ओलंपियन विनेश फोगाट को वह रजत पदक नहीं मिला जिसकी वह पेरिस ओलंपिक में अयोग्य घोषित होने के बाद मांग कर रही थी। इसकी शुरुआत फोगाट द्वारा यूई सुसाकी को हारने से हुई। इसके बाद उत्साहित फोगाट ने चैंपियन ओक्साना लिवाच को हराकर फाइनल में प्रवेश किया। उस समय फोगाट ओलंपिक फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान थीं।
नियमों के मुताबिक फोगाट को फाइनल के लिए अपना वजन 50 किलोग्राम तक रखना था। फिनाले से पहले मापे जाने पर उनका वजन दो किलोग्राम अधिक था। इसी दो किलो को कम करने के लिए उन्होंने हर मुमकिन कोशिश करी जैसे कठोर व्यायाम करना, पसीना बहाना और यहां तक कि खून निकालने के लिए सौना सूट पहनना, अपने कपड़े छोटे करना और अपने बाल कटवाने सहित अन्य तरीके भी अपनाए लेकिन जब वह वजन मापने वाली मशीन पर वापस गई तो मामूली अंतर से हार गई। सचमुच, उन्होंने लगभग पूरा दो किलो वजन कम कर लिया था लेकिन दुर्भाग्य से केवल 100 ग्राम कम रह गया।
फोगाट का वजन जब हर दिन की तरह सुबह मापा गया तो निर्धारित सीमा से 100 ग्राम अधिक था। इसके कारण उन्हें खेलों से अयोग्य घोषित कर दिया गया। इससे भी बुरी बात यह है कि इसने उन्हें 16 प्रतिस्पर्धियों में अंतिम स्थान पर रखा। इससे वह पदक के लिए भी अयोग्य हो गईं। यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग नियम पुस्तिका के अनुच्छेद 11 के अनुसार जिस एथलीट का वजन अनुमेय सीमा से कम नहीं होता है उसे टूर्नामेंट से बाहर कर दिया जाता है।
अगर फोगाट फाइनल में पहुंचकर जीत जाती तो उन्हें स्वर्ण पदक मिल जाता लेकिन फाइनल हारने की स्थिति में वे रजत पदक की पात्र थीं। सारी ख़ुशी ग़म में बदल गई, खासकर उस शख्स की जिससे सभी भारतीय स्वर्ण पदक की आस लगाए बैठे थे। "मेरे पास जारी रखने के लिए अब ताकत नहीं बची है," उन्होंने खेल से संन्यास की घोषणा करते हुए कहा था। बाद में उन्होंने क्यूबा के पहलवान वाई गुज़मैन लोपेज़ के साथ संयुक्त रजत पदक के लिए खेल पंचाट में अपील की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि वह खेलों की समाप्ति से पहले अपना फैसला सुना देंगे। इससे आशा जगी, भारत ने विनेश फोगाट के लिए रजत पदक जीतने की प्रार्थना की।
समय सीमा बीत गई, खेल ख़त्म हो चुके थे और निर्णय एक बार नहीं बल्कि कई बार, बाद की तारीख़ के लिए टाला गया। इस पर प्रतिक्रियाएं काफी मिलीजुली थीं। कुछ को इसमें आशा की किरण दिखी, अन्य लोगों ने कहा कि दीवार पर लिखावट स्पष्ट थी और सीएएस द्वारा की गई देरी कुछ और नहीं बल्कि समय को बीत जाने देने की युक्ति थी ताकि हालात शांत हो जाएं। इस मामले में तथाकथित "निराशावादी" लोग सही साबित हुए। संयुक्त पदक के लिए फोगाट की याचिका खारिज कर दी गई।
इस फैसले ने भारतीयों को बेहद निराश किया लेकिन तर्कसंगत विश्लेषण करें तो यह साबित होता है कि इस मामले का नतीजा यही होना था। इसलिए भारतीय गोलकीपर पी.आर. श्रीजेश की बात अब काफी स्पष्ट रूप से समझ आ रही है। पी.आर. श्रीजेश ने फोगाट के प्रति सहानुभूति जताते हुए कहा कि उनका मामला भारतीय एथलीटों के लिए नियमों के प्रति सख्त होने का एक सबक होना चाहिए।
अतीत में एथलीटों पर प्रतिबंध लगाए जाने का उदाहरण देते हुए श्रीजेश ने कहा कि खेल को सुंदर और नियंत्रित बनाने के लिए नियम बनाए गए हैं और खिलाड़ियों को उनका पालन करना चाहिए। ''आपके पास ओलंपिक नियम हैं और भारतीय एथलीट जानते हैं कि वहां क्या हो रहा है और उन्हें इसके लिए तैयार रहना चाहिए।'' कोई भी इसे बेहतर तरीके से नहीं रख सकता था क्योंकि नियम तो नियम हैं और इसलिए बने हैं क्योंकि उनका पालन करना आवश्यक है। इसलिए फोगाट को रजत पदक नहीं मिलने पर यह शोर-शराबा व्यर्थ ही है और फोगाट का मामला ओलंपिक इतिहास में एकमात्र मामला नहीं है।
विडंबना तो यह है कि पेरिस में उन्हें सांत्वना देते हुए देखे गए शख्स कोई और नहीं बल्कि स्वर्ण पदक विजेता री हिगुची थे, जिन्हें पुरुषों की 57 किलोग्राम कुश्ती में 50 ग्राम अधिक वजन होने के कारण टोक्यो ओलंपिक से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
इसलिए इस बात पर आंसू बहाने वाले सभी लोगों को एक बार समझदारी से सोचना चाहिए, क्या हम फोगाट के मुद्दे को ज़्यादा नहीं बढ़ा रहे हैं? क्या हम उन्हें खुश करने की अत्यंत कोशिश कर रहे हैं? क्या हम अदालत जाकर उन्हें रजत पदक दिलाने की मांग करके सीमाएं लांघ रहे हैं? और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या भावनाओं और निर्णय के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं होनी चाहिए? समझदार लोगों के लिए उपरोक्त सभी का उत्तर सकारात्मक होना चाहिए, सीधे शब्दों में कहें तो बड़ी हां।
हमारी सहानुभूति फोगाट के साथ है लेकिन सहानुभूति और न्याय में फर्क है। इसलिए जो लोग कहते हैं कि उन्हें संयुक्त रूप से रजत पदक से सम्मानित किया जाना चाहिए था, वे बेफ़िज़ूली कर रहे हैं। उन लोगों की तरह जिन्होंने बार-बार फोगाट के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया है और इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी उंगली उठाई गई है। जब फोगाट अपना पदक हार गयीं तो मोदी सरकार के आलोचकों ने साजिश का आरोप लगाया। यह सर्वविदित है कि फोगाट कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण सिंह को हटाने के आंदोलन में सबसे आगे थीं। खिलाड़ी उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा रहे थे। फाइनल में जगह बनाने में फोगाट की सराहनीय उपलब्धि के तुरंत बाद कांग्रेस पार्टी ने अपना दाव खेला जिसमें उनके एक नेता ने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री मोदी उन्हें फोन करेंगे और बधाई देंगे।
हम आपको बता दें की मोदी ने न केवल फोगाट को बधाई देने के लिए फ़ोन किया बल्कि उन्हें देश की 'बहादुर बेटी' कहकर भी बुलाया। साजिश का आरोप लगाने वालों ने कहा कि अगर वह जीतीं तो उन्हें सम्मानित किया जाएगा जो उस फेडरेशन के लिए शर्मनाक हो सकता है जिसका विरोध फोगाट ने किया था। इससे ज्यादा हास्यास्पद कुछ नहीं हो सकता। यह सोचना कि सरकार हिसाब-किताब बराबर करने के लिए देश के पदक का सौदा करेगी, एकदम ही बेतुकी बात है। हालांकि, कोई कितना भी मोदी सरकार का विरोध करे, कोई भी खेल और खिलाड़ियों को मोदी से मिले प्रोत्साहन को कम नहीं कर सकता। निस्संदेह, टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने के बाद शटलर पीवी सिंधु को उनकी पसंदीदा आइसक्रीम की पेशकश करने वाले प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत स्पर्श है। टोक्यो में कांस्य पदक हारने के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम को सांत्वना देना इत्यादि।
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उनकी सरकार ने खिलाड़ियों की मदद के लिए जो योजनाएं शुरू की हैं वे उम्दा हैं। उदाहरण के लिए खेलो इंडिया पहल एक बड़ा कदम है, गांवों और छोटे शहरों से खेल प्रतिभाओं को चुनने का कदम और निश्चित रूप से एक अलग खेल मंत्रालय बनाना, खेलों को बढ़ावा देने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में बताता है।
मोदी सरकार की बदौलत भारतीय खिलाड़ी आज काफी बेहतर स्थिति में हैं। क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, महिलाओं द्वारा खेल आयोजनों पर लैंगिक दबाव डाला जाता है और खेल बजट कई गुना बढ़ गया है। मोदी सरकार इस बदलाव को लाने में सबसे आगे रही है। सरकार ने खेल संस्कृति को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किया है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि खिलाड़ियों को बार-बार यह सांत्वना दी गयी है कि वह उनके साथ खड़े हैं।
खिलाड़ियों ने रिकॉर्ड पर कहा है कि किसी अन्य प्रधानमंत्री ने जीत के बाद कभी भी टीम को फ़ोन नहीं किया है। यह सर्वविदित है कि टीम दुनिया के किसी भी हिस्से में खेल रही हो, मोदी फोन करना सुनिश्चित करते हैं और साथ ही यह उनके लौटने पर अपने आवास पर उनकी मेजबानी भी करते हैं। क्या किसी ने अतीत में किसी सरकार द्वारा तत्काल आधार पर एयर कंडीशनर भेजने के बारे में कभी सुना है, क्योंकि पेरिस ओलंपिक्स में जहां खिलाड़ी ठहरे थे वहां उन्हें यह सुविधा नहीं दी गयी थी। क्योंकि पेरिस ओलंपिक को पर्यावरण-अनुकूल खेलों के रूप में प्रचारित किया गया था, इसलिए वहां एयर कंडीशनर नहीं थे। बहुत गर्मी थी और इसीलिए खिलाड़ियों को काफी मुश्किल हुई। मोदी सरकार ने बिना समय गंवाए खिलाड़ियों के लिए 40 एयर कंडीशनर भेज दिए। इसलिए जहां उचित है वहां श्रेय दिया जाना चाहिए और इस आधार पर मोदी सरकार स्वर्ण पदक की हकदार है।
– कुमकुम चड्डा