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जनसंख्या के मोर्चे पर अच्छी खबर

बढ़ती आबादी भारत के​ लिए हमेशा चिंता का विषय रही है। जिन देशों की आबादी बेतहाशा बढ़ती जाती है वहां कम आबादी वाले देशों की तुलना में इन देशों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, वैज्ञानिक सोच और आजीविका के संसाधन कम हो जाते हैं।

बढ़ती आबादी भारत के​ लिए हमेशा चिंता का विषय रही है। जिन देशों की आबादी बेतहाशा बढ़ती जाती है वहां कम आबादी वाले देशों की तुलना में इन देशों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, वैज्ञानिक सोच और आजीविका के संसाधन कम हो जाते हैं। बढ़ती आबादी के बोझ तले बुनियादी और आर्थिक ढांचा चरमराने लगता है। जनसंख्या अधिक का संबंध अशिक्षा गरीबी से है। जनसंख्या वृद्धि दर संबंधी आंकड़े पर नजर रखने वाली वेबसाइट वर्ल्डोमीटर के अनुसार 2021 में भारत की जनसंख्या 1.39 करोड़ हो चुकी है। वहीं संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या की रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी 1.21 अरब यानी 121 करोड़ है। कोरोना महामारी के चलते जनगणना का काम ठीक ढंग से शुरू ही नहीं हो पाया। सटीक जनसंख्या का पता तो जनगणना के बाद ही चलेगा। 141 करोड़ आबादी के साथ चीन दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत की जनसंख्या अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान आैर बंगलादेश जैसे देशों की कुल आबादी से भी अधिक है।
जनसंख्या के मुद्दे पर एक अच्छी खबर आई है। नेशनल हैल्थ फैमिली सर्वे-5 के अनुसार भारत की प्रजनन दर में गिरावट आई है और यह 2.2 से घटकर 2 रह गई है। यह आंकड़े बोलते हैं कि देश की जनसंख्या स्थिरता की ओर बढ़ रही है। कुल प्रजनन दर या कहें कि अपने जीवन काल में एक महिला द्वारा कुल बच्चों को जन्म देने वाली औसत संख्या नीचे आ गई है। प्रतिस्थापन दर यानि टीआरएफ उसे कहते हैं जिसमें एक पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी को रिप्लेस करती है। सर्वे के मुताबिक बिहार 3.0, उत्तर प्रदेश 2.4 और झारखंड 2.3 में कुल प्रजनन दर, प्रतिस्थापन दर से ज्यादा है। ताजा सर्वे के मुताबिक देश की ज्यादा आबादी वाले राज्यों मसलन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में टीएफआर में बड़ी ​िगरावट दर्ज की गई है। इसकी वजह से देश की कुल प्रजनन दर में गिरावट आई है और प्रतिस्थापन दर नीचे चली गई है।
बिहार को छोड़ दें तो अन्य सभी राज्यों में शहरी टीएफआर प्रतिस्थापन दर से नीचे है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में प्रजनन दर सिर्फ ​बिहार और झारखंड से ज्यादा है। वहीं मेघालय, मणिपुर ​और मिजोरम जैसे छोटे राज्यों के ग्रामीण इलाकों में कुल प्रजनन दर ज्यादा है। प्रजनन दर के मामले में सबसे अधिक जम्मू-कश्मीर ने चौंकाया है। जम्मू-कश्मीर में प्रजनन दर सबसे कम 1.4 है। वहां प्रजनन दर में सबसे ज्यादा गिरावट 0.6 दर्ज की गई है। नए सर्वे में पंजाब में कुल प्रजनन दर 1.6 ही है, लेकिन केरल और तमिलनाडु की कुल प्रजनन दर में बढ़ौतरी दर्ज की गई है। सबसे कम प्रजनन दर सिक्किम की 1.1 है। सिक्किम की प्रजनन दर दुनिया में सबसे कम दक्षिण कोरिया की प्रजनन दर के बराबर आ गई है। सर्वे से स्पष्ट है कि सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में और तेजी आ रही है। इस सर्वे से मिले डाटा से सरकार को यूनिवर्सल हैल्थ कवरेज को लेकर मदद ​िमलेगी। अब राष्ट्रीय स्तर पर गर्भ निरोधक प्रकार दर 54 फीसदी से बढ़कर 67 फीसदी हो गई है।
भारत में 1952 में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर परिवार नियोजन कार्यक्रम की शुरूआत की गई थी। हालांकि शुरूआत में बड़े पैमाने पर गलत नीतियों की वजह से कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था। तब संसाधन भी सीमित थे। केवल ‘हम दो हमारे दाे’ का स्लोगन प्रचारित किए जाने से लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सकता था। राजनीतिक दलों ने भी बढ़ती संख्या को कभी चुनावी मुद्दा नहीं बनाया। आज कहीं भी चले जाएं रेलवे स्टेशन हो या मैट्रो स्टेशन, हवाई अड्डा, बस स्टॉप, अस्पताल, शापिंग माल, बाजार हों या मंदिर सभी जगहों पर भीड़ देखी जा सकती है। भारत में कई लोग परिवार नियोजन के उपायों का पालन नहीं करते थे, वे परिवार नियोजन के उपायों को ईश्वर के विरुद्ध होना समझते थे। कई लोगों का दृष्टिकोण यही रहा कि बच्चे ईश्वर की देन हैं और उनकी अधिक संख्या बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे। यह धारणा अब हिन्दुओं में कम हो चुकी है लेकिन ज्यादातर मुस्लिम समाज अब भी इस धारणा को सही मानता है। अशिक्षा और अज्ञानता के कारण से जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होती गई। जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण जीवन प्रत्याशा का बढ़ना है। मृत्यु दर में कमी होने से जीवन प्रत्याशा में बढ़ौतरी होती है।  धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधि और कुछ जनप्रतिनिधि नागरिक नीतियों के खिलाफ जनसंख्या वृद्धि पर साम्प्रदायिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। जनसंख्या बढ़ौतरी होने से भुखमरी, कुपोषण और बेरोजगारी जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
भारत में लम्बे समय से जनसंख्या नियंत्रण का काम चल रहा है। भारत पहला ऐसा देश था जिसने राष्ट्रीय स्तर पर परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया था। अब हमें जो उत्साहजनक परिणाम देखने को मिल रहे हैं, वे केन्द्र और राज्य सरकारों के निरंतर और ठोस प्रयासों का नतीजा है। इस समय जरूरत है कि स्कूलों, कालेजों के पाठ्य विषयों की तरह बाकायदा परिवार कल्याण की शिक्षा प्रदान जनसंख्या वृद्धि में अशिक्षा और अंधविश्वास की बड़ी भूमिका है। कुछ धार्मिक समुदायों में नसबंदी को धर्म के विरुद्ध माना जाता है लेकिन सुशिक्षित लोग चाहे वे किसी भी धर्म के हों, वैज्ञानिक चेतना से लैस होते हैं और जनसंख्या नियंत्रण को जरूरी समझते हैं। जरूरत है वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करने की। लोगों को भी समझना चाहिए कि उन्हें भावी पीढ़ी को तिल​तिल करके जीवन जीने को मजबूर करना है या उन्हें सुखद आरामदेह जीवन देना है। फिलहाल जनसंख्या का स्थिर होना बहुत बड़ी बात है। काश! हम इसे बरकरार रख पाएं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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