सियासत भारत की हो या किसी भी अन्य देश की, चौंकाने वाले परिणाम सामने आते रहे हैं। जनता जनार्दन किसे सिर-आंखों पर बैठा ले और किसे फर्श पर पटक दे, कुछ कहा नहीं जा सकता। जनता उसे ही विजयी बनाती है, जिसके प्रति वह आशावान होती है कि वह उनकी आकांक्षाओं को पूरा करेगा। ऐसा ही एक और नाम दुनिया में सामने आया है, वह है जुजाना केप्यूटोवा, जिसे स्लोवाकिया की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल हुआ है। चुनाव में उसे 59 फीसदी मत हासिल हुए, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सेफकोविक को करीब 52 फीसदी मत मिले। हैरानी की बात तो यह है कि उनकी पार्टी प्रोग्रेसिव स्लोवाकिया का कोई सांसद नहीं है, जबकि सेफकोविक उच्चस्तरीय राजनयिक हैं और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष भी हैं। इसके साथ ही जुजाना का नाम दुनिया भर की उस पहली महिला प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की सूची में शामिल हो गया है जिसमें इससे पहले भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, पाकिस्तान की बेनजीर भुट्टो, ब्रिटेन की माग्रेट थैचर, श्रीलंका की श्रीमावो भंडारनायके, बांग्लादेश की खालिदा जिया और कई अन्य नाम शामिल हैं।
इसावेल पेरोन पहली ऐसी महिला थी जो किसी देश की राष्ट्रपति बनी थी। 1974-76 तक वह अर्जेंटीना की 43वीं राष्ट्रपति थी। मारिया कोरिजान फिलीपींस की 11वीं राष्ट्रपति बनी थी। जुजाना का नाम स्लोवाकिया में पहली बार भ्रष्टाचार विरोधी अभियान छेड़ने पर चर्चा में आया था। उनके संघर्ष की कहानी पिछले वर्ष जनवरी में देश के एक खोजी पत्रकार जेन कुसियाक और उसकी महिला मित्र की हत्या के साथ शुरू हुई। पेशे से वकील जुजाना ने इस हत्या के दोषियों को सजा दिलाने के लिये देशभर में अभियान चलाया था। पत्रकार जेन कुसियाक नियोजित तरीके से हो रहे अपराधों और राजनीति के बीच गठजोड़ की रिपोर्टिंग कर रहे थे। इसी जांच-पड़ताल में उनकी हत्या की गई। जुजाना के आन्दोलन को काफी जनसमर्थन मिला और हत्या के दोषी वहां के प्रसिद्ध व्यापारी को न सिर्फ गिरफ्तार किया गया बल्कि दोषी भी करार दिया गया।
जुजाना के अभियान की बदौलत वहां के प्रधानमंत्री राबर्ट फिको को अपना इस्तीफा देना पड़ा था। जुजाना के राजनीतिक सफर को एक वर्ष ही हुआ है और उन्हें राजनीति का कोई अनुभव भी नहीं है फिर भी देश की जनता ने उन्हें शीर्ष पद पर पहुंचा दिया। इससे पहले वह अदालत में वकालत करके ही अपना परिवार चला रही थी। पर्यावरण से जुड़े एक मामले में उन्होंने एक दशक से ज्यादा लम्बा चला केस अदालत से जीता था। दरअसल जिस बिजनेसमैन के खिलाफ उन्होंने यह जंग जीती थी उसने एक लैंडफिल साइट पर कब्जा कर वहां पर रिहायशी कालोनी बना दी थी। इसके खिलाफ जुजाना ने जुझारू बनकर अपनी जंग की शुरूआत की थी। अफगानिस्तान के बाद पत्रकारों के लिये सबसे जोखिम भरा देश भारत है, जहां अनेक सम्पादकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की हत्या हो चुकी है।
भारत में भी सरकारी जमीनों पर कब्जा करके अवैध कालोनियां बसाई गईं। यह सब कुछ राजनीतिज्ञों और भूमाफिया की सांठगांठ के चलते हुआ। राजनीतिज्ञों और अपराधियों की सांठगांठ से करोड़ों के वारे-न्यारे किये गए। इस दृष्टि से देखा जाये तो भारत और चैकोस्लोवाकिया की परिस्थितियों में ज्यादा अंतर नहीं है। छोटा सा देश स्लोवाकिया चैकोस्लोवाकिया का हिस्सा था और लगभग 75 वर्षों तक सोवियत शासन के तहत रहा। वर्ष 1990 में सोवियत संघ से अलग हो गया। केवल 26 वर्ष पहले स्वतंत्र हुआ देश भले ही प्राकृतिक दृश्यों, महलों और गुफाओं के लिये जाना जाता है लेकिन अन्य देशों की तरह यहां भी भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा है।
स्लोवाकिया एक ऐसा देश है जहां समलैंगिक विवाह व गोद लेना अब तक कानूनी नहीं है। हालांकि जुजाना को उदारवादी विचारों की माना जाता है। जुजाना पर शीर्ष पद पर पहुंच कर जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने का दायित्व आ पड़ा है। उनके सामने भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने और राजनीतिज्ञों और अपराधियों और माफियाओं की सांठगांठ को तोड़ने की चुनौती है। उम्मीद की जा रही है कि वह एलजीबीटीक्यू अधिकारों को बढ़ावा देंगी। चुनौतियों से जूझते जुजाना ही देश की पहली पसन्द बन गई हैं। देखना होगा कि वह राजनीित में कितनी परिपक्वता दिखाती हैं।