सदियों से भारत विभिन्न मतों व धर्मों के अनुयायिओं की प्रिय धरती रहा है। सदियों से ही हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख व मुस्लिम आपसी प्रेम व भाईचारे के साथ रहते आ रहे हैं। इन लोगों के बीच आपसी बैर-भाव कायम कराना अंग्रेजों की रणनीति रही और जिसके चलते उन्होंने भारत पर दो सौ साल तक राज भी किया। मगर भारत से जाते-जाते भी अंग्रेज इस मुल्क को दो धर्मों हिन्दू व मुसलमान के आधार पर बांट गये और पाकिस्तान बनवा गये। इस रणनीति को हमें समझना चाहिए। अंग्रेजों ने इस रणनीति को चलाकर कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को कंगाल बना कर छोड़ दिया और भारत को बाजीगरों, सपेरों और तमाशगीरों का देश कहा। हिन्दू-मुस्लिम बैर-भाव कायम करके अंग्रेजों ने इस देश की सम्पदा को जमकर लूटा और हमें अपने धार्मिक झगड़ों में उलझाये रखा जबकि अंग्रेजों से पहले का भारत का इतिहास कौमी भाई चारे का इतिहास रहा। बेशक पांच सौ साल तक इस मुल्क में मुसलमान सुल्तानों व मुगल बादशाहों का राज रहा। कुछ अपवादों को छोड़कर भारत की मिट्टी की तासीर का असर सभी धर्मों पर हुआ जिससे इस्लाम भी अछूता नहीं रह सका और इसके मानने वाले लोगों ने भी भारत की धरती के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
1857 का प्रथम स्वतन्त्रता समर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। मुगल बादशाहों ने भारत की संस्कृति का हमेशा इस्कबाल किया और अपने दरबारों में भी इसकी छाप को बनाये रखा। पूरे मुगल इतिहास में हमें एक घटना भी बकरीद के मौके पर हिन्दू-मुस्लिम फसाद की नहीं मिलती है। इसी प्रकार होली या दिवाली पर भी हमें साम्प्रदायिक दंगे का कहीं कोई वर्णन नहीं मिलता है। इसका मतलब सीधा है कि ये सभी वर्जनाएं अंग्रेजों के शासन में पैदा हुईं और उन्होंने अपना राज पुख्ता करने के लिए इनका भरपूर लाभ उठाया। अब हम 21वीं सदी के लोकतान्त्रिक भारत में जी रहे हैं जिसमें जनता अपने एक वोट की ताकत से सरकार बनाने और बिगाड़ने की कूव्वत रखती है। हमने हाल ही में सम्पन्न चुनावों में देखा कि किस प्रकार राजनैतिक समीकरण जनता ने बदल डाले। भाजपा को 303 से 240 सीटों पर ला दिया और कांग्रेस को 52 सीट से 99 पर पहुंचा दिया। सत्ताधारी एनडीए को 292 सीटें दीं तो विपक्षी इंडिया गठबन्धन को 232 सीटें दीं। आज के भारत में जनता की ताकत के आगे सारी ताकतें नाकारा साबित हो जाती हैं। ऐसे भारत में यदि किसी राज्य की पुलिस इस आधार पर किसी कस्बे या गांव में उन लोगों के घरों को गिरा दे कि उनके घरों में रखे फ्रिजों में गौमांस मिला है तो इसे हम क्या कहेंगे? मध्यप्रदेश के मांडला जिले के नैनपुर थानान्तर्गत स्थित एक आदिवासी बहुल गांव में कथित तौर पर सरकारी जमीन पर बने 11 मकानों को पुलिस ने इसलिए तोड़ डाला कि उनके घरों के फ्रिजों में गौमांस रखा हुआ था।
उनके घरों में जानवरों की खालें बरामद हुई। पुलिस का आरोप है कि इस गांव के लोग पशु तस्करी में शामिल हैं और सीधे जबलपुर तक यह कारोबार करते हैं। राज्य में गौवध निषेध कानून लागू है परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि पशुओं का व्यापार किया ही नहीं जा सकता। जहां अवैध जमीन पर मकान बने होने का सवाल है तो उसके लिए अदालत के आदेश होने जरूरी हैं। पुलिस बजाते खुद कभी भी अदालत के अख्तियार हासिल नहीं कर सकती है। पशु तस्करी करना हालांकि अपराध है मगर कारोबार करना नहीं। पुलिस ने यह कार्रवाई बकरीद से कुछ दिन पहले ही की है और इस बात का प्रचार किया है कि आरोपियों के घर से गौमांस बरामद हुआ। यह किसी भी सूरत में उचित नहीं कहलाया जा सकता है क्योंकि इससे हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के टूटने के आसार पैदा होते हैं और मुस्लिम भाइयों के प्रति आशंका बढ़ने के आसार पैदा होते हैं। पुलिस का काम सामाजिक सौहार्द बनाये रखने का होता है न कि उसे तोड़ने का। एक दिन बाद जब बकरीद का त्यौहार है तो इस प्रकार के प्रचार पर अंकुश लगाया जाना चाहिए था और मुस्लिमों को यह सन्देश दिया जाना चाहिए था कि वे अपना त्यौहार भारतीय कानूनों की मर्यादा के अंतर्गत खुशी-खुशी मनाये। परन्तु उनमें भय की भावना भरने का काम करके अन्य राज्यों के लोगों को भी आशंकित कर दिया है। इसी प्रकार के निकट ठाणे में एक बकरे पर राम लिख कर हिन्दुओं की भावनाएं भड़काने का काम किया गया है।
सवाल यह है कि ऐसा काम कौन लोग करते हैं? जाहिर है कि ऐसा काम वे लोग ही कर सकते हैं जिनका काम हिन्दू-मुस्लिम फसाद का कारोबार हो। लोकतन्त्र में यह देखना बहुत महत्वपूर्ण होता है कि किस घटना से किसे लाभ पहुंचता है। बेशक मध्यप्रदेश में चुनाव हो चुके हैं मगर महाराष्ट्र में इसी अक्तूबर महीने तक चुनाव होने हैं। फसाद का कारोबार वे तत्व करते हैं जो राजनीति में अपनी पैठ बनाना चाहते हैं और खुद को वोटों का सौदागर बताते हैं। हमें ऐसे लोगों से सावधान रहना है और अपने भाईचारे को टूटने नहीं देना है। हमारे स्वतन्त्रता सेनानी पुरखों ने हजारों बलिदान देकर हमें आजादी दिलाई है इस आजादी को हम हिन्दू-मुसलमान की राजनीति पर कुर्बान होते नहीं देख सकते। इसीलिए भारत के बारे में कहा जाता है कि इसे अपने घर के दुश्मनों से ही सबसे ज्यादा खतरा रहा है क्योंकि जब सामाजिक भाईचारा तोड़ने की कार्रवाई की जाती है तो वह किसी राष्ट्रघाती कार्रवाई से कम नहीं होती। इसीलिए भारत में पहला जो आतंकवाद विरोधी कानून 'टाडा' बनाया गया था उसमें सामाजिक विद्वेष फैलाने की कार्रवाई को भी राष्ट्र विरोधी कार्रवाई अंजाम दिया गया था मगर दूसरे कानून 'पोटा' में इसे बाहर कर दिया गया था। ऐसा तत्कालीन गृहमन्त्री श्री लाल कृष्ण अडवानी ने क्यों किया था इसका उत्तर आज तक नहीं मिल पाया। मगर शुक्र है कि इस कानून को निरस्त कर दिया गया था। दो सम्प्रदायों या वर्गों में रंजिश फैलाने के उद्देश्य से की गई कार्रवाई राष्ट्र विरोधी कार्रवाई तो होती ही है मगर मानवता विरोधी कार्रवाई भी होती है और भारत का पूरा संविधान मानवतावाद पर ही टिका हुआ है। इसलिए हमें आवाज बुलन्द करनी चाहिए कि 'आवाज दो हम एक हैं'।