पांच राज्यों में से एक मिजोरम में आज मतदान पूरा हो गया। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य की 210 सीटों पर भी आज मतदान हुआ। ये सभी बीस सीटें राज्य के बस्तर व दुर्ग जिले की आदिवासी बहुल सीटें मानी जाती हैं और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पड़ती हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ के इस इलाके में कुल मिलाकर मतदान सहज माहौल में ही सम्पन्न हुआ मगर बस्तर के सुकमा इलाके में नक्सली वारदात होने की खबरें भी मिलीं। इसके बावजूद मतदान का प्रतिशत यदि 70 से ऊपर रहता है तो इसे लोकतन्त्र की विजय ही कहा जायेगा। इसी प्रकार मिजोरम की सभी चालीस सीटों पर मतदान प्रतिशत 80 से ऊपर रहा है। पूर्वोत्तर राज्यों में मिजोरम विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस राज्य में एक गैर सरकारी सामाजिक संगठन अपनी चुनाव आचार संहिता लागू करता है जिसे चुनाव लड़ने वाले सभी दलों को मानना पड़ता है। इस राज्य में मतदाताओं की संख्या आठ लाख से भी कम है मगर चुनाव जिस सभ्य व शालीन तरीके से होते हैं वे पूरे देश के लिए एक नजीर कहे जा सकते हैं। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ का आदिवासी इलाका बहुत गरीब माना जाता है मगर यहां के मतदाता जिस तरह चुनावों में आगे बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लेते हैं वह भी भारत के शहरी इलाकों में रहने वाले सम्पन्न समझे जाने वाले नागरिकों के लिए एक सबक है क्योंकि भारत के महानगरों में चुनाव के समय यदि मतदान 50 प्रतिशत से ऊपर हो जाये तो इसे एक उपलब्धि समझ लिया जाता है।
इसके समानान्तर भारत की ग्रामीण आबादी जिस तरह बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लेती है उससे इस देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का वह विश्वास कायम रहता है जो उन्होंने भारत के प्रत्येक नागरिक को वोट का संवैधानिक अधिकार दिये जाने पर व्यक्त किया था और कहा था कि भारत में संसदीय लोकतन्त्र को सदैव इसके अनपढ़ व गरीब समझे जाने वाले नागरिक ही जीवन्त रखेंगे। गांधी ने तब कहा था कि भारत के नागरिक गरीब व अनपढ़ हो सकते हैं मगर वे मूर्ख नहीं हैं। आजादी के 75 वर्ष बाद भी गांधी के इस विश्वास को भारत की ग्रामीण व सुदूर क्षेत्र में रहने वाली जनता कायम रखे हुए हैं।
मिजोरम में पिछले चुनावों में भी 80 प्रतिशत से ऊपर ही मतदान हुआ था। इस बार भी पुराना आंकड़ा छूने की उम्मीद है जबकि पिछली बार छत्तीसगढ़ में 74 प्रतिशत से ऊपर मतदान रहा था। अभी मतदान का दूसरा चरण आगामी 17 नवम्बर को होना है जिसमें विधानसभा की शेष 70 सीटों पर मतदान होगा। इसी दिन मध्य प्रदेश की 230 सीटों पर भी मतदान सम्पन्न होगा। छत्तीसगढ़ में पहले चरण का मतदान महादेव एप के बारे में लग रहे कथित आरोपों के साये में हुआ है। देखना यह होगा कि चुनावों में इस प्रकार के ऐन वक्त पर खड़े किये विवादों को आम मतदाता किस दृष्टि से लेते हैं। पिछली बार इन बीस सीटों में से केवल एक सीट पर ही भाजपा जीत पाई थी जबकि शेष सभी 19 सीटें कांग्रेस पार्टी जीतने में सफल रही थी। देखने वाली बात यह होगी कि पांच साल सत्ता में रहने के बावजूद क्या कांग्रेस अपनी इस सफलता को दोहरा पाती है या नहीं। पिछली बार के चुनाव जब हुए थे तो भाजपा सत्ता में थी और उसका शासन पिछले 15 वर्षों से चल रहा था। मगर इस बार स्थिति उल्टी है।
पिछले पांच वर्षों से कांग्रेस पार्टी के नेता श्री भूपेश बघेल मुख्यमन्त्री हैं और उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान छत्तीसगढ़ के गरीब–गुरबे लोगों को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं भी चलाई हैं, विशेष रूप से आदिवासियों व किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए उन्होंने कई ऐसी स्कीमें चलाईं जिनका अध्ययन करने अन्तर्राष्ट्रीय संगठन भी इस राज्य में आये। इनमें गौधन रखने वाले किसानों से उनका गोबर खरीदने की योजना को बहुत विलक्षण माना जा रहा है जिससे कई प्रकार के उपयोगी ईंधन व अन्य उत्पाद बनाये जाते हैं जिनमें खाद भी शामिल है। दरअसल छत्तीसगढ़ को 'अमीर जमीन के गरीब लोग' की तरह भी देखा जाता है क्योंकि यहां की धरती अपार खनिज सम्पदा से पटी पड़ी है। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के दौर में इस राज्य की खनिज सम्पदा का जिस प्रकार से दोहन हुआ है उसमें स्थानीय जनता की हिस्सेदारी बहुत कम रहती आयी है। भूपेश बघेल ने इस हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए भी कई नीतियां बनाईं। साथ ही राज्य में नक्सलवाद की समस्या अब उतनी उग्र दिखाई नहीं पड़ती है जितनी वह कुछ वर्षों पूर्व हुआ करती थी। यही वजह है कि इस राज्य में चुनावी मुद्दे के रूप में खुद श्री बघेल उभरे और भाजपा ने अब महादेव एप का मामला उठाकर इस पर हमला किया है।
चुनावी लड़ाई में अक्सर होता है कि कभी नेता मुद्दा बनता है तो कभी नीतियां। मगर स्वस्थ लोकतन्त्र उसे ही कहते हैं जिसमें नीतियां मुद्दा बनती हैं क्योंकि नेता राजनैतिक दल ही तय करते हैं जबकि चुनाव इन दलों की नीतियों के बूते पर ही लड़े जाते हैं। मतदान प्रतिशत को देखकर चुनाव परिणामों का अन्दाजा लगाना मूर्खता ही होती है मगर चुनावों में जनता के 'मूड' को पढ़ना एक कला जरूर होती है। हाल के वर्षों में हुए अन्य दूसरे राज्यों के चुनावों को देखते हुए यह जरूर कहा जा सकता है कि जनता अब विधानसभा चुनावों में निर्णायक फैसला देती है और किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत से नवाजती है जैसा कि कर्नाटक, गुजरात व हिमाचल के चुनावों में हमने देखा था।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com