चुनावी साल में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक साथ 19 नए जिलों की घोषणा करके चुनावी दांव चल दिया है। पिछले कई वर्षों से राज्य में नए जिले बनाने की मांग उठ रही थी जिसको मुख्यमंत्री ने बजट बहस के जवाब में पूरा कर दिया है। इस घोषणा के साथ ही राजस्थान में जिलों की कुल संख्या 33 से बढ़कर 50 हो गई है। तीन नए संभाग बनाए जाने की घोषणा के बाद कुल संभाग भी 10 हो गए हैं। वर्ष 2008 के बाद यह पहला मौका है जब नए जिलों की घोषणा की गई। एक नवम्बर, 1956 को वर्तमान स्वरूप में आए राजस्थान में उस समय कुल 26 जिले थे तब 26वां जिला अजमेर बना था। उसके बाद समय-समय पर 7 नए जिले बने। 2008 में 33वां जिला प्रतापगढ़ भाजपा की मुख्यमंत्री वसुंदरा राजे के कार्यकाल में बना था। राजस्थान क्षेत्रफल में देश का सबसे बड़ा राज्य है। बाड़मेर जैसे जिलों की सीमा तो कई राज्यों से भी अधिक है। कई जिले ऐसे हैं जहां जिला मुख्यालय से कई इलाकों की दूरी 100 किलोमीटर से भी ज्यादा है। पिछले कुछ वर्षों से जनसंख्या में भी बढ़ौतरी हुई है। इस कारण आम लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। कई जिलों की जनसंख्या काफी अधिक होने के कारण प्रशासन का लोगों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा था।
जिले बनाने की मांग को लेकर सियासत इतनी गर्म हो गई थी कि एक मंत्री ने अपना पद छोड़ने का ऐलान कर दिया था और एक कांग्रेसी विधायक ने अपने इलाके को जिला बनाने की मांग को लेकर नंगे पांव रहने का प्रण ले लिया था। पदयात्राओं और रैलियों ने सियासी माहौल गर्मा दिया था और हजारों लोगों ने पदयात्राएं निकाल कर अपनी आवाज बुलंद की। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने भी नए जिलों के लिए 2014 में रिटायर्ड आईएएस प्रमेश चन्द की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी, जिसने 2018 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी लेकिन नए जिलों का ऐलान नहीं हुआ था। नए जिले बनाने के लिए कांग्रेस और उसके समर्थक विधायक गहलोत सरकार पर दबाव बनाए हुए थे। दबाव के चलते मुख्यमंत्री गहलोत ने पिछले वर्ष पूर्व आईएएस राम लुभाया की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। इसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री ने नए जिले बनाने का ऐलान कर दिया। राजस्थान में नए जिले बनाना कोई नई बात नहीं है। देश में कई राज्य ऐसे हैं जो राजस्थान से क्षेत्रफल में छोटे हैं। उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश में 52, उत्तर प्रदेश में 75, तमिलनाडु में 38 और महाराष्ट्र में 36 जिले हैं।
हाल ही में भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान से छोटे राज्य पश्चिम बंगाल में भी 7 नए जिलों की घोषणा की गई है। जिले बनाने को लेकर कई मापदंड पहले से ही तय हैं। जैसे जिलों के गठन के लिए वर्तमान जिला मुख्यालय से दूरी न्यूनतम 50 किलोमीटर होनी चाहिए, आसपास के क्षेत्र तहसील आदि मिलाकर आबादी कुल 10 लाख होनी चाहिए। भविष्य की प्रशासनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आर्थिक संसाधन मौजूद होने चाहिए। इसके साथ ही जिला स्तरीय कार्यालय, जिला न्यायालय, राजकीय कालेज सहित भवनों की व्यवस्था और हर तरह की बुनियादी व्यवस्था होना जरूरी है। यद्यपि विपक्ष मुख्यमंत्री को नए जिले बनाने की घोषणा की आलोचना कर रहा है। उसका कहना है कि इससे राज्य पर अत्यधिक आर्थिक बोझ बढ़ेगा लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी जादूगरी दिखा ही दी है। राजस्थान में नए जिले बनाने से परिदृश्य में काफी बदलाव देखने को मिलेगा। राजस्थान की जनता इसका भरपूर स्वागत कर रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि नए जिले बनने से आम जनता को काफी फायदा होगा। जिला स्तर के अधिकारियों तक अपनी समस्या पहुंचाने के लिए लम्बी दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी।
यह सही है कि हर जिले में प्रशासनिक सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा लेकिन लोकतंत्र में जनता की सुविधाएं ज्यादा मायने रखती हैं। नए जिलों में प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत होगी, कानून व्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था बेहतर होगी। जब जिला स्तर का आधारभूत ढांचा तैयार किया जाएगा नए भवन बनाए जाएंगे तो लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। पहले उपखंड या तहसील स्तर की जमीन अब जिला स्तर की होगी तो प्रोपर्टी के दाम भी बढ़ेंगे और मकानों का किराया भी बढ़ेगा। अभी मुख्यमंत्री की घोषणा काे जमीनी स्तर पर फलीभूत होने में समय लगेगा लेकिन राज्य के लोग इससे काफी संतुष्ट हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है। अब देखना यह है कि उन्हें कितना चुनावी लाभ होता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा