बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसको मनुष्य विवश होकर देखने को मजबूर है। यह एक ऐसी आपदा है जिसमें मनुष्य अपना सब कुछ स्वाहा कर बैठता है। किसी भी चीज की अति बहुत खतरनाक होती है। जब तक नदियां एक सीमा तक जल का निर्बाध प्रवाह करती हैं तो उनको सभी निहारते हैं लेकिन जब वे वर्षा ऋतु में अपने जलस्तर को बढ़ाकर विकराल रूप धारण कर लेती हैं तो उनकी सुन्दरता कुरूपता में बदल जाती है। मानव ने भले ही नये-नये आविष्कार करके प्रकृति को कड़ी टक्कर दी है लेकिन मानव अपने उत्थान के साथ ही प्रकृति के साथ संघर्ष करता आया है। तेजी से बढ़ती आबादी, मौसम चक्र में गड़बड़ी और फेरबदल, प्रदूषित पर्यावरण, अनियोजित और अनियंत्रित विकास के फलस्वरूप देश में बाढ़ का खतरा दिनोंदिन गम्भीर होता जा रहा है।
हर वर्ष बाढ़ के कारण जान-माल का भारी नुक्सान होता है। सरकारी तंत्र घिसी-पिटी तकनीक और पंक्चर रणनीति के तहत बाढ़ रोकने का दावा करता है। बाढ़ प्रबन्धन, राहत, मुआवजे और पुनर्वास के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं। हर बाढ़ की तबाही के बाद सरकार ठोस नीति और बचाव के लिए योजनाएं तैयार करती है लेकिन बारिश आते ही सारी की सारी योजनाएं बाढ़ में बह जाती हैं। अब तक बाढ़ नियंत्रण के नाम पर जो कुछ किया गया उससे वांछित परिणाम सामने नहीं आये हैं। इन दिनों बाढ़ ने बिहार, असम, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में तबाही मचा रखी है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बादल फटने और भूस्खलन से जान-माल की हानि हो रही है। मानवता बाढ़ से कराह रही है। बिहार और असम की भयंकर बाढ़ ने तो पूरे देश को चिन्तित कर दिया है। लाखों लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। कितने ही लोग बाढ़ की वजह से मौत की आगोश में समा गए। सैकड़ों मकान क्षतिग्रस्त हो गए। हजारों लोग बेघर होकर शरणार्थी जीवन जीने को मजबूर हुए हैं। खेतों में खड़ी फसल तबाह हो गई जिन्हें लोगों ने अपने खून-पसीने से सींचा था।
देश में बाढ़ आने के विभिन्न कारण हैं। देश में बाढ़ पूर्वोत्तर राज्यों को हमेशा नुक्सान पहुंचाती है। इसकी वजह चीन और ऊपरी पहाड़ों पर भारी बारिश होना है। वर्षा का यह पानी भारत के निचले इलाकों की तरफ बहता है और यही पानी तबाही का कारण बनता है। नेपाल में भारी वर्षा का पानी भी बिहार की कोसी नदी को उफान पर ला देता है। कोसी नदी नेपाल में हिमालय से निकलती है। यह नदी बिहार के भीमनगर के रास्ते भारत में दाखिल होती है। कोसी बिहार में भारी तबाही मचाती है इसलिए इसे बिहार का शोक या अभिशाप कहा जाता है। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है। नेपाल द्वारा पानी छोड़े जाने से बिहार में बाढ़ की स्थिति गम्भीर हो गई है। कोसी नदी हर साल अपनी धारा बदलती रहती है। वर्ष 1954 में नेपाल के साथ समझौता करके इस पर बांध बनाया गया। हालांकि बांध नेपाल की सीमा में है लेकिन इसका रखरखाव भारत के जिम्मे है। नदी के तेज बहाव के कारण यह बांध कई बार टूट चुका है। पहली बार यह बांध 1963 में टूटा था। 2008 में कोसी नदी की बाढ़ से करीब 1500 करोड़ का नुक्सान हुआ था। बंगलादेश के बाद भारत दुनिया का सर्वाधिक बाढग़्रस्त देश है। पिछले 6 दशकों में देश में 260 के लगभग बड़े बांध बनाए गए हैं। अनेक निर्माणाधीन हैं।
20 वर्षों से बाढ़ नियंत्रण में मदद के लिए रिमोट सेसिंग और भौगोलिक सूचना व्यवस्था का इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन संतोषजनक नतीजे सामने आ नहीं पाए। बाढ़ से निपटने के लिए 1978 में केन्द्रीय बाढ़ नियंत्रण बोर्ड का गठन किया गया था। बाढ़ एक राष्ट्रीय आपदा है। इसके बावजूद इसे राज्य सूची में रखा गया है। केन्द्र सरकार बाढ़ से सम्बन्धित कितनी ही योजनाएं बनाए लेकिन उन पर अमल करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। एक राज्य की बाढ़ का पानी सीमावर्ती राज्य के इलाकों को प्रभावित करता है। विकसित देशों में तूफान, भूकम्प और बाढ़ के लिए कस्बों का प्रशासन भी पहले तैयार रहता है। उन्हें पहले से ही पता होता है कि किस पैमाने पर आपदा की स्थिति में उन्हें क्या करना है। यहां बाढ़ आते ही राज्य के मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तक आ पहुंचते हैं।
केन्द्र अरबों रुपए की सहायता करता है। राज्य सरकारें अपने स्तर पर बाढ़ बचाव के उपाय नहीं करतीं। लोग तबाह हो जाते हैं। हम इन आपदाओं के निर्णायक समाधान की ओर नहीं बढ़े हैं। क्यों हम साल-दर-साल बाढ़ या सूखे का इंतजार करें। मानसून पर निर्भर हमारी खेती को बचाने के लिए हम जल संरक्षण के उचित प्रबन्ध क्यों नहीं करते। जल प्रबन्धन में आज हमारे पास प्रतिभाओं की कमी नहीं लेकिन हम नई विधियों से काम करने को तैयार नहीं। जरूरत है बाढ़ के भयानक संदेशों को पढ़कर आगे बढऩे की, अन्यथा मानवता कराहती रहेगी और बाढ़ हमें हमेशा शर्मिंदा करती रहेगी।