारी जमीन बेचने, पद के दुरुपयोग करने जैसे कई आरोप लगे। फिर उन पर लगा बलात्कार का आरोप। इस कलंक कथा ने उनके राजनीतिक करियर को एक झटके में खत्म कर दिया। गायत्री प्रजापति जैसे कई लोग अभी भी सत्ता में मौजूद हैं।
देश की सियासत में कई ऐसे नेता हैं जिन्होंने जुर्म की दुनिया से निकलकर राजनीति में कदम रखा और वे राजनीति में आकर भी अपनी माफिया वाली छवि से बाहर निकल नहीं सके। जिस फूलपुर सीट से पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू सांसद चुने गए थे उस सीट से अतीक अहमद जैसे बाहुबली नेता का जीतना एक विडम्बना नहीं तो और क्या है। हरिशंकर​ तिवारी, रघुराज प्रताप सिंह, राजा भैय्या, मुख्तार अंसारी, अमरमणि त्रिपाठी के नाम काफी कुख्यात रहे। उत्तर प्रदेश ही नहीं बिहार की ​सियासत भी दशकों तक बाहुबलियों के इर्द-गिर्द घूमती रही है।
सर्वोच्च न्यायालय ने फरवरी, 2020 में एक महत्वपूर्ण निर्णय किया था कि उम्मीदवारों के सम्पूर्ण आपराधिक इतिहास की जानकारी स्थानीय और राष्ट्रीय समाचार पत्र के साथ-साथ सोशल मीडिया हैंडल में प्रकाशित होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण, चुनावी पारदर्शिता और जनता के प्रति राजनीतिक दलों के उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करने के लिए उठाया था। इसके साथ ही राजनीतिक दलों को कहा गया था कि वे संबंधित उम्मीदवार का कारण बताएं और यह भी बताएं कि बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले किसी अन्य व्यक्ति का चयन क्यों नहीं हो सका। न्यायालय के आदेशों के बावजूद कुछ नहीं बदला। कोई भी राजनीतिक दल पाक साफ नहीं है। जिताऊ उम्मीदवार समझे जाने वाले दागी हर जगह घुसे हैं। एक दागी को टिकट देकर दूसरे दागी से मुंह बिचकाना शुचिता की राजनीतिक नहीं है। अभी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। दलबदल का खेल जारी है। देखना होगा कि राजनीतिक दल सिद्धांत की राजनीति करेंगे या सिद्धांत ही नेता की राजनीति।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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