श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव पर भारत और चीन की नज़र लगी हुई थी। गोटाबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर ली है। उन्होंने अपने प्रतिद्वन्द्वी सजित प्रेमदासा को हराया है। इसी वर्ष अप्रैल में हुए बड़े चरमपंथी हमले के बाद इन चुनावों में गोटाबाया राजपक्षे की जीत को पूर्व राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्षे की ही जीत माना जा रहा है। गोटाबाया राजपक्षे महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं। गोटाबाया उनके राष्ट्रपति काल में रक्षा मंत्री थे और लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) के खिलाफ मोर्चा सम्भाले हुए थे।
लिट्टे दुनिया का खतरनाक आतंकवादी संगठन था। गोटाबाया राजपक्षे को लिट्टे को नेस्तनाबूद करने के लिए फ्री हैंड दिया गया था। लिट्टे के खिलाफ लड़ाई में श्रीलंका में मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ। तमिलों को खेतों में ले जाकर उनकी सामूहिक हत्याएं की गईं। श्रीलंका में तमिल समुदाय अपना अलग देश (ईलम) मांगता था। गोटाबाया की जीत से तमिल समुदाय खुश नहीं है। यही स्थिति मुस्लिम समुदाय की है।
मुस्लिम समुदाय भी गोटाबाया को अपने खिलाफ समझते हैं। ईस्टर के दिन चर्च में हुए बम धमाकों के बाद सिंहली समुदाय में खौफ पैदा हो गया था। सिंहली समुदाय महसूस करने लगा था कि देश को एक ऐसे मजबूत नेता की जरूरत है जो मुस्लिम आतंकवाद को खत्म कर सके। लिट्टे को खत्म करने के बाद गोटाबाया की छवि एक मजबूत नेता के रूप में उभर चुकी थी तभी सिंहली समुदाय ने एकजुट होकर उन्हें वोट दिया। सिंहली समुदाय के वोट पहले बंट जाते थे लेकिन इस बार सिंहली मतों का ध्रुवीकरण हो चुका था।
दूसरी ओर उत्तर और पूर्वी इलाकों में रहने वाले अल्पसंख्यकों ने सजित प्रेमदासा को वोट दिए हैं। गोटाबाया की जीत से तमिल और मुस्लिम समुदाय अपनी सुरक्षा को लेकर चिन्तित हैं। तमिलों को शिकायत रही है कि उन्हें कभी भी सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिली है। लिट्टे का इतिहास भारत से जुड़ा रहा है और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या भी लिट्टे ने ही की थी। भारत केवल यही चाहता है कि श्रीलंका में तमिलों को वाजिब अधिकार मिलें।
अब देखना होगा कि नए राष्ट्रपति तमिलों को अधिकार देने की दिशा में क्या कुछ करते हैं। तमिल नेताओं की राजपक्षे खेमे से इस सम्बन्ध में बातचीत शुरू हो चुकी है। गोटाबाया राजपक्षे काे अल्पसंख्यकों के बीच फैले खौफ को खत्म करना होगा। गोटाबाया राजपक्षे अपने घोषणा पत्र में स्पष्ट का चुके हैं कि वह भारत और चीन समेत सभी पड़ोसियों के साथ आधे रिश्ते रखना चाहते हैं। उन्होंने भारत को अपना भाई और चीन को दोस्त बताया है। श्रीलंका में चीन का बढ़ता दबदबा भारत के लिए हमेशा चिन्ता का विषय रहा है।
चीन पिछले एक दशक से श्रीलंका की वित्तीय मदद कर रहा है। महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में श्रीलंका पूरी तरह चीन की गोद में बैठ गया था। चीन का कर्ज न चुकाने पर उसने हबंतरोटा बंदरगाह पर भी अपना कब्जा जमा लिया था। इसी वजह से श्रीलंका में राजनीतिक रूप से अस्थिरता भी आई। तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री रानिस विक्रम सिंघे को हटाया था। चीन के कर्ज में डूबे श्रीलंका को स्वाभिमान बचाना भी मुश्किल हो गया था।
मैत्रीपाला सिरिसेना के कार्यकाल में भारत और चीन से रिश्तों में संतुलन कायम करने के प्रयास किए गए थे। अब देखना यह है कि गोटाबाया राजपक्षे भारत और चीन से कैसे रिश्ते रखते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि श्रीलंका और भारत के रिश्ते सामान्य रहेंगे। राजनीतिक स्थिरता के लिए भी राजपक्षे को सभी को साथ लेकर चलना होगा। गोटाबाया को लोकतंत्र के स्थापित नियमों का सम्मान करना होगा।