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जी-20 देशों की सदारत

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी विश्व के औद्योगीकृत देशों के संगठन जी-20 सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंडोनेशिया के शहर बाली पहुंच चुके हैं। यह सम्मेलन कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी विश्व के औद्योगीकृत देशों के संगठन जी-20 सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंडोनेशिया के शहर बाली पहुंच चुके हैं। यह सम्मेलन कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है। एक तो रूस यूक्रेन युद्ध के साये में इसकी बैठक हो रही है जिसकी वजह से पश्चिमी यूरोपीय देशों व रूस के बीच तनातनी का माहौल बना हुआ है। दूसरे ताइवान को लेकर चीन व अमेरिका के बीच रंजिश चल रही है। चीन व अमेरिका के बीच रंजिश का परोक्ष असर भारत पर भी पड़ रहा है क्योंकि चीन के भारत के निकटतम पड़ोसी होने के साथ ही अमेरिका के साथ भी सम्बन्धों में बहुत गरमाहट है। मगर इस सबसे भी ऊपर रूस का मसला है जिसे अमेरिका पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ मिलकर अलग-थलग कर देना चाहता है। इस उद्देश्य के लिए अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के सामरिक संगठन नाटो ने रूस के खिलाफ यूक्रेन की मदद का माहौल बनाया हुआ है जबकि अमेरिका उसे खुल कर सैनिक मदद दे रहा है। इससे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कहीं न कहीं बीच-बीच में उबाल आता रहता है और परमाणु युद्ध के खतरे तक की बात होने लगती है।
वैश्विक परिस्थितियों में जी-20 संगठन की अध्यक्षता अगले वर्ष के लिए बाली सम्मेलन के समापन समारोह में ही सौंप दी जायेगी। अतः भारत की जिम्मेदारी का अन्दाजा लगाया जा सकता है कि किस प्रकार वह अपने नेतृत्व में वैश्विक तनाव को कम करके अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के समीकरणों को सुगम बना सकता है। इस बारे में श्री मोदी ने पहले ही कह दिया है कि भारत ‘वसुधैव कुटुम्कम्’ की अवधारणा में विश्वास रखने वाला देश है और वह ‘एक विश्व एक परिवार’ में यकीन रखता है। इस सन्दर्भ में हमें याद रखना चाहिए कि भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध की गर्मी शान्त करने के लिए भी अभी तक अपनी तरफ से जो प्रयास किये हैं उनका परिणाम बहुत बेहतर नहीं तो बुरा भी नहीं निकला है। श्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति श्री पुतिन व यूक्रेन के राष्ट्रपति श्री जेलेंस्की, दोनों से ही यथा समय बातचीत की और साफ किया कि वर्तमान दौर युद्ध का नहीं बल्कि समन्वय और बातचीत का है।
भारत की अनदेखी करने की मौजूदा स्थितियों में किसी देश या विश्व शक्ति की हिम्मत नहीं है क्योंकि भारत की रणनीतिक स्थिति बहुत ही संवेदनशील है और वह रूस-अमेरिका व चीन-अमेरिका से लेकर विश्व व्यापार के सबसे बड़े जल मार्ग हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र के मुहाने पर बैठा हुआ है जिसे चीन अपने प्रभाव क्षेत्र में लेने की कोशिश करता रहता है। इसके साथ ही कोरोना काल में जिस तरह विश्व के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था ढेर हुई है और पूरी दुनिया मन्दी के दौर में घिरती नजर आ रही है उसी दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था एक आशा की किरण के रूप में चमक रही है। हालांकि भारत में भी कोरोना काल का दुष्प्रभाव रहा है और इसकी अर्थव्यवस्था पर भी इसका विपरीत असर पड़ने के साथ महंगाई व बेरोजगारी बढ़ी है परन्तु इसकी दर अन्य देशों की तुलना में कम रही है। जी-20 देशों के सन्दर्भ में यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इस समूह के सदस्य देशों का सामूहिक सकल घरेलू दुनिया के कुल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत है और विश्व व्यापार में इनका हिस्सा 75 प्रतिशत है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आर्थिक क्षेत्र में इस समूह की कितनी बड़ी भूमिका है क्योंकि दुनिया की कुल दो तिहाई आबादी भी इन्हीं देशों में रहती है।
इस सम्मेलन में दुनिया के समक्ष ऊर्जा समस्या के साथ ही खाद्य सुरक्षा पर भी विशुद्ध चर्चा होगी। यूरोपीय देश इस समय ऊर्जा के संकट से जूझ रहे हैं क्योंकि इनमें से अधिसंख्य रूस से ही अपनी आवश्यकताओं की आपूर्ति करते हैं विशेष रूप से गैस की। दूसरी तरफ जिस तरह रूस पर इन्हीं देशों ने अमेरिका की अगुवाई में आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये हैं उससे ऊर्जा संकट खड़ा होता दिखाई पड़ रहा है। भारत इस विवाद को सुलझाने में मदद इसलिए कर सकता है क्योंकि उसके रूस, चीन से लेकर अमेरिका व यूक्रेन सभी के साथ मधुर सम्बन्ध हैं और सभी के साथ उसके वाणिज्यिक सम्बन्ध भी हैं। मगर रूस- यूक्रेन युद्ध के चलते पूरे विश्व में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई के मार्ग में बाधा भी आ रही है। इसका सुनिश्चित हल तभी निकल सकता है जबकि युद्ध विराम की सूरत निकले। इसके साथ ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी जी-20 देशों को अधिक सहयोग की जरूरत है क्योंकि कोरोना संकट ने पूरे विश्व के समक्ष ऐसी मानवीय समस्या खड़ी कर दी थी जिसका असर हर देश की व्यवस्था पर पड़े बिना नहीं रहा। लेकिन इस सम्मेलन में जहां पहली बार आमने-सामने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बात हुई वहीं ब्रिटेन के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बातचीत होने की संभावना है। भारत के सन्दर्भ में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की अलग महत्ता है। 
जी-20 देशों के सामने बहुदेशीय व द्विपक्षीय स्तर पर भी आपसी व्यापार बढ़ाने का दबाव वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों की वजह से रहने वाला है। जी-7 देशों का दबाव है कि रूस जो अपना कच्चा तेल निर्यात करता है उसके दाम बांधे जायें जबकि रूस इसके लिए कभी सहमत नहीं हो सकता क्योंकि वह विश्व के विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय आधार पर सम्बन्ध मजबूत करके नाटो व अमेरीकी-यूरोपीय गठजोड़ की उसे अलग-थलग करने की चाल को उल्टा कर देना चाहता है। भारत रूस से तेल आयात करने वाला प्रमुख देश है और अपनी जरूरत का 20 प्रतिशत वह रूस से ही आयात कर रहा है। अतः हालात बहुत उलझे हुए हैं और अगले साल में इन्हीं भंवरों के बीच भारत को जी-20 की नैया खेनी है। 

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