लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

वोडाफोन आइडिया को सरकार की संजीवनी

कर्ज संकट का सामना कर रही वोडाफोन-आइडिया ने सरकार को चुकाए जाने वाले 16 हजार करोड़ रुपए के ब्याज बकाया को इक्विटी में बदलने का फैसला किया है, जो कम्पनी में 35.8 फीसदी हिस्सेदारी के बराबर होगा।

कर्ज संकट का सामना कर रही वोडाफोन-आइडिया ने सरकार को चुकाए जाने वाले 16 हजार करोड़ रुपए के ब्याज बकाया को इक्विटी में बदलने का फैसला किया है, जो कम्पनी में 35.8 फीसदी हिस्सेदारी के बराबर होगा। अगर यह योजना पूरी हो जाती है तो यह कम्पनी एक तरह से सरकारी कम्पनी हो जाएगी क्योंकि सरकार कम्पनी के सबसे बड़े शेयर धारकों में एक बन जाएगी। वोडाफोन-आइडिया में प्रोमोर्ट्स (वोडाफोन समूह) की हिस्सेदारी लगभग 28.5 फीसदी और आदित्य बिडला समूह की ​​हिस्सेदारी 17.8 फीसदी की ही है। कम्पनी पर इस समय 1.95 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। इसमें 1,08610 करोड़ का बकाया, स्पैक्ट्रम पेमेंट 63,400 करोड़ और एजीआर देनदारी के अलावा बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया गया 22,770 करोड़ का कर्ज शामिल है। पिछले वर्ष 4 अगस्त को उद्योगपति कुमार मंगलम बिडला ने वोडाफोन-आइडिया के नॉन ​एक्जिक्यूटिव डायरैक्टर और चेयरमैन के तौर पर इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले कम्पनी ने अपनी​ हिस्सेदारी किसी सरकार पर प्राइवेट सैक्टर की कम्पनी को देने की पेशपश की थी। इस संबंध में बिडला ने ​कैबिनेट सचिव को पत्र भी लिखा था। कुमार मंगलम बिडला का इस्तीफा कम्पनी के लिए एक झटका था। इसका सीधा असर यह हुआ था कि  कम्पनी के शेयरों में 25 फीसदी से ज्यादा गिरावट आ गई थी लेकिन इस गिरावट के एक दिन बाद ही कम्पनी में शेयरों में जबर्दस्त उछाल आया जो चौंकाने वाला था। इस उछाल का कारण यह भी रहा था कि केन्द्र सरकार द्वारा इन्कम टैक्स कानून में संशोधन कर रेट्रोस्पैक्टिव  टैक्सेशन को समाप्त करने का फैसला लिया गया था। इस कानून का मकसद 2012 के कानून के तहत भारतीय एसेट्स से जुड़ी विदेशी कम्पनियों पर टैक्स लगाना था। इसमें पिछली  तारीख से टैक्स भी लगाया जा रहा था, इसके विरोध  में केयर्न और वोडाफोन ग्रुप सहित कुछ कम्पनियों में विदेश  में आब्रिटेशन के मामले भी दायर ​किए थे। इनमें से कुछ मामलों में सरकार को हार का सामना करना पड़ा था।
मामले की गम्भीरता को देखते हुए सरकार ने टैक्सेशन लॉज (संशोधन) विधेयक को रद्द करने का फैसला किया। संशोधित बिल में चुकाई गई टैक्स की रकम को बिना  इंटरेस्ट के लौटाने का प्रावधान किया गया। इससे केयर्न और वोडाफोन-आइडिया को काफी राहत मिली।
सरकार के कम्पनी में शेयर धारक बनने की खबर से निवेशकों में हाहाकार मच गया। कम्पनी के शेयरों की कीमत 20.54 फीसदी घट गई। निवेेशकों के सहमने का कारण यह रहा कि  सरकार को दस रुपए प्रति शेयर के भाव पर इक्विटी शेयर जारी किए जाएंगे। शेयरों का मूल्य निर्धारण 14 अगस्त, 2021 के आधार पर किया गया। जो निवेशकों को घाटे का सौदा महसूस हो रहा है। इसके अलावा सरकार की ​​हिस्सेदारी का मतलब यह भी है कि वोडाफोन-आइडिया में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ेगा। टेलिकॉम कम्पनियों में सरकार का दखल कम्पनियों के​ वित्तीय सेहत के​ लिए अच्छा नहीं रहा। बीएसएनएल और एमटीएनएल का हश्र लोग देख चुके हैं।
अब सवाल उठाए जा रहे हैं कि सरकार धन जुटाने के लिए  विनिवेश का रास्ता अपना चुकी है। सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियां बेची जा रही हैं। घाटे और कर्ज से दबी एयर इंडिया तक का विनिवेश किया जा चुका है तो फिर सरकार प्राइवेट कम्पनी की मदद क्यों कर रही है। दूसरी तरफ तर्क यह है कि वोडाफोन-आइडिया अगर बंद होती है तो 27 करोड़ ग्राहकों का क्या होगा। निवेशकों का क्या होगा। कई बार सरकारों को अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अप्रत्याशित फैसले लेने ही पड़ते हैं। अब जबकि कोरोना महामारी के दौरान काफी हद तक प्रभावित हो चुकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती सरकार के सामने है। ऐसे में किसी बड़ी कम्पनी का बंद होना या भारत छोड़ कर जाना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होता। ऐसी स्थिति में विदेशी निवेशकों को गलत संदेश जाता है। दुनिया भर में बड़े देश अपने यहां संचालित हो रही विदेशी कम्पनियों को बचाने के लिए  राहतें प्रदान कर रही हैं। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अमेरिका सरकार ने भी कम्पनियों को कम अवधि के लिए राहतें प्रदान की थीं। सरकारों को वक्त के हिसाब से लचकदार होना ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं ​किया जाएगा तो भारत में ​विदेश निवेशक कहां से आएंगे। सरकार वोडाफोन-आइडिया की ऑपरेशनल गतिविधियों से दूर रहेगी। वोडाफोन-आइडिया में सरकार की ​हिस्सेदारी कम्पनी और उसके उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करेगी। कर्ज को ​इक्विटी में बदलने से वोडाफोन-आइडिया का डेट-2 ​इक्विटी रेशो पहले से बेहतर होगा और कम्पनी खुद  पुनर्गठित कर, प्रबंधन में सुधार का अपना विस्तार  कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो कम्पनी भविष्य में लाभ भी कमा सकती है। सरकार की अन्य कम्पनियों एमटीएनएल और बीएसएनएल के पास एक मजबूत वायर लाइन नेटवर्क है। इसके सहयोग से कम्पनी अपना विस्तार  कर सकती है। भविष्य में कम्पनी को ​​विलय के विकल्प के तौर पर देखे जाने की सम्भावनाएं पैदा हो सकती हैं। वर्तमान स्थिति में कम्पनी के शेयर सरकार के पास आना ही एकमात्र सही रास्ता है। अगर वोडाफोन-आईडिया जीवित नहीं रहती तो भारत में केवल दो दूरसंचार कम्पनियों का एकाधिकार हो जाता, जिसे  बाजार के ​लिए और उपभोक्ताओं के लिए बेहतर नहीं माना जा सकता।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

6 + 4 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।