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अर्थव्यवस्था के संकेत अच्छेे

अर्थव्यवस्था के मोर्च पर लगातार अच्छी खबरें आ रही हैं। देश में औद्योगिक उत्पादन में जुलाई महीने में 11.5 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष जुलाई में यह 10.5 प्रतिशत गिरा था।

अर्थव्यवस्था के मोर्च पर लगातार अच्छी खबरें आ रही हैं। देश में औद्योगिक उत्पादन में जुलाई महीने में 11.5 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष जुलाई में यह 10.5 प्रतिशत गिरा था। एनएसओ के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के अनुसार सकल औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन इस वर्ष जुलाई में 10.5 फीसदी बढ़ा। खनन उत्पादन में 19.5 फीसदी और बिजली उत्पादन में 11.1 फीसदी बढ़ौतरी हुई। अप्रैल-जुलाई के चार महीनों के दौरान आईआईपी में कुल मिलाकर 34.1 फीसदी बढ़ौतरी हुई है। 
भारतीय रिजर्व बैंक ने भी चालू वित्त वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान हासिल होने की उम्मीद जताई है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि त्वरित संकेतक आर्थिक गतिविधियों में सुधार दिखा रहे हैं। वैश्विक बाजारों में तरलता की स्थिति काफी सुगम है। इसकी वजह से घरेलू बाजारों में तेजी आ रही है। बैंकों का एनपीए भी ऐसे स्तर पर आ गया है कि इनका प्रबंधन किया जा सकता है। विदेशी मुद्रा भंडार पिछले तीन सितम्बर को समाप्त सप्ताह के दौरान 8.895 अरब डालर बढ़कर 642.53 अरब डालर के ​रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया।
बीते वर्ष राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में भी 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करने वाला एक मात्र सैक्टर कृषि, वानिकी एवं मत्स्यिकी ने गति बरकरार रखते हुए 4.5 प्रतिशत की बढ़त हासिल की है। कृषि क्षेत्र की जीडीपी के बढ़ने के कारण किसानों की मेहनत, वैज्ञानिकों की कुशलता और केन्द्र सरकार की नीतियां हैं। 2020-21 में खाद्यन्न उत्पादन 30.86 करोड़ टन की रिकार्ड ऊंचाई पर दिखाई दे रहा है। देश में दलहन और तिलहन उत्पादन के लिए छोटे किसानों ने उपज को बढ़ाया है। 
सरकार ने कुछ दिन पहले ही रबी की 6 फसलों के एमएसपी को बढ़ाया है। आंकड़े तो संतोषजनक हैं लेकिन अर्थव्यवस्था को महामारी पूर्व दशा में लौटाने के लिए अभी लम्बी राह तय करनी होगी। दरअसल भारत के संदर्भ में खपत आर्थिकी का इंजन है, जो व्यक्तिगत मांग पर टिका है। कुल जीडीपी में मांग का हिस्सा 56 प्रतिशत है, जिसे तकनीकी तौर पर ​निजी अंतिम उपभोग व्यय कहा जाता है। दूसरी सबसे बड़ी भूमि निवेश की है, जो निजी क्षेत्र के व्यवसाय द्वारा उत्पन्न मांग है। यानी कुल निश्चित पंूजी निर्माण, जिसका जीडीपी में 32 प्रतिशत का हिस्सा है। इसके अलावा अर्थव्यवस्था को गति देने के ​लिए दो अन्य इंजन हैं। सरकार द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की पैदा की गई मांग और शुद्ध निर्यात। आंकड़ों से स्पष्ट है कि अभी निजी मांग की स्थिति महामारी पूर्व जैसी नहीं है। महामारी के चलते लाखों लोग बेरोजगार हुए, ऊपर से महंगाई का बढ़ता बोझ आम आदमी को परेशान कर रहा है। इसलिए उनकी खरीद क्षमता बहुत कम हो गई है। मध्यम वर्ग अब उतनी ही खरीददारी करता है जितनी जरूरत है। 
सरकार ने निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करके अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने कम्पनियों और नए उद्यमियों को टैक्स ब्रेक और सुविधाएं दी हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि निजी मांग कैसे बढ़े। जीडीपी में खपत की भागीदारी कम होना स्पष्ट करता है कि कोरोना की दूसरी लहर और लॉकडाउन ने लोगों को काफी प्रभावित किया है। हालांकि रोजगार पैदा करने वाले प्रमुख क्षेत्रों कंस्ट्रक्शन और ​विनिर्माण में बढ़त हुई है लेकिन व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण संबंधित सेवाओं में उम्मीद के अनुरूप वृद्धि नहीं हुई है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बहुत से तत्व काम करते हैं। जरूरत इस बात की है कि सभी सैक्टरों में कुशल और अकुशल कर्मचारियों के लिए रोजगार के मौके बढ़े। लगातार बढ़ती महंगाई को थामना भी बड़ी चुनौती है। इसके अलावा कोरोना की तीसरी लहर को रोकने के प्रयासों के साथ टीकाकरण अभियान को तेज करना भी जरूरी है। इन सब पहलों से अर्थव्यवस्था के प्रति भरोसा बहाल करने तथा विभिन्न चुनौतियों से निपटने के लिए बड़ा आधार उपलब्ध होगा। इस समय बहुत सावधानीपूर्वक फैसले लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है। निवेशकों का भरोसा कायम है। आंकड़ों को लेकर जश्न मनाने की जरूरत नहीं, क्योंकि पेशेवर क्षेेत्रों में हम अभी पीछे हैं। अभी और आर्थिक सुधारों की जरूरत है।

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