राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत की भले ही गद्दी चली गई हो पर सत्ता के मोह से अब तक उनका संवरण नहीं हो पा रहा, इस वजह से राजस्थान के नए-नवेले भगवा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को खासी परेशानी उठानी पड़ रही है। जब से सीएम शर्मा ने ऐलान किया है कि वे वीआईपी कल्चर से तौबा कर रहे हैं और उनके लिए शहर का ट्रैफिक नहीं रोका जाएगा, वे सड़क पर एक आम आदमी की तरह सफर करेंगे, उनकी तो जैसे शामत आ गई है, उन्हें अपने निवास से सचिवालय तक जाने में भारी ट्रैफिक जाम से जूझना पड़ रहा है।
वैसे भी सीएम के मौजूदा निवास को सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं माना जा रहा है। सीएम के लिए आबंटित बंगले में अब भी पूर्व सीएम अशोक गहलोत ही जमे हुए हैं, लाख मिन्नतों के बावजूद वे अपना घर खाली करने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे। सूत्रों की मानें तो कर्ट्सी कॉल के नाते नए सीएम शर्मा अपने पूर्ववर्ती गहलोत से 2 बार मिलने भी गए, इशारों-इशारों में जानना भी चाहा कि वह अपना सीएम बंगला कब खाली कर रहे हैं, पर गहलोत की ओर से कोई माकूल जवाब प्राप्त नहीं हुआ।
फिलहाल, सहकार मार्ग पर स्थित बिजली बोर्ड के गेस्ट हाउस को सीएम के लिए एक अस्थाई निवास बनाए जाने की तैयारी जारी है।
'कमल' ने क्यों कमलनाथ को ठुकरा दिया
कभी इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र में शुमार हो गए कमलनाथ आखिरकार अपना रंग बदलते-बदलते क्यों रह गए? क्यों उनकी महत्वाकांक्षाओं के सियासी फिज़ाओं में नए कमल का प्रस्फुटन नहीं हुआ? पिछले दिनों जब एक नेता ने कमलनाथ से जानना चाहा कि भाजपा में शामिल होने को लेकर उनके बारे में कयासों के बाजार इतने गर्म क्यों हैं? तो कमलनाथ ने पूरी तरह से इस बात से इंकार नहीं किया था, उन्होंने जोर देकर कहा था-'वे भावनात्मक रूप से गांधी परिवार से जुड़े थे, लेकिन अब जो परिवार की नई पीढ़ी सामने है उनके बात और व्यवहार का लहज़ा बदल गया है, यह बात दिल को भेदती है।' पर सूत्र बताते हैं कि भाजपा के घर कमलनाथ की दाल सिर्फ इस वजह से नहीं गली कि इस कांग्रेस नेता की मांगों की फेहरिस्त काफी लंबी थी, भाजपा को उनकी इतनी उपयोगिता समझ नहीं आ रही थी।
कमलनाथ की अपने पुत्र नकुलनाथ के लिए भाजपा से छिंदवाड़ा सीट की डिमांड थी, अपने लिए वे राज्यसभा चाहते थे और साथ यह भी चाहते थे कि केंद्रनीत मोदी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया जाए। पर संभवतः भाजपा की ओर से कहा गया कि छिंदवाड़ा से उनका प्रत्याशी पहले से तय है (यह नाम िशवराज सिंह चौहान का भी हो सकता है) वैसे भी इस विधानसभा चुनाव में भाजपा छिंदवाड़ा की सभी सात सीटें हार गई थी, इस नाते भी पार्टी को छिंदवाड़ा में नई नीति व रणनीति बुनने की जरूरत है।
भूपेंद्र यादव भिवानी से
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को पार्टी ने सिर्फ इसीलिए राज्यसभा में नहीं भेजा है कि उन्हें हरियाणा के भिवानी महेंद्रगढ़ सीट से चुनाव लड़ने को कहा गया है। कहते हैं भूपेंद्र यादव ने बकायदा इस संसदीय क्षेत्र में अपना ऑफिस भी खोल लिया है, हालिया दिनों में उनकी एक जनसभा भी यहां हुई है, भिवानी-महेंद्रगढ़ के मौजूदा भाजपा सांसद धर्मवीर सिंह इस बाबत अपनी िशकायत दर्ज कराने प्रदेश के सीएम मनोहर लाल खट्टर के पास पहुंचे।
सांसद महोदय का दावा था कि भूपेंद्र यादव को इस सीट से उतारने पर जहां यादव वोटर भाजपा के पक्ष में एकजुट होगा, उसकी प्रतिक्रिया में इस सीट पर जाट वोटर भी एकजुट होकर विपक्षी खेमे का रुख कर सकते हैं। समझा जाता है कि खट्टर ने भूपेंद्र यादव को समझाया है कि 'वे किसी और वैकल्पिक सीट की भी तलाश करें। ताजा जानकारियों के मुताबिक भूपेंद्र यादव के करीबी उनके लिए राजस्थान की अलवर सीट को भी मुफीद मान रहे हैं। वैसे भी इस सीट से विजयी रहे भाजपा सांसद महंत बालकनाथ को भाजपा हाईकमान ने हालिया राजस्थान विधानसभा के चुनाव में उतार दिया था, जहां से उन्होंने जीत दर्ज करायी। हालांकि अलवर सीट पर भाजपा के कई और हैवीवेट भी अपना दावा ठोक रहे हैं, पर भूपेंद्र यादव ने यहां भी अपना पैर टिका दिया है।
कांग्रेस ने जमीनी सर्वे का काम रोका
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस चुनाव में फंड की कमी से जूझ रही है। आयकर विभाग ने भी एक पुराने मामले में कांग्रेस के खाते सीज़ कर पार्टी को 210 करोड़ की पेनल्टी भरने को कहा था, बाद में 115 करोड़ रुपए एकमुश्त जमा करने पर फ्रीज़ खातों से रोक हटाने पर इंकम टैक्स तैयार हो गया और इस बारे में कांग्रेस को अदालत का भी साथ मिला।
सो, आईटी ट्रिब्युनल ने राहत देते हुए कांग्रेस के फ्रीज़ खातों से रोक हटा ली। अब कांग्रेस कोषाध्यक्ष अजय माकन ने पार्टी हाईकमान को बता दिया है कि 'अब उनकी पहली प्राथमिकता इंकम टैक्स झंझटों से पार जाना है इसके लिए वे विभिन्न मदों में पार्टी के खर्चे पर विराम लगा रहे हैं।' अब चूंकि लोकसभा के चुनाव सिर पर है और कई अलग-अलग कंपनियां फील्ड में कांग्रेस के जनमत सर्वेक्षणों को अंजाम दे रही हैं, सो जैसे ही इन कंपनियों की पेमेंट रोकी गई उन्होंने ग्राउंड लेवल पर जनमत सर्वेक्षणों का काम रोक दिया है, इस वजह से कांग्रेस नेतृत्व को अपने प्रत्याशियों के नाम फाइनल करने में खासी दिक्कतें आ रही हैं।
…और अंत में
अनुमानित ही सही इस बार भाजपा 400 की गिनती के आसपास कदमताल कर रही है। इस लिहाज से दक्षिण के राज्य भी भगवा पार्टी के लिए खासे अहम हो जाते हैं, पर इन दक्षिण के राज्यों में पार्टी का अपना कोई खास जनाधार नहीं, सो पार्टी की रणनीति साउथ इंडिया की 129 सीटों पर किंचित कुछ अलग है, केरल, तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक और तेलांगना में भाजपा की नज़र छोटे-बड़े क्षेत्रीय दलों पर टिकी है, उनके साथ गठबंधन कर वह इस 400 के तिलस्मी आंकड़े को मुकम्मल चेहरा-मोहरा देना चाहती है। भाजपा का अपना अंदरूनी सर्वेक्षण बताता है कि 'इस बार आंध्र में चंद्रबाबू नायडू की तेलगुदेशम पार्टी कम से कम 17 सीटों पर अपना दम दिखा सकती है', इसके बाद ही भाजपा शीर्ष ने नायडू के लिए अपने दिल व घर के दरवाजे खोल दिए हैं।
– त्रिदीब रमण