बजट पेश किए जाने के बाद लगातार 6 दिन से शेयर बाजार लुढ़क रहा था लेकिन मंगलवार का दिन निवेशकों के लिए मंगलमय नहीं रहा। शेयर बाजार सेंसेक्स में लगभग 1200 अंक की गिरावट के साथ शुरू हुआ। इस गिरावट के चलते निवेशकों के 5 लाख करोड़ रुपए डूब गए। इतनी बड़ी रकम डूबने का अर्थ यही है कि बड़े निवेशकों के साथ-साथ छोटे-छोटे लाखों निवेशकों को अच्छा-खासा नुक्सान झेलना पड़ा। आखिर इतनी बड़ी रकम समुद्र में तो डूब नहीं गई, स्पष्ट है कि यह धन किसी दूसरे की जेब में ही गया होगा। किस-किसको नुक्सान हुआ, इसकी कथाएं प्रकाशित हाे रही हैं। 90 के दशक से ही शेयर बाजार को अर्थव्यवस्था के विकास का पैमाना बनाकर पेश किया जाता रहा है। शेयर बाजार का लुढ़कना अर्थव्यवस्था में कुछ न कुछ गड़बड़ का संकेत देता है लेकिन शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव तो एक जबर्दस्त खेल है। शेयर बाजार के खिलाड़ी तो जानते ही होंगे कि यह तो मानवनिर्मित बाजार है जो शुद्ध मुनाफे के लिए बनाया गया है। बाजार के नियम भी मानवनिर्मित हैं। बाजार धारणाओं से चलता है। यह सही है कि बजट ने शेयर बाजार को निराश किया। शेयरों पर 10 प्रतिशत का पूंजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन टैक्स) लगाए जाने से ही निवेशक की चिन्ताएं बढ़ गईं। इसके अलावा राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से चूकने से भी बाजार पर असर पड़ा लेकिन शेयर बाजार में मंगलवार को आई गिरावट के लिए घरेलू कारणों से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय कारण ज्यादा नजर आए। शेयर बाजार में गिरावट का कारण डाऊ जोंस में आई गिरावट को माना जा रहा है। सोमवार को ही अमेरिकी बाजारों में 6 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई।
अमेरिकी बाजारों ने एक साल में जितनी ऊंचाई प्राप्त की थी, वह एक दिन में गंवा दी। अमेरिकी टी.वी. चैनलों का हाल यह था कि उन्होंने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भाषण छोड़ बाजार में आई रिकार्ड गिरावट को दिखाना शुरू कर दिया था। तुरन्त व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने शेयर बाजार की समय-समय पर होने वाली गिरावट को सामान्य बताया आैर कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था असाधारण रूप से मजबूत बनी हुई है। भारतीय शेयर बाजार के खिलाड़ियों का कहना था कि निवेशकों ने रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा से पहले सतर्कता बरती है। मुद्रास्फीति को लेकर बढ़ती चिन्ता की वजह से रिजर्व बैंक रेपों दर बढ़ा सकता है। बुधवार को बाजार बढ़त के साथ खुला। ग्लोबल बाजारों से संकेत लेते हुए शेयर बाजार तेजी में खुले। शेयर बाजार में तेजी के पीछे बैंकिंग, ऑटो और मेटल शेयरों का प्रमुख हाथ रहा लेकिन बाजार बन्द होने तक सेंसेक्स फिर लुढ़क गया। यद्यपि वैश्विक बाजार डाऊ जोंस, नैस्डेक और एशियाई बाजारों में तेजी रही। भारत के बाजार की अपनी परिस्थितियां हैं।
दरअसल बाजार बढ़ी बांड यील्ड से डर गया। बांड यील्ड यानी बांड पर मिलने वाला रिटर्न होता है। अमेरिका में बांड यील्ड 4 साल के उच्चतम स्तर पहुंच गई है। जर्मन बांड में भी उछाल दिखा है। भारत में भी 10 वर्ष के बांड की यील्ड बढ़ी है। ब्याज दरें बढ़ने से शेयर महंगे और बांड आकर्षक लगते हैं। ब्याज दरें बढ़ने से कंपनियों की लागत बढ़ती है। कंपनियों पर मार्जिन आैर मुनाफे का दबाव भी रहता है। जब भी धन की तरलता कम होती है ताे फिक्स्ड इनकम में निवेश बढ़ता है। बाजार के उतार-चढ़ाव पर सोशल मीडिया पर लोगों ने काफी मजे भी लिए। किसी ने लिखा कि चिन्ता की कोई बात नहीं, आज का दिन खत्म होने के बाद कई शेयर कारोबारी पकौड़े बेचने लगेंगे। किसी ने कुछ लिखा तो किसी ने कुछ। खैर, बाजार में करेक्शन का दौर शुरू हो चुका है। फिर भी निवेशकों को सतर्कता से काम लेना होगा। भारतीयों ने शेयर बाजार में उछाल और गिरावट के बहुत दौर देखे हैं। हर्षद मेहता कांड के बाद शेयर बाजार का क्या हाल हुआ था कि निवेशक कंगाल हो गए थे। भारतीय अर्थव्यवस्था अब भी कमजोर नहीं है। क्या शेयर बाजार के उछाल को अर्थव्यवस्था की तीव्र गति का पैमाना माना जाना चाहिए। इस पर विशेषज्ञ बहस करते रहते हैं। बाजार तो ग्लोबल खेल है जिसमें बड़े-बड़े खिलाड़ी भी नुक्सान उठाते हैं और फायदा भी कमाते हैं। चिन्ता छोटे निवेशकों की है जिनकी मेहनत की कमाई कुछ मिनटों में ही डूब जाती है।